हिजाब पहनने की मांग और उसके पीछे स्थित राष्ट्रद्रोही षड्यंत्र !

१. बुर्का और हिजाब की मांग को लेकर देश में सर्वत्र धार्मिक कट्टरतावाद की आग फैलना

     ‘कर्नाटक के विद्यालय-महाविद्यालय आजकल स्वधर्म का वर्चस्व दिखानेवाली प्रयोगशालाएं बन गई हैं । ‘मुसलमान छात्राओं की हिजाब पहनेने की मांग उनका हठ है अथवा जिहाद का एक भाग है ?’, इसकी शंका होती है । इन विद्यालयों से धार्मिक कट्टरतावाद का बीज बोया जा रहा है । ८ फरवरी २०२२ को कर्नाटक के मंड्या जिले का एक वीडियो प्रसारित हुआ था, उसमें एक निजी महाविद्यालय के छात्र शिक्षा ग्रहण करने के स्थान पर ‘अल्लाह हू अकबर’ और ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाते हुए दिखाई दे रहे थे । उसमें मुसलमान छात्राओं ने हिजाब पहना था ।

२. प्रविष्ट याचिकाओं पर अंतिम निर्णय आने तक कर्नाटक के विद्यालयों और महाविद्यालयों में धार्मिक वेशभूषा करने पर रोक लगाने का कर्नाटक उच्च न्यायालय का आदेश !

     ९ फरवरी २०२२ को कर्नाटक उच्च न्यायालय में इस प्रकरण की सुनवाई हुई । इसमें कर्नाटक उच्च न्यायालय की ३ न्यायाधीशों की खंडपीठ ने यह आदेश दिया कि ‘इन याचिकाओं पर निर्णय आने तक कर्नाटक के विद्यालयों और महाविद्यालयों में धार्मिक वेशभूषा करने पर प्रतिबंध लगाया जाए ।’ अब मुख्य न्यायाधीश इस पर निर्णय देंगे ।

३. हिजाब के विवाद के आधार पर लोगों में फैलाई जानेवाली अवधारणाएं !

     इस संपूर्ण विवाद में लोगों में निरंतर दो बडे सूत्रों के विषय में अवधारणाएं फैलाई जा रही हैं ।

अ. पहली बात यह कि धार्मिक वेशभूषा का यह सूत्र गणवेश से संबंधित है; परंतु एक विशिष्ट विचारधारावाले लोगों ने उसे हिजाब का सूत्र बनाया । ‘विद्यालय में छात्रों को एक समान गणवेश होना चाहिए अथवा नहीं ?’, इस सूत्र को विवाद का रूप देकर उसे हिजाब तक सीमित बना दिया गया है ।

आ. दूसरी बात यह कि भारत में आज तक किसी भी मुसलमान महिला को हिजाब पहनने से रोका नहीं गया है । आज भी हमारे देश में मुसलमान महिलाएं अपनी इच्छा के अनुसार हिजाब और बुर्का पहन सकती हैं । संविधान द्वारा उन्हें प्रदान किया गया वह अधिकार है । विद्यालय में छात्राएं धार्मिक वेशभूषा पहनकर वर्ग में बैठ सकती हैं अथवा नहीं, यह विवादित सूत्र है; परंतु इस बात की ढाल बनाकर ‘भारत में मुसलमान महिलाओं को हिजाब पहनने पर प्रतिबंध डाला जा रहा है’, यह रूप दिया जा रहा है ।

४. हिजाब पर विवाद बडा षड्यंत्र ही है !

     जिस विद्यालय में यह विवाद आरंभ हुआ, वहां समाचार वाहिनी ‘जी न्यूज’ का एक दल इस विषय में अवलोकन करने के लिए गया था । वहां मिले प्रमाणों से लगता है कि ‘इस प्रकरण के पीछे कोई बडा षड्यंत्र हो सकता है ।’ ९ फरवरी २०२२ को उडुपी के सरकारी उच्च माध्यमिक विद्यालय के प्रसारित हुए एक छायाचित्र में महाविद्यालय की ६ मुसलमान छात्राओं ने हिजाब पहनकर वर्ग में बैठने की मांग की थी । छायाचित्र में उन्होंने हिजाब नहीं पहना है । उन्होंने कर्नाटक उच्च न्यायालय में हिजाब पहनने की मांग करते हुए याचिका प्रविष्ट की है । इससे यह स्पष्ट होता है कि इस घटना से पूर्व सभी मुसलमान छात्राएं हिजाब न पहनकर महाविद्यालय आती थीं । उनमें से कुछ छात्राएं तो पिछले १० वर्ष से इस महाविद्यालय में शिक्षा ले रही हैं । इस अवधि में उनसे हिजाब पहनने की मांग नहीं की गई है । उन्होंने अब तक महाविद्यालय द्वारा बनाए गए नियमों का भी पालन किया है । यह छायाचित्र तो इन बातों का बडा प्रमाण ही है ।

     दूसरा प्रमाण यह है कि जब किसी भी छात्र को महाविद्यालय में प्रवेश दिया जाता है, तब उसके माता-पिता से कुछ कागदपत्रों पर हस्ताक्षर लिए जाते हैं । इन कागदपत्रों में अनुमतिवाला एक आवेदन (फॉर्म) होता है । उस पर ‘उस छात्र/छात्रा को विद्यालय द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करना चाहिए और इन नियमों का उल्लंघन करने पर विद्यालय प्रशासन उस छात्र/छात्रा पर कार्यवाही कर सकता है ।’, ऐसा लिखवाकर अभिभावकों की अनुमति ली जाती है । अब जो मुसलमान छात्राएं हिजाब पहनने की मांग कर रही हैं, उन्होंने भी इस अनुमति से संबंधित आवेदन पर अपने हस्ताक्षर किए हैं । उस आवेदन पर १९ नियमों के विषय में छात्र/छात्राओं से अनुमति ली गई है ।

५. हिजाब की मांग करने का नियोजन अक्टूबर २०२१ से ही किया जाना

     उडुपी के महाविद्यालय में अक्टूबर २०२१ से ही छात्राओं ने हिजाब की मांग करना आरंभ किया । कुछ मुसलमान छात्राओं ने हिजाब पहनकर वर्ग में बैठने की अनुमति मांगी थी; परंतु वहां के प्राचार्याें ने इसे अस्वीकार किया । उसके उपरांत एक राजनीतिक दल ‘सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी ऑफ इंडिया’ ने इन छात्राओं को इस विषय पर उकसाना आरंभ किया । आंदोलन चलाने के लिए इस राजनीतिक दल ने मुसलमान छात्राओं की सहायता की । इन राजनीतिक दल से संबंधित ‘कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया’ ये छात्र संगठन कर्नाटक में बडी मात्रा में विरोध जताने के लिए आंदोलन चलाने का नियोजन कर रहा है । उसमें भाग लेने हेतु मुसलमान छात्राओं को प्रोत्साहित भी कर रहा है । ‘सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी ऑफ इंडिया’ यह राजनीतिक दल यह सब कर रहा है; क्योंकि वह ‘पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ संगठन से जुडा हुआ है ।

     देहली से २ सहस्र कि.मी. दूर कर्नाटक राज्य के उडुपी में आज के समय में तनावपूर्ण वातावरण है । यहां के लोग प्रश्न कर रहे हैं कि ‘इतने वर्षाें तक ये मुसलमान छात्राएं हिजाब न पहनकर शिक्षा ले रही थीं, तो इसे धार्मिक रंग क्यों दिया गया ?’ इस संदर्भ में शोध करने पर ध्यान में आया कि वर्ष २०२२ में आरंभित इस आंदोलन की संहिता अक्टूबर २०२१ में ही लिखी गई थी ।

६. ‘पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ और ‘सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी ऑफ इंडिया’ जैसे संगठनों का भी इस षड्यंत्र में सम्मिलित होना

     ‘पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ संगठन पर देहली के शाहीनबाग में नागरिकता संहिता कानून का विरोध करने के लिए चलाए गए आंदोलन के लिए धन की आपूर्ति करने का आरोप है । देहली में हुए दंगों में भी इस संगठन का हाथ था, ऐसा ‘एनआईए’ (राष्ट्रीय अन्वेषण विभाग) ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया है । आज के समय में झारखंड में इस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और केंद्र सरकार भी इस संगठन पर प्रतिबंध लगाने के विषय में विचार कर रही है । ‘सोशल डेमोक्रैटिक फ्रंट ऑफ इंडिया’ यह ‘पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ संगठन की राजनीतिक शाखा है । अब इन सभी कडियों को मिला दिया जाए, तो शाहीनबाग के आंदोलन से इसका आरंभ होता है ।

७. लडकियों के महाविद्यालय में मुसलमान छात्राओं से हिजाब की मांग

     इस प्रकरण के मूल में जाने पर यह ध्यान में आया कि कर्नाटक में सरकारी विद्यालय के अध्यक्ष वहां के स्थानीय सांसद होते हैं । उडुपी के वर्तमान सांसद भाजपा के हैं और राज्य में भी भाजपा की ही सरकार है । उसके कारण ‘पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ की शाखा ‘सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी ऑफ इंडिया’ और ‘कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया’, इन संगठनों ने यह सूत्र उठाना आरंभ किया है ।

८. हिजाब के बारे में जिहाद का विष किसने बोया ?

     केरल में ‘पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ और ‘सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी ऑफ इंडिया’ का प्रभाव है । केरल से उडुपी लगभग १०० किलोमीटर दूरी पर है । उडुपी में अल्पसंख्यक १० प्रतिशत है, इससे यह स्पष्ट होता है ।’

(सौजन्य : ‘डीएनए’ जी न्यूज)