साधकों को सूचना
१. आपातकाल की पूर्वतैयारी हेतु घर-घर हरे शाक, फलों के वृक्ष एवं औषधि वनस्पतियों का रोपण करें !
संत-महात्मा, ज्योतिषी आदि के मतानुसार आपातकाल का प्रारंभ हो गया है और उसकी तीव्रता अगले ३ से ४ वर्षाें में बढती ही जाएगी । कोरोना के काल में हमने भीषण आपातकाल की झलक अनुभव की । आपातकाल में अनाज, तैयार औषधियों का अभाव रहेगा । इसलिए अभी से हमें उसकी तैयारी करना आवश्यक है ।
आजकल बाजार में मिलनेवाले हरे शाक, फल इत्यादि पर हानिकारक रसायनों का छिडकाव किया जाता है । ऐसी सब्जियां एवं फल खाने से प्रतिदिन विषैले पदार्थ हमारे पेट में जाते हैं । इससे रोग होते हैं । साधना के लिए शरीर निरोगी रखना आवश्यक है । हानिकारक रसायनों से मुक्त अर्थात विषमुक्त अन्न खाने के लिए आज के काल में घर में ही थोडा-बहुत हरा शाक उगाना आवश्यक हो गया है ।
२. रोपण में समस्या होने पर भी उसपर समाधान योजना कर घर-घर रोपण करना आवश्यक !
घर के समीप रोपण करने के लिए भूमि उपलब्ध न होना, रोपण करने के लिए समय न होना, ‘रोपण कैसे करते हैं’, यह जानकारी न होना, ‘बीज, खाद इत्यादि कहां से लाना है’, इसकी जानकारी न होना इत्यादि अनेक समस्याओं के कारण घर में ही हरा शाक उगाना अनेक लोगों को अंसभव लगता है; परंतु इन सभी पर समाधान योजना निकालकर हम घर में ही हरा शाक, फल एवं औषधि वनस्पति का रोपण निश्चित रूप से कर सकते हैं । भीषण आपातकाल की पूर्वतैयारी हेतु प्रत्येक को यह करना ही होगा ।
३. परात्पर गुरु डॉक्टरजी के कृपाशीर्वाद से कार्तिकी एकादशी से सनातन के ‘घर-घर रोपण’ अभियान का शुभारंभ !
सर्वत्र के साधक उपरोक्त समस्याओं पर मात कर घर में ही थोडा-बहुत हरा शाक, फल के वृक्ष एवं औषधि वनस्पति लगाएं, इस हेतु कार्तिकी एकादशी (१५.११.२०२१) से परात्पर गुरु डॉक्टरजी के कृपाशीर्वाद से सनातन ने ‘घर-घर रोपण’ अभियान आरंभ किया । इस अभियान के अंतर्गत पूर्णतः प्राकृतिक पद्धति से रोपण करना सिखाया जाएगा और करवाया भी जाएगी ।
४. साधको, रोपण से संबंधित सभी समस्याओं पर मात कर अपने घर में रोपण करना तत्काल आरंभ करें !
जिनके घर के आसपास स्थान उपलब्ध हो, वे वहां रोपण कर सकते हैं; परंतु जो सदनिका (फ्लैट) अथवा चॉल में रहते हैं, जिनके पास रोपण हेतु स्थान उपलब्ध नहीं है, वे भी घर की छत में, बालकनी में अथवा खिडकी में भी रोपण कर सकते हैं । इस रोपण के लिए अलग मिट्टी की भी आवश्यकता नहीं है । केवल कुछ ईंट आसपास लगाने से बीच में निर्माण हुए रिक्त स्थान में सूखी घास एवं सूखे पत्ते, साथ ही रसोईघर का गीला कचरा विशिष्ट पद्धति से फैलाने से कुछ ही दिनों में अत्यधिक उपजाऊ मिट्टी बनती है । इस मिट्टी में किसी भी प्रकार की रसायनिक खाद मिलाने की आवश्यकता नहीं होती । इस उपजाऊ मिट्टी के कारण रोपित पौधे हरे-भरे होते हैं तथा भरपूर फल देते हैं । इस प्रकार के रोपण के कारण घर के कचरे का भी उचित प्रबंधन होता है और कचरे की समस्या भी सुलझती है । संक्षेप में, इस प्रकार के रोपण हेतु लगनेवाली सामग्री न्यूनतम होने से अत्यधिक अल्प व्यय में रोपण करना संभव होता है । इसके लिए बहुत समय देने की भी आवश्यकता नहीं है । नियमित दिनचर्या में इस रोपण को समाविष्ट कर हम अत्यधिक अल्प समय में रोपण कार्य कर सकते हैं । समय किसी के लिए भी नहीं रुकता, यह ध्यान में रखकर साधक अपने समय का उचित नियोजन कर स्वयं की क्षमतानुसार रोपण करना तत्काल आरंभ करें ।
५. साधको, ‘घर-घर रोपण’ अभियान में आगे दिए अनुसार सम्मिलित हों !
सभी साधक निम्न समयमर्यादा में इस अभियान से संबंधित कृति करें । जिन्हें यह सेवा समयसीमा से पहले करना संभव है, वे अवश्य पूर्ण करें । यहां दी गई पद्धति के अनुसार रोपण करने पर साधकों को रोपण का थोडा-बहुत अनुभव होगा, साथ ही उनके आत्मविश्वास में वृद्धि होगी । यह प्रथम चरण पूर्ण होने पर आगे क्या करना है ? इसका मार्गदर्शन दैनिक ‘सनातन प्रभात’ द्वारा किया जाएगा ।
टिप्पणी – जालस्थल पर प्रश्न पूछने की पद्धति
१. पृष्ठ के अंत में ‘Leave a Comment’ पर क्लिक करें ।
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३. ‘Save my name…’ पर्याय चुनें । ऐसा करने से अगली बार नाम एवं ई-मेल पुन: डालना नहीं होगा ।
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ऐसा करने पर यह प्रश्न जालस्थल के प्रशासक के (एडमिन) के पास जाएगा एवं उसके स्वीकृति देने पर यह प्रश्न जालस्थल के पृष्ठ पर दिखाई देगा ।
६. शंकासमाधान की कार्यपद्धति
इस अभियान में निर्धारित दिनों में साधकों का शंकासमाधान करने के लिए ऑनलाइन अभ्यासवर्ग लिए जाएंगे । इन अभ्यासवर्गाें में जालस्थल पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दिए जाएंगे । सभी के लिए उपयुक्त प्रश्नों के उत्तर सनातन प्रभात में दिए जाएंगे ।
७. इस अभियान में श्रद्धापूर्वक और भावपूर्वक सहभाग लें !
श्रीगुरुचरित्र के चालीसवें अध्याय में एक प्रसंग है । नरहरि नाम के ब्राह्मण को कुष्ठरोग होता है । श्री गुरु नृसिंहसरस्वती उसे ४ वर्षाें से सूखी एक गूलर की लकडी देकर उसे दिन में ३ बार पानी देने के लिए कहते हैं । लोगों द्वारा उपहास उडाए जाने पर भी भक्त नरहरि गुरु की आज्ञा का पालन कर ७ दिन मन में बिना कोई शंका लाए उस सूखी हुई लकडी को श्रद्धापूर्वक पानी डालता है । उस समय श्री गुरु उस पर प्रसन्न होकर स्वयं के कमंडल का तीर्थ उस लकडी पर छिडकते हैं । तभी उस सूखी हुई लकडी में पत्ते निकलते हैं और नरहरि का कुष्ठरोग भी ठीक होता है । भक्त नरहरि के समान हम भी श्रद्धापूर्वक और भावपूर्वक इस अभियान में सहभाग लेंगे । ‘श्री गुरु ही हमसे यह सेवा करवा रहे हैं’, ऐसा भाव रखेंगे !’
– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
(१०.११.२०२१)
३० वर्षाें से घर की छत पर बिना रासायनिक खाद के विषमुक्त अन्न उगानेवालीं पुणे की श्रीमती ज्योती शहा !श्रीमती ज्योती शहा द्वारा छत में लगाए वृक्षों के छायाचित्र पुणे की श्रीमती ज्योती शहा गत ३० वर्षाें से अपने घर की छत पर प्राकृतिक पद्धति से हरे शाक, फल के पौधे एवं औषधि वनस्पतियों का रोपण कर रही हैं । थोडीसी जगह में उन्होंने १८० से भी अधिक प्रकार के पौधे लगाए हैं । केवल एक इंट की भूमि के टुकटे में उन्होंने सूखे पत्ते, रसोई का कचरा (श्रीमती शहा इसे ‘कचरा’ न कहते हुए ‘पौधों का खाद्यान्न’ संबोधित करती हैं), इसके साथ ही देशी गाय के गोबर एवं गोमूत्र से बनाए ‘जीवामृत’ नामक विशिष्ट पदार्थ का उपयोग कर उन्होंने ‘बिना मिट्टी के खेती’ की है । उनके घर की छत पर वे विषमुक्त खाद्यान्न उगा रही हैं । इसके लिए उनकी जितनी प्रशंसा करें, अल्प ही है ! उनके द्वारा की गई खेती से आगे दिए छायाचित्र प्रत्येक के मन में ‘शहर में भूमि की समस्या पर मात कर, बिना किसी प्रकार की खाद का उपयोग किए रोपण करना संभव है’, ऐसा आत्मविश्वास निर्माण करते हैं । श्रीमती ज्योती शहा केवल अपने ही घर में रोपण करने तक ही सीमित नहीं रहीं, अपितु उन्होंने अब तक असंख्य लोगों को भी रोपण की पद्धति सिखाई है ।
कृतज्ञता गत ३० वर्षाें से ‘शहर खेती’ का अनुभव रखनेवाली पुणे की श्रीमती ज्योती शहा को सनातन के साधकों ने जब संपर्क किया, तो उन्होंने सनातन की ‘घर-घर रोपण’ अभियान के लिए किसी भी समय नि:शुल्क मार्गदर्शन करने की तैयारी दर्शाई । इसलिए श्रीमती ज्योती शहा द्वारा किए गए अमूल्य सहयोग के लिए हम उनके प्रति कृतज्ञ हैं ! – वैद्य मेघराज माधव पराडकर (१०.११.२०२१) |
‘रसोईघर के कचरे को ‘पौधों का आहार’ संबोधित करने पर, उस कचरे की ओर देखने का अपना दृष्टिकोण बदल जाता है । केवल शब्द बदलने से अपनी कृति में भी परिवर्तन होता है और हम इस ‘आहार’ को फेंकते नहीं अपितु ‘पौधों को खिलाते हैं ।’
– श्रीमती ज्योती शहा, पुणे (२४.१०.२०२१) |