विगत कुछ महिनों से हिन्दुओं का धर्मांतरण करने के षड्यंत्र के चिन्ह उत्तर भारत में दिखाई दे रहे थे । जून २०२१ के अंतिम सप्ताह में मुहम्मद उमर गौतम और मुफ्ती काजी जहांगीर आलम, इन दोनों को देहली के जामियानगर से बंदी बनाया गया । उन्होंने १ सहस्र लोगों का, विशेषत: हिन्दुओं का धर्मांतरण करना स्वीकार किया । तदुपरांत मौलाना (इस्लामी अध्ययनकर्ता) कलीम सिद्दीकी को विगत सप्ताह उत्तर प्रदेश के मेरठ से बंदी बनाया गया । इस षड्यंत्र को बढावा देने के लिए सिद्दीकी को हवाला के माध्यम से ३ करोड रुपए मिले थे । इस षड्यंत्र की कडी महाराष्ट्र के नाशिक तक पहुंची, जहां डॉ. आतिफ उपाख्य कुणाल चौधरी को बंदी बनाया गया । ‘एएनआइ’ द्वारा बताए गए समाचार के अनुसार आतिफ रशिया से चिकित्सा शिक्षा पूर्ण कर भारत में चिकित्सा व्यवसाय करने के लिए आवश्यक परीक्षा में अनुत्तीर्ण हुआ । इसलिए उसने नाशिक में अवैध रूप से चिकित्सा व्यवसाय आरंभ किया और उसके पास आनेवाले अन्य धर्मीय रोगियों को लालच देकर उनका धर्मांतरण करना आरंभ किया । इसके लिए उसे विदेश से लगभग २० करोड रुपए प्राप्त हुए । आतिफ मौलाना सिद्दीकी के संपर्क में भी था । इससे हिन्दुओं के धर्मांतरण हेतु रचे गए धर्मांतरण जिहाद का अंतरराष्ट्रीय स्वरूप देखने में आता है ।
मस्तिष्क में भरा ‘जिहाद’ !
मुसलमानों को मुख्य प्रवाह में सम्मिलित करने के नाम पर धर्मनिरपेक्ष भारत ने संविधान के नियमों को तिलांजली दी तथा सच्चर आयोग जैसे एकपक्षीय ब्योरे में बताए सुझाव लागू करने का प्रयास किया । ‘मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा देने पर वे कट्टरतावादी नहीं बनेंगे’, ऐसे हास्यास्पद युक्तिवाद द्वारा उन पर सुविधाओं की वर्षा की गई । कोई उच्च शिक्षित धर्मांध हों या ‘फॉरेन रिटर्न्ड’ (विदेश में पढकर वापस आए) धर्मांध, वे अपने पंथ की शिक्षा का कठोर आचरण करने हेतु कटिबद्ध होते हैं, इस तथ्य की जानबूझकर अनदेखी की गई । कुछ वर्ष पूर्व ऑस्ट्रेलिया में भारतीय वंश के एक डॉक्टर पर आतंकवादी कार्यवाहियों में सहभागी होने का आरोप लगा था । पहले इस्लामिक स्टेट व अब तालिबान से संधि करने हेतु अफगानिस्तान का रास्ता चुननेवाले केरल के कुछ धर्मांध भी उच्चशिक्षित हैं । २०१४ में बेंगळूरु के बहुराष्ट्रीय प्रतिष्ठान में अभियंता के रूप में लाखों रुपए कमानेवाले मसरूर बिस्वास को इस्लामिक स्टेट की विचारधारा को ट्विटर आदि सामाजिक माध्यमों द्वारा प्रचारित करने के लिए बंदी बनाया गया । इन उदाहरणों से ध्यान में आता है कि धर्मांधों को ‘रॉकेट साइन्स’ जैसी प्रगल्भ शिक्षा सिखाई, तब भी बचपन से उनके दिमाग में भरी जिहाद की सीख एवं स्वपंथ के प्रति मानवविघातक निष्ठा कभी नष्ट नहीं होगी, यह पत्थर की लकीर है ।
हिन्दू ‘तालिबानी’ ?
इसका एक और ज्वलंत उदाहरण है, लक्ष्मणपुरी में कार्यरत प्रशासकीय अधिकारी इफ्तिखारुद्दीन का ! कानपुर के कार्यकाल के उनके कुछ वीडियो अब ‘वायरल’ (प्रसारित) हुए है । जिसमें वे अपने शासकीय निवास पर कुछ मुसलमान बंधुओं को काफिरों का धर्मांतरण करने की आवश्यकता के विषय में जानकारी समझा रहे हैं । इन वीडियो की सत्यता जांचने का प्रयास जारी है । ‘यह सत्य पाया गया, तो आवश्यक कार्यवाही की जाएगी’, ऐसी सतर्क भूमिका उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने ली है । इस प्रकरण का सत्य शीघ्र ही बाहर आएगा; परंतु इफ्तिखारुद्दीन के स्थान पर कोई हिन्दू प्रशासकीय अधिकारी किसी हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन के कार्यक्रम में केवल सहभागी भी हुआ होता तो धर्मनिरपेक्ष लोगों ने ‘देश का भगवाकरण हो रहा है’, ‘हिन्दू तालिबानी’, ऐसे विविध आरोप कर हिन्दुओं को प्रताडित किया होता ।
इन सभी घटनाओं के केंद्र में धर्मांतरण जिहाद अर्थात ‘कैसे भी हिन्दुओं का धर्मांतरण करना’, यह सूत्र समान है । इस पर प्रतिबंध लगाने के लिए केंद्र सरकार को राष्ट्रीय स्तर पर धर्मांतरण विरोधी कानून बनाना चाहिए । किसी रेखा को न मिटाकर छोटा करने के लिए उसके पडोस में बडी रेखा खींचनी पडती है, इस नियमानुसार हिन्दुओं को धर्मशिक्षा देना अनिवार्य है । इससे हिन्दू धर्मांतरण के जाल में नहीं फंसेंगे और धर्मांध अथवा ईसाईयों द्वारा प्रयास करने पर उन्हें उपयुक्त प्रत्युत्तर देने में सक्षम बनेंगे । राजकीय इच्छाशक्ति के अभाव के कारण ऐसा कानून बनना असंभव न हो; तो भी कठिन है । इसीलिए हिन्दू धर्म को राजाश्रय देकर हिन्दुओं की सुरक्षितता और सर्वंकष कल्याण का संकल्प करनेवाले हिन्दू राष्ट्र की स्थापना ही एकमात्र विकल्प है !