मंदिरों की भूमि अधिग्रहित करनेवालों को ‘गुंडा कानून’ के अंतर्गत बेडियां पहनाएं !

मंदिरों की भूमि हथियाना, यह चोरी करना हुआ ! इस अक्षम्य पाप का किसी को भी कुछ न लगना, यह हिन्दुओं की चरम सीमा की अधोगति का लक्षण है ! हिन्दुओं में धर्मशिक्षा न होने से वे मंदिरों की भूमि अधिग्रहित कर लेते हैं और शेष हिन्दू इस आविर्भाव में रहते हैं कि ‘मेरा इससे कुछ लेना-देना नहीं !’ इससे यह ध्यान में आता है कि हिन्दुओं में कितनी जागरूकता निर्माण होना आवश्यक है ! – संपादक

     चेन्नई – ‘जिन लोगों ने राज्य के मंदिरों की भूमि हथियाई है और निर्धारित समय बीत जाने पर भी जो भूमि मंदिरों को लौटाने में टालमटोल कर रहे हैं, उन्हें राज्य में लागू ‘गुंडा कानून’ के अंतर्गत बेडियां पहना दी जाएं’, ऐसा स्पष्ट आदेश मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु राज्य के ‘हिन्दू धार्मिक एवं धर्मादाय दान विभाग’ को (‘हिन्दू रिलिजियस एंड चैरिटेबल एन्डोमेंट्स डिपार्टमेंट’ को) दी है । इसके साथ न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि वैसी सार्वजनिक अधिसूचना निकाली जाए ।

मद्रास उच्च न्यायालय का आदेश

आज मंदिर का सरकारीकरण करनेवाला कानून है; परंतु हिन्दू राष्ट्र में मंदिर भक्तों के ही नियंत्रण में रखनेवाला कानून होगा !

न्यायमूर्ति एस. सुब्रह्मण्यम् द्वारा दिए गए इस आदेश में कहा गया है कि,

१. राज्य सरकार, ‘हिन्दू धार्मिक एवं धर्मादाय दान विभाग’ एवं पुलिस महासंचालक ऐसे भूमि अधिग्रहित करनेवालों के विरोध में गुंडा कानून के अंतर्गत कार्यवाही करने में कोई संकोच न करे ।

२. जिन मंदिरों की भूमि पर अतिक्रमण किया गया है, वह भूमि पुन: प्राप्त करने के लिए एक विशेष पथक की स्थापना की जाए । केवल सत्य और कर्त्तव्य के प्रति समर्पित अधिकारियों को ही इस पथक में नियुक्त करें । पथक के सभी अधिकारियों की सूची राज्य के सभी मंदिर और ‘हिन्दू धार्मिक और धर्मादाय दान विभाग’ कार्यालयों के दर्शनीय भाग पर लगाई जाए, जिससे मंदिरों की भूमि की रक्षा करने के इच्छुक लोग संबंधित अधिकारियों के पास परिवाद (शिकायत) कर सकें ।

३. न्यायालय ने आगे कहा कि मंदिरों के धन का अनुचित उपयोग करना भी एक अपराध ही है । राज्य सरकार को इस विषय में संबंधित लोगों के विरुद्ध अपराध प्रविष्ट कर अभियोग चलाना चाहिए । सरकारी अधिकारियों द्वारा कर्तव्य न निभाते हुए की जा रही कामचोरी की ओर गंभीरता से देखने की आवश्यकता है, साथ ही उन पर कार्यवाही की जानी चाहिए । (१८.९.२०२१)