सुराज्य अभियान ने लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग से की कार्यवाई की मांग !
मुंबई – पुणे के दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल ने १० लाख रुपये जमा न करने के कारण एक गर्भवती महिला तनीषा भिसे को भर्ती नहीं किया, जिससे उसकी मौत हो गई । यह एक मात्र उदाहरण नहीं है, बल्कि महाराष्ट्र में ऐसे कई धर्मार्थ अस्पतालों ने रोगियों को उपचार से मना कर दिया है अथवा अत्यधिक शुल्क वसूल किया है । नियमित ऑडिट तथा सार्वजनिक उत्तरदायित्व के अभाव के कारण निर्धन और कमजोर रोगी, अन्याय और दुर्व्यवहार को उजागर करने में असमर्थ हो जाते हैं । इसलिए राज्य के सभी धर्मार्थ अस्पतालों को नियमों और शर्तों का पालन करना चाहिए । हिन्दू जनजागृति समिति के ‘सुराज्य अभियान’ के महाराष्ट्र राज्य समन्वयक द्वारा इन नियमों का उल्लंघन करने वाले अस्पतालों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाई की जानी चाहिए । ऐसी मांग अभिषेक मुरूकटे जी ने परिवार कल्याण मंत्री प्रकाश अबिटकर तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्री. जगत प्रकाश नडडा से की ।
इस प्रकार की घटनाएं पहले भी सामने आ चुकी हैं । नवी मुंबई के वॉकहार्ट अस्पताल में एक किशोर रोगी की किडनी फेलियर में ‘डायलिसिस’ (मशीन द्वारा रक्त से अशुद्धियों को निकालना और शुद्ध रक्त की आपूर्ति) की कमी के कारण मृत्यु हो गई । मुंबई के लीलावती और जसलोक अस्पताल में, सरकारी आदेशों के बावजूद १० प्रतिशत चैरिटी बेड उपलब्ध नहीं कराए गए । जुलाई २०२३ में, महाराष्ट्र सरकार ने धर्मार्थ अस्पतालों के कामकाज की निगरानी, अनुपालन का मूल्यांकन करने तथा निशुल्क अथवा रियायती उपचार सुनिश्चित करने के लिए एक समिति स्थापित की थी ।
कानूनी पृष्ठभूमि,
इस मुद्दे पर न्यायालय में कई याचिकाएं प्रविष्ट की गई हैं । अधिवक्ता संजीव पुनालेकर द्वारा प्रविष्ठ निम्नलिखित याचिकाएं महत्वपूर्ण हैं –
१. जनहित याचिका (पीआईएल) संख्या.३१३ २ / २००४ मुंबई उच्च न्यायालय ने १० प्रतिशत बेड निर्धन रोगियों के लिए तथा १० प्रतिशत बेड आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षित करने का आदेश दिया, और एक ‘इंडिजेंट पेशेंट फंड (आईपीएफ)’ की स्थापना का भी आदेश दिया ।
२. समीक्षा याचिका संख्या. ६७ /२०१०- वकील संजीव पुनालेकर ने अस्पतालों द्वारा २००६ के निर्णय में ढील देने की मांग का विरोध किया । उच्च न्यायालय ने २०१३ में मूल निर्णय को कायम रखा । अतः अब तक कोई ठोस कार्यवाई अथवा समिति का अहवाल सार्वजनिक नहीं की गई है ।
उच्च न्यायालय के निर्देशों के पालन में राज्य सरकार ने निम्नलिखित आदेश जारी किए हैं ।
१. सभी धर्मार्थ अस्पतालों को ‘चैरिटी हेल्प डेस्क’ ऑनलाइन उपलब्ध कराना चाहिए ।
२. विधि एवं न्याय विभाग की निगरानी समितियों के अहवाल का उपयोग त्वरित कार्यवाई हेतु किया जाए ।
३. १८६ स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के स्वीकृत पदों पर शीघ्र भर्ती की जाए ।
४. निर्धन रोगी निधि की जानकारी चैरिटी कमिश्नर की वेबसाइट पर नियमित रूप से प्रकाशित की जानी चाहिए ।
५. दिशानिर्देशों का पालन न करने वाले अस्पतालों पर कठोर कार्यवाई की जाए ।
फिर भी कई अस्पताल अपने सामाजिक और न्यायिक दायित्व नहीं निभाते । अतः सुराज्य अभियान के अंतर्गत निम्नलिखित मांगें की गई हैं ।
१. राज्य भर में सभी पंजीकृत ट्रस्ट अस्पतालों का ऑडिट तथा सत्यापन किया जाना चाहिए तथा उनकी जानकारी वेबसाइट पर प्रकाशित की जानी चाहिए ।
२. वर्ष २०२३ से सभी सत्यापन रिपोर्ट, ‘ऑडिट अहवाल’ तथा बैठक का निर्णय समिति द्वारा अगले ३० दिनों के भीतर घोषित किया जाएगा ।
३. धर्मादाय अस्पताल योजनाओं के नियमों का उल्लंघन करने वाले अस्पतालों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाई की जानी चाहिए ।
४. धर्मादाय कोटे से उपचार से वंचित मरीजों के लिए एक सार्वजनिक ‘शिकायत निवारण पोर्टल’ स्थापित किया जाना चाहिए तथा धर्मादाय खटियों की अद्ययावत जानकारी राज्य पोर्टल पर नियमित रूप से प्रकाशित की जानी चाहिए ।
५. सार्वजनिक अस्पतालों को कर सहूलियत के साथ-साथ सार्वजनिक भूमि का उपयोग करके संचालित किया जाता है । इसलिए जरूरतमंद, वंचित वर्गों की सेवा करना न केवल उनका कानूनी, अपितु नैतिक दायित्व भी बनता है ।
दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल के ट्रस्टी तथा मेडिकल डायरेक्टर डॉ. धनंजय केलकर ने एक निवेदन में सभी आरोपों को नकार दिया है । केलकर ने कहा है कि इस घटना का अस्पताल से कोई लेना-देना नहीं है । |