जीवन का गुप्त ज्ञान सिखानेवाली गुडी !

परात्पर गुरु पांडे महाराज

१. प्रतिक्षण सतर्कता से अपने ध्‍येय की ओर अग्रसर होना चाहिए, यह ‘प्रतिपदा’ दर्शाती है  !

     ‘जीवन में क्‍या साध्‍य करना है, इसका गुडी (ब्रह्मध्‍वजा) प्रतीक है । गुडी पडवा चैत्र मास के प्रथम दिन आता है, इसलिए उस दिन को ‘प्रतिपदा’ कहा गया है । प्रत्‍येक कदम और क्षण ईश्‍वरप्राप्‍ति के लिए व्‍यतीत करने और समर्थ होकर आगे जाने के लिए मूल्‍यवान है । उसका मूल्‍य जानने का अवसर प्रतिक्षण मिलता है । प्रतिपदा बताती है कि यह जानकर जीवन जीना चाहिए ।

     आइए गुडी पडवा को हम इस अवसर का उपयोग कर लें । ध्‍येय की दृष्‍टि से अग्रसर होते समय प्रतिक्षण उस दृष्‍टि से समर्थ होकर कदम बढाना अर्थात प्रतिपदा ! मृत्‍यु कब आएगी, यह नहीं कहा जा सकता । प्रतिपदा का अर्थ है प्रतिक्षण सतर्कता से अपने ध्‍येय की ओर मार्गक्रमण करना । प्रतिपदा अर्थात प्रतिक्षण जागृत रहना ।’

२. नीम का सामर्थ्य

     गुढी पर नीम क्‍यों लगाते हैं ? यद्यपि नीम कडवा होता है, तथापि वह गुणकारी है । सत्‍य भी कडवा होता है । इसलिए गुढी पर वह लगाते हैं । यह वनस्‍पति का सत्‍कार  है।

आयुर्बलं यशो वर्चः प्रजाः पशुवसूनि च ।

ब्रह्म प्रज्ञां च मेधां च त्‍वं नो देहि वनस्‍पते ॥ – अश्‍वत्‍थस्‍तोत्र, श्‍लोक १२

अर्थ : हे वनस्‍पति, आप ही हमें जीवन, बल, यश, तेजस्‍विता, प्रजा, पशु, संपत्ति और उसी प्रकार ब्रह्म को जानने व करने की तेजस्‍वी बुद्धि दीजिए ।

     इस प्रकार ‘वनस्‍पति में कितना सामर्थ्‍य है’, यह दिखाई देता है । उसका सत्‍कार करने के लिए उसे त्‍योहार के दिन महत्त्व दिया जाता है ।

३. कलश ज्ञानशक्‍ति का प्रतीक होना

     गुढी पर उलटा लगाया हुआ कलश (तांबे का कलश), यह ज्ञानशक्‍ति का प्रतीक है । वह शिखर है । उसे प्राप्‍त करना अर्थात सफल होना ।

४. गुडी अर्थात त्‍यागमय जीवन जीने का प्रतीक

     गुडी त्‍यागमय जीवन जीने का प्रतीक है । पुतले खडे करना, यह प्रतीक है । वह जाज्‍वल्‍य होना चाहिए  उस प्रतीक की ओर अथवा आवरण की ओर न देखते हुए उसकी चैतन्‍यशक्‍ति देखनी चाहिए । उसके लिए गुरुदेव से ज्ञान अर्थात दीक्षा लेनी चाहिए । उसने दंड देना चाहिए अर्थात आवरण हटाना चाहिए । उसके प्रायश्‍चित लेना चाहिए  प्रायश्‍चित दंड है  ‘शिक्षा’ से शिक्षण शब्‍द बना है । उसके लिए शिक्षक, परीक्षण, परीक्षा, कक्षा आदि ‘क्ष’ से भरे हुए शब्‍द हैं । उसके उपरांत उत्तीर्ण होने को ‘समावर्तन क्रिया’ कहते हैं । अर्थात ‘आवरण हटाकर सम पर लाना ।’ यह अंत है ।

५. संसार को समत्‍व बुद्धि और समभाव से देखना सीखना चाहिए !

     संसार अर्थात सम का सार ! उसे समत्‍व बुद्धि और समभाव से देखना सीखना चाहिए । ‘समत्‍वं योग उच्‍यते’ (श्रीमद़्‍भगवद़्‍गीता, अध्‍याय २, श्‍लोक ४८) अर्थात ‘समभाव को ही ‘योग’ कहते हैं’, ऐसा गीता में कहा गया है ।

६. गुडी बांधते समय बांस का उपयोग क्‍यों करते हैं ?

     बांस सुषुम्‍ना नाडी का प्रतीक है । उसमें से शरीर में सर्वत्र चैतन्‍यशक्‍ति (कुंडलिनी शक्‍ति) कार्य करती है । उसकी आराधना कर और वह जागृत होकर उसके द्वारा कार्य करने के लिए उसका आवाहन करने के लिए यह पूजा की जाती है । उस शक्‍ति को सजाया जाता है; इसलिए बांस को वस्‍त्र पहनाया जाता है ।

     भागवत के अध्‍याय ५ में धुंधुकारी और गोकर्ण की कथा है । ये दोनों भाई होते हैं । धुंधुकारी बुरी वृत्ति का होता है । बुरी संगत में पडने के कारण उससे पाप होता है । मृत्‍यु के उपरांत वह भयंकर योनि में जाता है । गोकर्ण साधना करने के लिए वन में जाता है । वह लौटता है, तब मृत्‍यु को प्राप्‍त धुंधुकारी विविध रूप धारण कर उसका उद्धार करने की विनती करता है । गोकर्ण उसके लिए भागवत की कथा आरंभ करता है । कथा सुनने के लिए वह वायुरूप होकर वहां स्‍थित बांस के निचले पोर में जाकर बैठ जाता है । गोकर्ण का जैसे जैसे एक-एक अध्‍याय पूर्ण होता गया, वैसे वैसे बांस का एक एक पोर भंग होता गया । इस प्रकार सात दिनों के भागवत पारायण से धुंधुकारी के सर्व भोग नष्‍ट हो गए ।

     उक्‍त कथा से बांस का महात्‍म्‍य ध्‍यान में आता है । जीव के उद्धार के लिए सुषुम्‍ना नाडी शुद्ध होना आवश्‍यक है । उससे जीव शुद्ध होता है; यह सामर्थ्‍य और यह गुप्‍त ज्ञान भागवत की इस कथा से ध्‍यान में आता है ।

     इस प्रकार गुडी का महत्त्व महान है । जीवन का आदर्श यह गुडी हमें हमारे जीवन का गुप्‍त ज्ञान दिखाती है ।’

– (परात्‍पर गुरु) परशराम पांडे महाराज, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल. (२८.३.२०१७)