यहां विविध पेयों के चित्र देकर उनका विश्लेषण किया है । ये पेय पदार्थ तामसिक, राजसिक व सात्त्विक प्रकार में आते हैं । पेयों के प्रकार का परिणाम मानव पर होकर उसमें नकारात्मक या सकारात्मक ऊर्जा निर्माण होती है ।
उक्त चित्र में अल्कोहल, काली चाय (बिना दूध की), सॉफ्ट ड्रिंक, काली कॉफी, दूध की चाय, फलों का रस, नारियल पानी, सादा पानी, भैंस का तथा गाय का दूध इस क्रम के अनुसार पेय दिखाए गए हैं ।
अल्कोहल और ब्लैक टी जैसे पेय में सूक्ष्म-तम घटक अधिक मात्रा में होते हैं । इसलिए मानव पर नकारात्मक परिणाम होकर उसकी तामसिकता भी बढती है । जितनी अधिक मात्रा, उतना उस व्यक्ति पर परिणाम होता है । सात्त्विक पदार्थ ग्रहण करने से व्यक्ति की प्रवृत्ति सात्त्विक बनने लगती है । उक्त चित्र में दिखाए अनुसार नारियल के पानी से गाय का दूध, यह क्रम चरण-दर-चरण सात्त्विकता की ओर ले जानेवाला है ।
उक्त चित्र में दिखाया गया अल्कोहल से गाय का दूध तक, यह पेयों को क्रम असात्त्विक आहार से सात्त्विक आहार की ओर मार्गक्रमण दर्शाता है । इसलिए तामसिक आहार की बलि न चढ, सत्त्वगुण निर्माण करनेवाले पदार्थ अथवा पेय ग्रहण करें। सात्त्विकता ही मनुष्य को निरोगी जीवन की ओर ले जाती है ।
कृत्रिम और शरीर के लिए हानिकारक शीतलपेय !
१. कृत्रिम शीतलपेयों के कारण अस्थियां दुर्बल होना
कृत्रिम शीतलपेयों का ‘पी एच’ सामान्यतः ३.४ होता है । इसलिए दांत और अस्थियां दुर्बल होती हैं । मनुष्य की आयु ३० वर्ष होने के उपरांत शरीर में अस्थियों की निर्मिति की प्रक्रिया रुक जाती है । तत्पश्चात खाद्यपदार्थों की अम्लता की मात्रा अनुसार अस्थियां दुर्बल होना प्रारंभ हो जाता है ।
२. शरीर का तापमान व पेय पदार्थों के तापमान की विषमता के कारण व्यक्ति की पाचनशक्ति प्रभावित होना
पेयपदार्थों में जीवनसत्त्व अथवा खनिज तत्त्व नहीं होते । हमारे शरीर का सामान्य तापमान ३७ अंश (डिग्री) तापांश (सेल्सियस) होता है तथा शीतलपेय पदार्थ का तापमान शून्य अंश (डिग्री) तापांश (सेल्सियस) तक होता है । शरीर का तापमान और पेय पदार्थों के तापमान की विषमता व्यक्ति की पाचनशक्ति पर विपरीत प्रभाव करती है । परिणामस्वरूप व्यक्ति द़्वारा खाए गए भोजन का अपचन होता है । वायु और दुर्गंध निर्माण होकर दांतों में फैलती है और रोग होते हैं ।’
३. प्रयोग का निष्कर्ष – मजबूत दांत हानिकारक पेय पदार्थों के प्रभाव से घुल गया !
‘एक प्रयोग में टूटे हुए दांत को पेय के पात्र में रखा गया । १० दिनों पश्चात वह उसमें घुल गया था । मजबूत दांत भी हानिकारक पेय पदार्थों के दुष्प्रभाव से घुलकर नष्ट होते हैं, तो ये पदार्थ पाचन हेतु जिस स्थान पर अनेक घंटे रहते हैं, उन नाजुक आंतों का क्या हाल होगा ?’
४. बालकों का स्वभाव हिंसक और आक्रामक होना
‘दिन में शीतलपेय की ४-५ बोतलें पीनेवाले बालकों में से १५ प्रतिशत बालकों का स्वभाव हिंसक और आक्रामक बनता है !’
(संदर्भ : डॉ. प्रकाश प्रभू, एमडी, हिन्दवी व दै. सामना)