भोजन के समय का पालन कर, स्वस्थ रहें !

वैद्य मेघराज पराडकर

     ‘स्‍वस्‍थ जीवन के लिए हम क्‍या और कितना आहार लेते हैं ?, इसकी तुलना में आहार व्यवस्थित पचाते हैं अथवा नहीं ?, यह अधिक महत्त्वपूर्ण है । थोडे-थोडे समय उपरांत आहार ग्रहण करना स्‍वास्‍थ्‍यकारक नहीं है । पहले ग्रहण किया हुआ आहार पचने पर दूसरा आहार लें, यह नियम है । आहार ठीक से पचने हेतु भोजन का समय आयुर्वेद अनुसार होना चाहिए । इस जानकारी से संबंधित यह लेख !

आयुर्वेद के अनुसार समय से भोजन कर निरोगी रहें !

१.  भोजन किस समय ग्रहण करें ?

१ अ. प्राचीन आयुर्वेदीय ग्रंथों का उल्लेख : सभी प्राचीन आयुर्वेदीय ग्रंथों में सवेरे का भोजन तथा सायंकाल का भोजन ऐसे शब्द मिलते हैं । कहीं भी दोपहर का भोजन तथा रात का भोजन शब्द़ों का उल्लेख नहीं है ।

१ आ. रात को देर से भोजन ग्रहण करने का मूल कारण : घर-घर में बिजली पहुंचने पर रात को भोजन ग्रहण करने की पद्धति विकसित हुई । दूरदर्शन वाहिनी के कार्यक्रम देखने के लिए देर तक जागना एवं देर से भोजन ग्रहण करना आरंभ हुआ तथा धीरे-धीरे पाचन से संबंधित समस्याएं निर्माण होने लगीं ।

१ इ. आयुर्वेद के अनुसार भोजन का आदर्श समय : आयुर्वेद के अनुसार भोजन का आदर्श समय है सवेरे ९ से १० तथा सायंकाल ५ से ६ (अर्थात सूर्यास्‍त के पूर्व) । इस समय में भोजन करने के कारण पूर्वकाल में लोग स्‍वस्‍थ थे । आज भी अधिक श्रम करनेवाले श्रमिक इसी समय में भोजन करते दिखाई देते हैं । जिन्‍हें इस समय का पालन करना संभव है, वे अवश्‍य इस समय में ही भोजन करें; किंतु हमारा जीवन समष्‍टि से संबंधित होने से इन समय का पालन करना अनेक बार कठिन होता है । इसलिए पर्यायी समय आगे दिए हैं ।

१ ई. आदर्श समय का पर्याय : मुख्‍य भोजन का समय सवेरे ११.३० तथा सायंकाल ७ बजे रखें । यह समय आज की बदली हुई जीवनशैली के लिए अधिक पूरक तथा सर्वसमावेशक है ।

२. भोजन का समय निश्‍चित करने का मूलभूत सिद्धांत

२ अ. पाचनशक्‍ति सूर्य की स्‍थिति पर निर्भर होना : हम जो अन्‍न ग्रहण करते हैं, योग्‍य पद्धति से उसे पचाने का दायित्‍व शरीर में स्‍थित जठराग्‍नि पर निर्भर है । यह जठराग्‍नि, अर्थात हमारे शरीर की पाचनशक्‍ति सूर्य की स्‍थिति पर निर्भर रहती है। आकाश में सूर्य हो, उस समय हम जो खाते हैं, वह अच्‍छी पद्धति से पचता है । वर्षाकाल की ऋतुचर्या के संदर्भ में आयुर्वेद कहता है ‘जिस दिन बादल के कारण सूर्य बहुत समय तक दिखाई न दे, उस दिन अल्‍प मात्रा में भोजन करें अथवा उपवास करें ।’ इससे सूर्य तथा पाचनशक्‍ति का घनिष्‍ठ संबंध ध्‍यान में आता है ।

२ आ. सूर्यास्‍त के डेढ से दो घंटे उपरांत तक पाचनशक्‍ति क्षमतावान रहना : सवेरे का भोजन सूर्योदय होने के ३ से ३.३० घंंटे के भीतर करें, साथ ही सायंकाल का भोजन सूर्यास्‍त के आधे घंटे के भीतर करें, यह आदर्श आचरण है । ऊपर दिए गए आदर्श समय के पीछे भी यही उद्देश्य है । यह करना संभव न हो, तो पर्यायस्वरूप इन दोनों समय में दो से ढाई घंटे का अंतर रख सकते हैं; क्योंकि उस समय तक पाचनशक्ति क्‍षमतावान रहती है ।

२ इ. रात का भोजन पचने में अधिक काल लगना : नींद में शरीर विश्राम लेता है । इस कारण पाचन सहित शरीर की सभी क्रियाएं कुछ मात्रा में अल्‍प होती हैं । इसलिए रात का भोजन पूर्णरूप से पचने के लिए १२ से १४ घंटे लगते हैं । सवेरे का भोजन करते समय आकाश में सूर्य होने से ८ घंटे में पूर्णत: पचता है । इसलिए सवेरे के भोजन के साधारणत: ८ घंटे उपरांत सायंकाल का तथा सायंकाल के भोजन के १२ से १४ घंटे उपरांत सवेरे का भोजन करें ।

२ ई. सोने के पूर्व भोजन के अधिकतम भाग का पचना आवश्‍यक : रात को सोने के पूर्व भोजन का अधिकतम भाग पचना चाहिए। इसलिए सूर्यास्‍त के डेढ से दो घंटे के भीतर भोजन पूर्ण होना चाहिए ।

३. अल्‍पाहार का समय

वर्तमानकाल में सभी का जीवन भागदौड भरा होने से आदर्श के साथ पर्यायी समय का भी उल्लेख किया है।

     धर्मशास्‍त्र में, साथ ही आयुर्वेद में दिन में केवल दो बार पेटभर खाना खाएं, साथ ही मध्‍यावधि में कुछ न खाएं, ऐसा बताया गया है; परंतु आजकल सभी के लिए यह करना संभव नहीं । अत: भूख लगी हो, तो उसे बलपूर्वक न रोकें । ऐसा करने पर शरीर में वेदना, भोजन का स्वाद समझ में न आना, थकान आना, शरीर दुर्बल होना, पेट में पीडा होना, चक्कर आना, जैसे विकार होते हैं । इसलिए दोनों समय के भोजन के तीन से साढे तीन घंटे पहले अल्पाहार लें । सवेरे ९ बजे भोजन ग्रहण करना हो, तो अलग अल्‍पाहार न लें । सवेरे ९ बजे सीधे भोजन करें तथा दोपहर में २ बजे अल्‍पाहार लें । पर्यायी समय में भोजन किया हो, तो सवेरे ८ अथवा ८.३० बजे तथा दोपहर में साधारणत: ४ बजे अल्‍पाहार करें ।

४. अल्‍पाहार कितना करें ?

     इसका उत्तर ‘अल्‍पाहार’ शब्‍द में ही समाहित है । अल्‍पाहार अल्‍प हो । ३ घंटे उपरांत जब भोजन करनेवाले हों, तब तीव्र भूख लगे, इतनी अल्‍प मात्रा में अल्‍पाहार करें । प्रत्‍येक व्‍यक्ति स्‍वयं की पाचनशक्ति जांचकर भूख से थोडा अल्‍प आहार ही ग्रहण करे । अल्पाहार अधिक करने पर मुख्य भोजन के समय भूख नहीं लगती। उस समय केवल समय हुआ है, इसलिए भूख न होते हुए भी भोजन करते हैं । भूख न होने पर भोजन करने से अन्न ठीक से नहीं पचता । अन्‍न ठीक से न पचने पर वह शरीर पर नकारात्‍मक परिणाम करता है, इसलिए विविध रोग निर्माण होते हैं ।

५. स्‍वास्‍थ्‍य की अनदेखी न करें !

     ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ।’ अर्थात धर्माचरण के लिए शरीर ही प्रथम साधन है, ऐसा एक वचन है । ईश्‍वर ने यह देह साधना करने के लिए दी है। इस देह से अधिकाधिक साधना हो, इसलिए देह के स्‍वास्‍थ्‍य का ध्‍यान रखना महत्त्वपूर्ण है । इसलिए जितना संभव हो, भोजन के समय का उतना पालन करें । पढाई, नौकरी, सेवा के कारण जिन्‍हें समय का पालन करना संभव नहीं, वे साथ में भोजन का डिब्‍बा ले जाना जैसे उपाय निकालें अथवा उपरोक्‍त लेख में दिए सिद्धांतों के अनुसार स्वयं को सुलभ हो, ऐसा पर्यायी समय निश्चित करें ।’

– वैद्य मेघराज पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.