देवता को भोजन का नैवेद्य अर्पित कर उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करने और नैवेद्य अर्पित किए बिना भोजन ग्रहण करने में अनुभव हुआ अंतर

आहार एवं आचार के संबंध में अद्वितीय शोधकार्य करनेवाला महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय

     हमारी संस्‍कृति में देवता को नैवेद्य अर्पित कर उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है । पूर्व काल में भोजन, देवता को अर्पित किए बिना ग्रहण नहीं किया जाता था । परंतु, आजकल यह क्रिया त्‍योहारों और धार्मिक उत्‍सवों तक सीमित रह गई है । वर्तमान में, देवता को नैवेद्य अर्पित करना तो दूर की बात रही, पूजा भी बहुत कम लोग करते हैं । ‘नैवेद्य’ और ‘प्रसाद’ शब्‍द अब केवल मंदिरों में सुनाई देते हैं; ऐसी आज की परिस्‍थिति है । देवता को नैवेद्य अर्पित कर और अर्पित न कर ग्रहण करने के विषय में एक प्रयोग महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय में किया गया था । इस प्रयोग की जानकारी आगे दे रहे हैं ।

श्री. ऋत्‍विज ढवण

१.  नैवेद्य का महत्त्व

     ‘नैवेद्य, षोडशोपचार पूजापद्धति का एक भाग है । इसमें, देवता का पूजन करने के पश्‍चात और आरती करने से पहले उन्‍हें नैवेद्य अर्पित किया जाता है । देवता के सामने सात्त्विक खाद्यपदार्थ का नैवेद्य रखकर भावपूर्ण प्रार्थना करने पर उस नैवेद्य की सात्त्विकता के कारण उसमें देवता से प्रक्षेपित होनेवाली चैतन्‍य तरंगें आकृष्‍ट होती हैं । इसलिए, नैवेद्य का अन्‍न पकाते समय उसमें सात्त्विक घी डाला जाता है । देवता को नैवेद्य अर्पित करने पर उसमें आकृष्‍ट चैतन्‍य से उस नैवेद्य के आसपास का वायुमंडल शुद्ध होता है । वायुमंडल शुद्ध होने पर ऐसे अन्‍न पर अनिष्‍ट शक्‍तियों के आक्रमण की आशंका अल्‍प हो जाती है ।

२.  नैवेद्य ग्रहण करने से होनेवाले लाभ

अ. भावपूर्ण पूजा और प्रार्थना कर, देवता को अन्‍न का नैवेद्य (भोग) अर्पित करने पर उसके माध्‍यम से उस देवता का तत्त्व और चैतन्‍य उस अन्‍न में अधिक मात्रा में आकृष्‍ट होता है । इससे प्रसाद ग्रहण करनेवाले को लाभ होता है ।

आ. देवता को अन्‍न का नैवेद्य अर्पित करने पर, अन्‍न पर आया अदृश्‍य नकारात्‍मक आवरण, देवता के चैतन्‍य से नष्‍ट होने में सहायता मिलती है ।

इ. यह नैवेद्य ग्रहण करनेवाले व्‍यक्‍ति का भी आवरण दूर होने में सहायता मिलती है ।

३.  देवता को अर्पित नैवेद्य को प्रसाद के रूप में ग्रहण करना और
नैवेद्य अर्पित किए बिना अन्‍न ग्रहण करने का प्रयोग करते समय हुई अनुभूतियां

– श्री. ऋत्‍विज नितिन ढवण, (‘होटल मैनेजमेंट’ का छात्र), महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय (१.११.२०२०)

देवता को ‘नैवेद्य’ अर्पित किया हुआ अन्‍न ग्रहण करना एवं अर्पित न किया अन्‍न ग्रहण करना

सद़्‍गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी

     ‘१.११.२०२० को हलवा बनाकर उसके दो भाग किए गए थे – एक भाग देवता को ‘नैवेद्य’ के रूप में देवता को अर्पित किया गया था । उसके पश्‍चात, यह जानने का प्रयास किया गया कि ‘वह हलवा खाने पर किस प्रकार के स्‍पंदन अनुभव होते हैं ?’ हलवा का दूसरा भाग देवता को ‘नैवेद्य’ के रूप में अर्पित नहीं किया गया । अब यह हलवा खाने पर कैसे स्‍पंदन अनुभव होते हैं’, यह भी जानने का प्रयास किया गया । इस प्रयोग में मुझे निम्‍नांकित अनुभूतियां हुईं ।

१.  देवता को ‘नैवेद्य’ के रूप में अर्पित हलवा ग्रहण करना

अ. देवता को ‘नैवेद्य’ के रूप में अर्पित हलवे की ओर देखकर मुझे हलकापन तथा शीतलता का अनुभव हुआ ।

आ. उस प्रसाद के हलवे का पहला ग्रास खाने पर मेरा अनाहतचक्र और उनके ऊपर के चक्रों को चैतन्‍य मिलने की अनुभूति हुई । ऐसा प्रतीत हुआ कि उन चक्रों पर प्रकाश आ गया है ।

इ. उसके पश्‍चात, प्रसाद के हलवे के स्‍पंदन अनाहतचक्र के निचले चक्रों पर अनुभव हुए और अंत में वे मूलाधारचक्र पर अनुभव हुए । मेरी सुषुम्‍ना नाडी सक्रिय हुई ।

ई. मेरी कुंडलिनीशक्‍ति जागृत होकर मणिपूरचक्र तक पहुंची । उसके पश्‍चात सूर्यनाडी सक्रिय हुई ।

उ. प्रसाद का हलवा खाने पर मन को शांति और तृप्‍ति मिली ।

२.  देवता को ‘नैवेद्य’ न अर्पित किया हुआ हलवा ग्रहण करना

अ. देवता को ‘नैवेद्य’ न अर्पित किए हुए हलवे की ओर देखकर मुझे मुख पर दाब की अनुभूति हुई ।

आ. मैंने उस हलवा का पहला ग्रास खाया, तब भी मुझे दाब अनुभव हुआ । वह ग्रास मुझे तुरंत निगलते नहीं बन रहा था ।

इ. ग्रास निगलने पर भी ‘वह पेट में गया है’, ऐसा नहीं लगा ।

ई. हलवा खाने पर मुझे संतुष्‍टि नहीं हुई ।

– (सद़्‍गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळ, महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय, गोवा. (२.११.२०२०)

     ‘इस लेख से देवता को नैवेद्य अर्पित कर कोई भी पदार्थ ग्रहण करना कितना महत्त्वपर्ण है, यह सूचित होता है ।’ – (परात्‍पर गुरु) डॉ. आठवले