पुण्यदायी
कुंभ पर्व अत्यंत पुण्यदायी होने के कारण उस समय प्रयाग, हरद्वार (हरिद्वार), उज्जैन एवं त्र्यंबकेश्वर-नाशिक में स्नान करने से अनंत पुण्यलाभ होता है । इसीलिए करोडों श्रद्धालु एवं साधु-संत इस स्थान पर एकत्रित होते हैं ।
अ. ‘कुंभ पर्व के काल में अनेक देवी-देवता, मातृका, यक्ष, गंधर्व तथा किन्नर भी भूमंडल की कक्षा में कार्यरत रहते हैं । साधना करने पर इन सबके आशीर्वाद मिलते हैं तथा अल्पावधि में कार्यसिद्धि होती है ।
आ. गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी एवं क्षिप्रा, इन नदियों के क्षेत्र में कुंभ पर्व होता है । नदी के पुण्यक्षेत्र में वास करनेवाले अनेक देवता, पुण्यात्मा, ऋषि-मुनि, कनिष्ठ गण इस समय जागृत रहते हैं । इससे उनके आशीर्वाद मिलने में भी सहायता होती है ।
इ. इस काल में किए पुण्यकर्म की सिद्धि अन्य काल से अनंत गुना अधिक होती है । इस काल में कृत्य कर्म के लिए पूरक होता है तथा कृत्य को कर्म की सहमति मिलती है ।
ई. कुंभ पर्व के काल में सर्वत्र आपतत्त्वदर्शक पुण्य तरंगों का भ्रमण होता है । इससे मनुष्य के मन की शुद्धि होती है तथा उसमें उत्पन्न विचारों द्वारा कृत्य भी फलदायी होता है, अर्थात ‘कृत्य एवं कर्म’ दोनों की शुद्धि होती है ।’
-(श्रीचित्शक्ति) श्रीमती अंजली गाडगीळजी, १.१०.२०१२
पापक्षालक
पवित्र तीर्थक्षेत्रों में स्नान कर पापक्षालन हो, इस हेतु अनेक श्रद्धालु कुंभ पर्व में कुंभ क्षेत्र में स्नान करते हैं ।
गंगास्नान
इन कुंभ पर्वोंमें प्रयाग (गंंगा), हरिद्वार (गंंगा), उज्जैन (क्षिप्रा) एवं त्र्यंबकेश्वर-नाशिक के (गोदावरी के) तीर्थों में गंगाजी गुप्त रूप से रहती हैं । कुंभपर्व में गंगास्नान धार्मिक दृष्टि से लाभदायी है । इसलिए श्रद्धालु एवं संत कुंभमेले में स्नान करते हैं ।
कुंभ पर्व में स्नान करने से १ सहस्र अश्वमेध, १०० वाजपेय तथा पृथ्वी की १ लाख परिक्रमा करने का पुण्य मिलता है, साथ ही १ सहस्र कार्तिक स्नान, १०० माघ स्नान तथा नर्मदा पर १ करोड वैशाख स्नान के समान एक कुंभस्नान का फल है ।
कुंभ मेले के समय सत्पुरुषों द्वारा गंगास्नान करने का कारण
कुंभ मेले में सत्पुरुष गंगास्नान करते हैं; क्योंकि तब अन्यों के स्नान से अशुद्ध हुई गंगाजी सत्पुरुषों की शक्ति से शुद्ध होती हैं ।
कुंभ पर्व स्थल के जलप्रवाह में स्नान करने से ईश्वरीय ऊर्जा शरीर में प्रवाहित होना
कुंभ पर्व के समय ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति के कारण जो वैज्ञानिक ऊर्जा निर्माण होती है, वह कुंभ पर्व स्थल के जलप्रवाह में प्रवाहित होती है । ऐसी नदी के प्रवाह में स्नान करनेे से उस जलस्पर्श से यह ईश्वरीय ऊर्जा हमार शरीर में प्रवाहित होने लगती है ।
संतसत्संग
कुंभ मेले में भारत के विविध पीठों के शंकराचार्य, १३ अखाडों के साधु, महामंडलेश्वर, शैव तथा वैष्णव संप्रदाय के, अनेक विद्वान, संन्यासी, संत-महात्मा एकत्रित आते हैं । इस कारण कुंभ मेले का स्वरूप अखिल भारतवर्ष के संतों के सम्मेलन के समान भव्य-दिव्य होता है । कुंभ मेले के श्रद्धालुओं को संतसत्संग का सबसे बडा अवसर उपलब्ध होता है ।
पितृतर्पण
गंगाजी का कार्य ही है ‘पितरों को मुक्ति देना’ । इस कारण कुंभ पर्व में गंगास्नानसहित पितृतर्पण करने की धर्माज्ञाहै । ‘वायुपुराण’ में कुंभ पर्व श्राद्धकर्म के लिए उपयुक्त बताया गया है ।
(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ – कुंभपर्वकी महिमा)
कुंभ क्षेत्र एवं गंगा नदी का एक-दूसरे से संबंध !
१. प्रयाग तथा हरिद्वार के कुंभ मेले प्रत्यक्ष गंगा नदी के तट पर ही होते हैं ।
२. त्र्यंबकेश्वर-नाशिक का कुंभ पर्व गोदावरी के तट पर होता है । गौतम ऋषि गंगा को ‘गोदावरी’ के नाम से त्र्यंबकेश्वर-नाशिक क्षेत्र में लाए थे । ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि विंध्य पर्वत के दक्षिण में गंगा का गौतमी (गोदावरी) नाम पडा है ।
३. उज्जैन का कुंभ पर्व क्षिप्रा नदी के तट पर होता है । यह उत्तरवाहिनी पवित्र नदी जहां पर पूर्ववाहिनी होती है, उस स्थान पर प्राचीन काल में गंगा नदी से उसका संगम हुआ था । आज वहां गणेश्वर नामक शिवलिंग है तथा स्कंदपुराण में क्षिप्रा नदी को गंगा माना गया है ।
इस प्रकार सर्व कुंभ क्षेत्रों का इतिहास गंगा नदी से जुडा है ।