अंतिम क्षण तक मन में केवल श्री गुरुदेव के प्रति अनन्य भक्तिभाव, साधकों पर अनंत प्रीति एवं अन्यों को साधना बताने की तीव्र लगन रखनेवाली पू. (श्रीमती) सूरजकांता मेनरायजी !

पू. (श्रीमती)सूरजकांता मेनरायजी की पुण्यतिथि के निमित्त उनके चरणों में कृतज्ञतापूर्वक नमस्कार !

पू.(श्रीमती)सूरजकांता मेनरायजी

माघ शुक्ल पक्ष ७ (१९.२.२०२१),सूर्य रथसप्तमी को सनातन की ४५ वीं संत पू.(श्रीमती)सूरजकांता मेनरायजी की पुण्यतिथि है । इस निमित्त उनकी पुत्री कु.संगीता मेनराय को ध्यान में आई उनकी कुछ गुणविशेषताएं आगे दी हैं ।

१.पू.(श्रीमती)सूरजकांता मेनरायजी की सबके प्रति रहनेवाली प्रीति !

१ अ.मस्तिष्क में बीमारी होने के कारण चिकित्सालय में गहन चिकित्सा विभाग (आईसीयू)में स्वयं का भान न होना,तब भी परिचारिका और डॉक्टरों की प्रेम से प्रशंसा करना और उन्हें साधना भी बताना: पू. (श्रीमती)माताजी (पू.(श्रीमती)सूरजकांता मेनरायजी) के देहत्याग के १५ दिन पूर्व उन्हें श्‍वास लेने में कष्ट हो रहा था, इसलिए उन्हें चिकित्सालय में गहन चिकित्सा विभाग (आईसीयू) में भरती किया था । चिकित्सालय में भरती करने के उपरांत दूसरे ही दिन उनके शरीर में कार्बन-डाई-ऑक्साइड बढने से उसका परिणाम उनके मस्तिष्क पर हो गया था । ऐसी स्थिति में वे अखंड बोल रही थीं । वे जो बोल रही थीं, उसका उन्हें अधिक भान नहीं था । उनके पास जो कोई परिचारिका या डॉक्टर आते थे, उन्हें वे बता रही थीं, आप नामजप करिए । आपको जो देवता भाते हैं, उनका नामजप करिए । इससे आप अधिक अच्छे से सेवा कर पाएंगे । उन्हें जो डॉक्टर अथवा परिचारिका अच्छे प्रतीत होते थे, वे प्रेम से उनकी प्रशंसा करती थीं । पू. माताजी उन्हें कहती थीं, आप अच्छे से सेवा कर पाएंगे । तब मुझे लगा कि वे उनसे कह रही हैं कि आप यदि आपका व्यवसाय सेवा मानकर करेंगे, तो आप और अच्छे से सेवा कर पाएंगे। सभी परिचारिकाएं और सीखनेवाले डॉक्टर पू. माताजी पर प्रेम करने लगे थे । वे बीच-बीच में पू. माताजी के पास आकर बातें करते थे । उस समय पू. माताजी अत्यंत प्रेम से उनका हाथ पकडती थीं । पू. माताजी का स्पर्श सभी को अत्यंत प्रिय लगता था ।

२. मन से अत्यंत निर्मल पू.माताजी !

२ अ.शारीरिक स्थिति अच्छी न होते हुए भी परिचित सर्व संतों और साधकों का स्मरण कर उनके गुणों के संबंध में बोलना : पू. माताजी को चिकित्सालय में भरती करने पर प्रथम ३ -४ दिन वे उनके परिचित सर्व संतों का स्मरण कर निरंतर उनके नाम ले रही थीं । वे उनके परिचित एक-एक साधक का नाम लेकर उसका स्मरण कर रही थीं और साधकों के गुण भी बता रही थीं । उस स्थिति में भी उन्होंने मुख से एक भी नकारात्मक शब्द नहीं कहा या किसी के विषय में एक भी अनुचित शब्द नहीं बोलीं ।

२ आ. व्यक्ति जब अचेत होता है, तब उसके अंतर्मन में जो होता है, वही उसके मुख से बाहर निकलना; परंतु पू. माताजी के मन में किसी के संबंध में भी नकारात्मकता न होना, उनका मन अत्यंत निर्मल होना, इसलिए उनका सभी के संबंध में अच्छा बोलना : सामान्य व्यक्ति जब अचेतावस्था में होता है,तब अंतर्मन में दबे हुए संस्कार अथवा किसी व्यक्ति के संबंध में मन में संग्रहित अनुचित विचार अधिकांशतः बाहर निकलते हैं; परंतु पू.माताजी सबके संबंध में अच्छा ही बोल रही थीं । मुझे इसका बहुत आश्‍चर्य हो रहा था । पू. माताजी ने मन में किसी के संबंध में किसी भी प्रकार के नकारात्मक विचार को स्थान नहीं दिया था । उनके जीवन में कभी समस्याएं नहीं थीं अथवा जीवन में किसी प्रकार के नकारात्मक प्रसंग नहीं घटे, ऐसा भी नहीं था । उन्होंने मन में केवल गुरुभक्ति और अन्यों पर प्रेम करने को ही स्थान दिया था, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ ।

३. भाव की अत्युच्च स्थिति !

३ अ.पू. माताजी के मन में केवल गुरुभक्ति ही होने के कारण अंतिम समय पर उनका श्री गुरु, साधना और साधकों के विषय में ही बोलना, उनके भाव की अत्युच्च स्थिति के कारण उनका मुखमंडल अत्यंत चैतन्यमय और सुंदर दिखाई देना, वे मानो गहन भावावस्था में चली गई हैं, ऐसा प्रतीत होना: उनकी चेतना खो रही थी, तब भी वे प्रेम से बार-बार साधकों के नाम ले रही थीं । उनके मन में केवल परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति अनन्य भक्ति, साधकों के प्रति अनंत प्रीति और सबको साधना बताने की लगन, ये तीन ही बातें थी । उन्हें अत्यधिक शारीरिक कष्ट होते हुए भी इसी भक्ति की ऊर्जा के कारण उनका मुखमंडल बहुत चैतन्यमय हो गया था । उस समय परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने कहा था, वे शीघ्र गति से साधना में आगे जा रही हैं । हमें ऐसा ही प्रतीत हो रहा था कि मानो वे गहन भावावस्था में चली गई हैं। पू. माताजी से मिलने के लिए आनेवाले साधकों का हाथ पू. माताजी कसकर पकड रही थीं और उनकी ओर प्रेम से देख रही थीं । ऐसी स्थिति में भी वे अन्यों को प्रेम ही दे रही थीं ।

४.पू.माताजी का देहत्याग और उत्तरक्रिया मानो ईश्‍वर ने ही पूर्वनियोजित किया था, ऐसा प्रतीत होना

पू. माताजी का देहत्याग रथसप्तमी को हुआ और माघ पूर्णिमा के पवित्र और मंगल गंगास्नान के दिन उनकी अस्थियां हरिद्वार स्थित गंगानदी में विसर्जित की गईं । पू. माताजी को गंगास्नान बहुत प्रिय था । हम जब उनकी अस्थियां विसर्जन के लिए ले जा रहे थे, तब हमें पता चला कि आज गंगास्नान का अत्यधिक मंगलमय व महत्त्वपूर्ण दिन है । तब ईश्‍वर ने ही उनकी अस्थियां माघ पूर्णिमा को गंगास्नान के दिन ही विसर्जित करवा लीं, ऐसा मुझे लगा ।

-कु.संगीता मेनराय (कन्या), फरीदाबाद, हरियाणा.(१४.६.२०२०)