‘गोमाता ही सबकुछ करती है’, इस भाव से गोवा राज्य की सबसे बडी गोशाला चलानेवाले श्री. कमलाकांत तारी !

श्री. कमलाकांत तारी ‘गोमंतक गौसेवक महासंघ, गोवा’ द्वारा संचालित मये, डिचोली के सिकेरी में गोशाला चलाते हैं । वर्ष २०१५ में केवल २ गायों से आरंभ की गई गोशाला में वर्तमान में ५ सहस्र ५०० गोवंश है । गोवा राज्य की यह सबसे बडी गोशाला है । श्री. कमलाकांत तारी ३३ वर्ष सरकारी विभाग में निस्वार्थभाव से नौकरी कर वे सेवानिवृत्त हुए । इस गोशाला में गायों की पुंगनूर, ओंगोल, संचोर, नागोरी, थरपारकर, कोंकरेज, राठी, सहिवाल, गीर, देओनी, श्वेत कपिला, कोंकण गिड्डा, कोंकण कपिला एवं मलनाड गिड्डा ये प्रजातियां देखने को मिलती हैं । ‘गोमाता ही सबकुछ करती है, हम कुछ नहीं करते’, इस भाव से श्री. कमलाकांत तारी गोशाला का यह बडा दायित्व संभालते हैं । गोशाला चलाने के लिए उन्हें प्रेरणा कैसे मिली ? गोसेवा करते समय उन्हें प्राप्त अनुभूतियां तथा गोसावा का महत्त्व आज हम उन्हीं के शब्दों में जान लेते हैं ।

श्री. कमलाकांत तारी

विशेष स्तंभ

छत्रपति शिवाजी महाराजजी के हिंदवी स्वराज्य के लिए मावळे (शिवाजी के सैनिक) और शूरवीर योद्धाओं का त्याग सर्वोच्च है, उसीप्रकार आज भी अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ और राष्ट्रप्रेमी नागरिक धर्म-राष्ट्र की रक्षा के लिए ‘शूरवीर योद्धा’ के रूप में कार्य कर रहे हैं । उनका और उनके हिन्दू धर्मरक्षा के कार्य से परिचय करवाने के लिए ‘हिन्दुत्व के शिलेदार’ अर्थात हिन्दुत्व के शूरवीर योद्धा, इस स्तंभ से अन्यों को भी प्रेरणा मिलेगी !

– संपादक

१. योगऋषि बाबा रामदेवजी से मिली प्रेरणा से गोशाला का आरंभ करना !

वर्ष २००९ में मैंने बंजर कृषिभूमि मैं सिंचाई कर उसमें विभिन्न प्रकार के चावल के बीजों का रोपण करना आरंभ किया । तब यह ध्यान में आय कि गाय के बिना कृषि अधुरी है । आरंभ में डिचोली के पशुमित्र श्री. अमृत सिंग तथा वाळपई के गोप्रेमी श्री. हनुमंत परब से प्रेरणा लेकर मैंने गोशाला के कार्य में पदार्पण करना सुनिश्चित किया । उसके उपरांत योगऋषि बाबा रामदेवजी के साथ जुडने का संयोग हुआ तथा मैं योगशिक्षक बना । योगऋषि ‘गाय बचाएं, देश बचाएं’ का नारा देते थे तथा इस नारे से मैं प्रेरित हुआ तथा मैंने गोसंवर्धन का कार्य हाथ में लिया । आरंभ में वर्ष २०१५ में हमने साळ, डिचोली में ‘श्वेत कपिला गोशाला एवं शोध केंद्र’ आरंभ किया । इस गोशाला के लिए श्री. दिगंबर राऊत ने भूमि दी थी । आगे जाकर यह भूमि अधुरी होने के कारण बडी गोशाला बनाने का विचार हुआ । गोशाला में गोवंश के लिए खावड की आपूर्ति के लिए (चारे के लिए) प्रतिदिन ८ लाख ५० सहस्र रुपए का व्यय होता है । सरकार की विभिन्न योजनाओं से मिलनेवाली आर्थिक सहायता तथा गोप्रेमियों द्वारा दिए जानेवाले चंदे से इस व्यय की आपूर्ति की जाती है । गोवा सरकार ‘घुमाऊ गायों का व्यवस्थापन’ योजना चलाती है । उसके कारण गोशाला का कार्य करने के लिए प्रोत्साहन मिला तथा सरकार की सहायता से यह गोशाला बडी बन गई है ।

२. ‘गोमाता ही सबकुछ करती है’, इस भाव से कार्य करना

‘केवल ९ वर्षाें में ही आपने इतनी बडी छलांग कैसे लगाई ? तथा आप इतनी बडी गोशाला कैसे चलाते हैं ?’, इस विषय में बताना हो, तो मैंने कुछ नहीं किया है, अपितु गोमाता ही सबकुछ करती है । सामान्य मनुष्य यह कार्य नहीं कर सकता, गोमाता ही हम सभी के माध्यम से यह कार्य करवा लेती हैं । इसके कारण इस कार्य में कोई बाधा नहीं आती । कोई बाधा आई भी, तब भी गोमाता के द्वारा ही उससे पूर्व ही उसका समाधान निकाला जा चुका होता है ।  ‘गोमाता विश्व की जननी तथा संकट निवारण करनेवाली है’, ऐसा पुराण में उल्लेख है । सभी का दुख सर्वप्रथम गोमाता के ही ध्यान में आता है । गोमाता में सभी देवताओं का वास होता है । गाय को आलिंगन देने से मनुष्य का तनाव एवं निराशा दूर होती है तथा रोग का निवारण होता है । विदेशी लोगों को हमें गाय का महत्त्व बताने की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि हमारे ऋषि-मुनियों ने प्राचीन काल से हमें गाय का महत्त्व बता रखा है । गाय का दूध तथा मूत्र प्राशन करने से मनुष्य के रोग दूर होते हैं । गाय का महत्त्व ध्यान में आने से आज धनवान लोग ‘पुंगनूर’ प्रजाति (यह गाय आकार से छोटी होती है) की गाय घर लाकर उसका पालनपोषण कर रहे हैं । इसके कारण लोगों से गाय की सेवा हो रही है । गोमाता का महत्त्व समझ में आया मनुष्य गाय की सेवा करता है, आनंदमय जीवन जीता है तथा जिसे गोमाता का महत्त्व ज्ञात नहीरं है, वह गाय की सेवा नहीं करता तथा वह जीवन में दुखी रह जाता है । मनुष्य दुख से बाहर निकलने हेतु गोमाता की शरण में चला जाए । गोमाता उसे किसी बात का अभाव होने नहीं देंगी ।

गोवा के मुख्यमंत्री डॉ. प्रमोद सावंत के द्वारा पुरस्कार का स्वीकार करते हुए श्री. कमलाकांत तारी (दाहिनी ओर)

३. गोमाता की महिमा समझ में न आने से यह समस्या उत्पन्न हुई है । वर्तमान समय में गोमाता की सेवा करनेवालों का अभाव है । हमें गोमाता की महिमा सब लोगों तक पहुंचानी है ।

‘गोमंतक गौसेवक महासंघ, गोवा’को प्राप्त विभिन्न पुरस्कार

वर्ष २०२२ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तों ‘गोमंतक गौसेवक महासंघ, गोवा’ को पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया गया । वर्ष २०२३ में ‘श्वेत कपिला’ (गोवा में मिलनेवाली गाय की एक प्रजाति) के गायों का संवर्धन करनेवाली भारत की पहली गोशाला के रूप में सम्मानित किया गया । इस वर्ष ‘इंडियन रिसर्च एग्रिकल्चर इंस्टिट्यूट’की ओर से इस गोशाला को ‘इनोवेटीव फार्मस’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।

४. गोशाला को आत्मनिर्भर बनाने हेतु किए जा रहे प्रयास

वर्ष २०२३ में सिकेरी की गोशाला को योगऋषि बाबा रामदेवजी का चरणस्पर्श हुआ । उस समय योगऋषि बाबा रामदेवजी ने ‘गोशाला आत्मनिर्भर बनाई जाए तथा उसके लिए किसी पर निर्भर रहना नहीं चाहिए’, यह सीख दी । उस समय योगऋषि बाबा रामदेवजी ने गोमूत्र से अनेक औषधियों की निर्मिति, गोअर्क, गोनाईल् (फर्श पोंछने हेतु गोमूत्र से बनाया जानेवाला रसायन) बाने की बडी परियोजना लगाने का सुझाव दिया तथा उसके लिए ५० लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी । इस वर्ष ये परियोजनाएं बडे स्तर पर आरंभ होनेवाली हैं । वर्तमान समय में इस गोशाला में गोबर से लकडियां बनाई जाती हैं तथा इन लकडियों का उपयोग स्मशानभूमि में हो सकता है । गोबर से उपलियां, ब्लॉक तथा विभिन्न प्रकार के ऊर्वरक बनाए जा रहे हैं ।

५. ‘प्रत्येक गांव की बस्तियों में एक गोशाला’ का संकल्प !

गोशाला सभी का प्रेरणास्रोत्र बने । गोशाला गोप्रेमियों तथा गोसेवकों की होनी चाहिए । इस स्थान पर प्रत्येक गोसेवक को निस्वार्थ भावना से काम कर गोमाता का आशीर्वाद प्राप्त करना चा हिए । गोशाला की ओर एक व्यवसाय के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, अन्यथा वह डेयरी कहलाएघी । गोशाला से आनेवाली आय का उपयोग गोशाला के उद्धार के लिए ही होना चाहिए । ‘गोवा राज्य में पहले चरण में प्रत्येक तहसील में न्यूनतम एक गोशाला, दूसरे चरण में प्रत्येक गांव अथवा पंचायत क्षेत्र में एक गोशाला तथा अंतिम चरण में प्रत्येक पंचायत के प्रत्येक प्रभाग में एक गोशाला होनी चाहिए । गांव के प्रत्येक मंदिर में न्यूनतम एक गोशाला अथवा ‘एक गाय एवं एक बछडा’ होना ही चाहिए । इसका लाभ सभी को मिल सकता है । आज युवा पीढी को सनातन संस्था जैसी संस्थाओं से मार्गदर्शन लेकर गोसावा के कार्य में सम्मिलिन होना आवश्यक है ।

६. गोसेवा में युवा वर्ग का सहभाग बढाने हेतु ‘गोमंतक गौसेवक महासंघ’ योजना

वर्तमान समय में युवा वर्ग गोसेवा में आए; इसके लिए ‘गोमंतक गौसेवक महासंघ’ अनेक योजनाएठ चला रहा है । किसी युवक को गोसेवा की इच्छा हो, तो वह गोशाला आए । हम उसे यहां भूमि, गायें तथा गायों के लिए चारा देंगे । उस युवक को केवल गाय का पालनपोषण करना है तथा गाय से मिलनेवाला दूध बेचकर अपनी गृहस्थि चलानी है । मये परिसर को कोई व्यक्ति गोसेवा का इच्छुक हो तथा उसके पास भूमि हो, तो ‘गोमंतक गौसेवक महासंघ’ उसकी सहायता करने के लिए तैयार है । प्रत्येक युवक यदि नौकरी के पीछे भागने लगा, तो शारिरीक परिश्रम के काम कौन करेगा ?  प्रत्येक व्यक्ति व्यवसाय अथवा नौकरी करे; परंतु प्रतिदिन वह न्यूनतम २ घंटे शारिरीक परिश्रम के काम करे; परंतु आज ऐसा होता हुआ दिखाई नहीं देता । युवा वर्ग देश की रक्षा तथा जीविका चलाने में अल्प पड रहा है । आज के युवकों में ‘काम करने की आवश्यकता नहीं है, सरकार हमें सबकुछ हमारे मुंह तक लाकर देती है’, यह भावना है ।

७. गोमंतकवासियों से आवाहन

नागरिक घर में बचा अन्न, हरी सब्जियां, चिकन, मटन, बोतल की कांच, लोहे के तार, स्क्रू ड्राइवर आदि प्लास्टिक की थैली में डालकर उसे कूढे में न फेंके; क्योंकि गायें ऐसे प्लास्टिक थैलियों में डालकर फेंके गए पदार्थ खाने के साथ उस थैली को भी खाती हैं । इससे गोवंश की मृत्यु हो रही है तथा प्लास्टिक एक गंभीर समस्या बन गई है  । सिकेरी की गोशाला में प्लास्टिक खाकर बीमार हो चुकी ४ गायों का हमने शल्यकर्म किया । इसमें एक गाय के पेट से ३५ किलो, दूसरी गाय के पेट से ५५ किल तथा तीसरी गाय के पेट से ७५ किलो प्लास्टिक बाहर निकला; परंतु हम उन गायों को बचा नहीं सके । अतः नागरिक प्लास्टिक थैलियों का उपयोग न्यूनतम करें ।

८. २५० लोग हैं ‘गोवंश गोद लें’ योजना के लाभधारक !

‘गोमंतक गौसेवक महासंघा’की ओर से ‘गोवंश गोद लें’ योजना चलाई जाती है । २५० लोग इस योजना का लाभ उठा रहे हैं । इसमें गोवा के मुख्यमंत्री डॉ. प्रमोद सावंत तथा पशुसंवर्धनमंत्री नीळकंठ हरळणकर का भी समावेश है । इसके अतिरिक्त गोशाला में ‘गोवंश गोद लें’ योजना, ‘गोदान योजना’, ‘सप्रेम दान योजना’, ‘अन्नदान योजना’ एवं ‘खाद्य दान योजना’ चलाई जाती हैं ।

‘गोमाता ही पालनपोषण करनेवाली है’, यह दर्शानेवाली विशेषतापूर्ण अनुभूति

कोरोना महामारी के काल में सिकेरी की गोशाला में १ सहस्र २०० गोवंश था । उस समय मैं घर-घर जाकर गोवंश के लिए आवश्यक खावड (चारा) इकट्ठा करता था । एक दिन ऐसी स्थिति आ गई की, उस दिन कुछ भी खावड नहीं मिली । उसके कारण गोवंश को थोडीसी भी खावड दे नहीं पाया; इसलिए मैंने सभी गोवंश को निकट के खुले खेत में छोड दिया । गोवंश को गोशाला में ही खावड खाने की आदत होने से सभी गायें तुरंत ही गोशाला लौटी । उस दिन सर्व गोवंश केवल पानी पर था । दूसरे दिन भी खावड नहीं मिली । गोवंश को पुनः खेत में खुला छोडा; परंतु वह वहां कुछ न खाकर पुनः गोशाला लौटा । दूसरे दिन केवल पानी तथा खाने के लिए कुछ भी नहीं की स्थिति थी । उस दिन सायंकाल गायों के रंभाने की (रोने की) आवाज आई तथा उनकी आंखों से आंसू बहने लगे । इसी प्रकार से तीसरा दिन भी बीत गया ।  

चौथे दिन मैंने तबेले में जाकर गायों के सामने साष्टांग नमस्कार किया तथा गोमाता के सामने अपनी नाक घिसकर ‘‘इतने दिन तक मुझे लगता था कि मैं ही तुम सभी को खाने के लिए देता हूं, लोगों से पैसे इकट्ठा कर तुम सभी को पालता हूं तथा यह संपूर्ण व्यवस्था मैंने ही बनाई है; परंतु अब यह बात मेरे ध्यान में आई है कि यह सब करनेवाला मैं कोई नहीं हूं, अपितु हे गोमाता, आप ही यह सब करती हैं, यह बात अब मेरे समझ में आई है । अतः अब आप ही संपूर्ण दायित्व का स्वीकार कीजिए ।’’त्यामुळे तू सर्व दायित्व स्वीकार’’, ऐसा कहकर मैं बहुत रोया । हम सभी ने ३ दिन कुछ नहीं खाया । उसके उपरांत तीसरे दिन रात ३.३० बजे मुझे एक चलित भ्रमणभाष आया । उस पर बात करनेवाले व्यक्ति ने बताया, ‘बाहर खावड की दो गाडियां खडी हैं, उन्हें तुम उतार लो ।’ मैंने दौडते हुए जाकर खावड लाकर गायों को दी तथा जिसने मुझे चलित भ्रमणभाष किया था, उसे ‘धन्यवाद’ बोलने के लिए मैंने उसे भ्रमणभाष किया; परंतु उस व्यक्ति का चलित भ्रमणभाष बंद था । उसके १६ दिन उपरांत उस व्यक्ति ने मेरा चलित भ्रमणभाष उठाया । मैंने उसे ‘हमारी गोशाला में चारा भेजने के लिए मैं आपका आभारी हूं’, ऐसा कहा । उस पर उस व्यक्ति ने कहा, ‘‘आप आभार क्यों व्यक्त कर रहे हैं । आपकी गोशाला में खावड भेजने के लिए ३ दिन पूर्व मुझे संकेत मिला था, उसके अनुसार मैंने कृति की है ।’’ इस घटना के उपरांत आज तक गोशाला में गोवंश के लिए कभी भी खावड का अभाव नहीं हुआ है । गोशाला का गोदाम खावड से भरा पडा है ।

– श्री. कमलाकांत तारी

९. गोवा सरकार के साथ घुमाऊ पशुओं के लिए चलाई जा रही योजना

गोवा सरकार ‘घुमाऊ पशु व्यवस्थापन’ योजना चलाती है । इसके अंतर्गत उत्तर गोवा के अनेक पंचायतों ने घुमाऊ पशुओं के व्यवस्थापन की दृष्टि से ‘गोमंतक गौसेवक महासंघ, गोवा’से समझौता किया है । इसके अंतर्गत सडक पर घूमनेवाले तथा दुर्घटना में घायल पशु पालनपोषण के लिए लाए जाते हैं । इसके उपरांत राज्य सरकार संबंधित पंचायत के माध्यम से गोवंश के पालनपोषण हेतु प्रत्येक गोवंश के लिए एक विशिष्ट धनराशि देती है ।