Language Barriers In Education : बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा देने से वे अधिक अच्छे से सीखते हैं ।

  • यूनेस्को की रिपोर्ट के निष्कर्ष ।

  • दुनिया के 40% बच्चों को ऐसी भाषा में शिक्षा नहीं मिलती, जिसे वे बोल सकते हैं या समझ सकते हैं।

(यूनेस्को यानी यूनाइटेड नेशंस एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गनाइजेशन – संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन)

पेरिस (फ्रांस) – बच्चों को उसी भाषा में पढ़ाया जाए, जो वे घर पर बोलते हैं, तो वे अधिक अच्छे से सीखते हैं । यदि उन्हें किसी अन्य भाषा में पढ़ाया जाए, तो उनमें हीनभावना आ सकती है, जिससे उनकी सीखने की क्षमता में भी अंतर आ सकता है । यूनेस्को की हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट “भाषा मामले : बहुभाषी शिक्षा पर वैश्विक दिशानिर्देश” में यह निष्कर्ष दिया गया है।

रिपोर्ट में दिए गए निष्कर्षों की जानकारी–

१. विश्व के ४०% बच्चों तथा युवाओं को उनकी मातृभाषा में पढ़ने की सुविधा नहीं मिलती । परिणामस्वरूप, वे विद्यालय तो जाते हैं, लेकिन साधारण पाठ नहीं पढ़ सकते और सरल गणितीय प्रश्न का समाधना नहीं कर सकते ।

२. वर्ष २०१६ में ६१ करोड ७० लाख बच्चे बुनियादी साक्षरता और गणित नहीं सीख रहे थे । इनमें से दो-तिहाई बच्चे स्कूल जाते थे । कोरोना महामारी से पहले, निम्न और मध्यम आय वाले देशों में १० वर्ष के ५७% बच्चे साधारण पाठ पढ़ने में असमर्थ थे । महामारी के बाद यह आंकड़ा बढ़कर ७०% हो गया ।

३. गुजरात में बोली जाने वाली वागड़ी भाषा राजस्थान के डूंगरपुर जिले में भी बड़े पैमाने पर बोली जाती है । वर्ष २०१९ में, वहां के शिक्षकों ने बच्चों को केवल वागड़ी भाषा में पढ़ाना शुरू किया । कुछ समय पश्चात जब बच्चों का मूल्यांकन किया गया, तो पाया गया कि उनकी पढ़ने की क्षमता पहले से कहीं अधिक अच्छी हो गई है । यूरोप तथा अफ्रीका में भी ऐसे ही परिणाम देखने को मिले हैं । यदि किसी बच्चे को उसकी मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा दी जाती है, तो उसे अन्य भाषाएं सीखने में आसानी होती है । साथ ही, ६ से ८ वर्ष की आयु के बच्चे, जो मातृभाषा में पढ़ते हैं, वे आधिकारिक भाषा में पढ़ने वाले बच्चों की तुलना में अधिक अच्छा प्रदर्शन करते हैं ।

भारत की “राष्ट्रीय शिक्षा नीति”

भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत, विद्यार्थियों को तीन भाषाएं सीखनी होंगी; लेकिन कोई भी भाषा अनिवार्य नहीं होगी । राज्यों और स्कूलों को यह निश्चित करने की स्वतंत्रता होगी कि कौन-सी तीन भाषाएं सिखाई जाएं ।

प्राथमिक कक्षाओं (कक्षा १ से ५) में शिक्षा मातृभाषा अथवा स्थानीय भाषा में देने की सिफारिश की गई है ।

माध्यमिक स्तर (कक्षा ६ से १०) में तीन भाषाएं सीखना अनिवार्य होगा ।

हिन्दी भाषी राज्यों में अंग्रेजी अथवा कोई आधुनिक भारतीय भाषा पढ़ाई जाएगी, जबकि गैर-हिंदी राज्यों में अंग्रेजी अथवा कोई अन्य भारतीय भाषा विकल्प के रूप में होगी ।

यदि कोई स्कूल चाहे, तो उच्च माध्यमिक स्तर (कक्षा ११ और १२) में विदेशी भाषा भी एक विकल्प के रूप में उपलब्ध कर सकता है ।

संपादकीय भूमिका 

भारत के हिन्दू यदि इसे समझेंगे, तो वह शुभ दिन होगा । यदि हिन्दू अंग्रेजी की गुलामी छोड़ दें, तो भारत में नालंदा और तक्षशिला जैसी उच्च स्तरीय विश्वविद्यालयों की स्थापना होने में देर नहीं लगेगी ।