‘जमियत उलेमा-ए-हिन्द हलाल ट्रस्ट’ द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में युक्तिवाद
नई दिल्ली- हलाल प्रमाणपत्र के संदर्भ में केंद्र सरकार एवं ‘जमियत उलेमा-ए-हिन्द हलाल ट्रस्ट’ के मध्य का अभियोग सर्वोच्च न्यायालय में चल रहा है । ‘लोहे की सलाखें एवं सिमेंट जैसे उत्पादों को दिए गए हलाल प्रमाणपत्र न्याय के विरुद्ध है ।’ इस केंद्र सरकार के युक्तिवाद का ट्रस्ट ने विरोध किया है । ट्रस्ट ने कहा ‘हलाल प्रमाणपत्र केवल अन्न तक सीमित नहीं, अपितु वह एक बडे समुदाय के धार्मिक श्रद्धा एवं जीवनशैली का एक भाग है । यह सूत्र भारतीय संविधान धारा २५ एवं २६ के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित है । (यदि ऐसा है, तो हलाल प्रमाणित अन्नपदार्थ हिन्दुओं की धार्मिक आस्था का हनन करते हैं, इसे क्या कहें ? – संपादक) हलाल प्रमाणपत्र से संबंधित कृत्य संविधानिक अधिकार अंतर्गत सम्मिलित हैं ।’ धारा २५ नागरिकों को अपने धर्म का पालन एवं प्रचार करने का अधिकार देती है, जबकि धारा २६ धार्मिक बातों का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता सुनिश्चित करती है ।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रकरण की आगे की सुनवाई २४ मार्च से चालू होनेवाले सप्ताह में रखी है ।
अनावश्यक उत्पादों पर हलाल प्रमाणपत्र क्यों ?
केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा ‘लोहे के सलाखों एवं सिमेंट जैसे उत्पादों का हलाल प्रमाणिकरण करना, कोई बुद्धिमत्ता नहीं । जिन लोगों का इस संकल्पना से कोई लेन-देन नहीं, वे हलाल-प्रमाणित उत्पादों के लिए अधिक मूल्य क्यों दें ?’ हलाल प्रमाणन प्रक्रिया के संदर्भ में आर्थिक पारदर्शिता पर भी शासन ने प्रश्न खड़े किए ।
(और इनकी सुनिए…) ‘हलाल प्रमाणपत्र केवल धार्मिक आस्था से जुडने की अपेक्षा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से भी जुडा हुआ !’
इसपर ट्रस्ट ने कहा ‘हमने कभी भी लोहे की सलाखें अथवा सिमेंट को हलाल प्रमाणपत्र नहीं दिया । अन्न एवं उसे तैयार करने हेतु प्रयोग में लाए गए घटकों का चयन करना, यह प्रत्येक व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार है । किसी व्यक्ति को क्या खाना चाहिए एवं क्या नहीं, यह निश्चित करने का अधिकार सरकार को नहीं है । हलाल प्रमाणपत्र केवल धार्मिक श्रद्धा से नहीं, अपितु अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं वाणिज्य से जुडा हुआ है । अनेक इस्लामी देशों में हलाल प्रमाणित उत्पादों की मांग अधिक है, इस कारण यह प्रमाणपत्र वैश्विक व्यापार का एक भाग बन गया है । (इस्लामी देशों में हलाल प्रमाणित उत्पाद यदि चाहिए, तो भारतीयों को कोई आपत्ति नहीं; परंतु भारत में उसे सभी के लिए अनिवार्य क्यों किया जा रहा है ? – संपादक)
आर्थिक अनियमितता के आरोप अस्वीकार कर दिए
केंद्र शासन ने
हलाल प्रमाणन संस्थाओं से करोडों रुपए एकत्रित कर वह धन अन्य गतिविधियों पर लगाने का आरोप लगाया था । तब ट्रस्ट ने कहा ‘ये आरोप पूर्णतः निराधार हैं । हमारे आर्थिक कागदपत्र पहले से ही आयकर एवं जी.एस.टी. (वस्तु एवं सेवा राजस्व) विभागों के पास हैं तथा सरकार को उसका पूरा भान है ।
उत्तर प्रदेश सरकार की अधिसूचना से विवाद निर्माण हुआ
उत्तर प्रदेश सरकार ने हलाल प्रमाणित अन्न उत्पादों के उत्पाद, संग्रह, विक्रय एवं वितरण पर प्रतिबंध लगाने की अधिसूचना प्रसारित करने के उपरांत विवाद चालू हुआ । तथापि, इस आदेश में केवल निर्यात हेतु उत्पादित किए गए उत्पादों को छूट दी गई है ।
संपादकीय भूमिकाइसे कहते हैं, अपनी सुविधा के अनुसार एकाध धार्मिक बात का अर्थ बताकर उसके द्वारा स्वयं को धनी बनाना । सर्वोच्च न्यायालय ऐसे दांभिक एवं झूठे युक्तीवाद को सम्मति देने की अपेक्षा भारतीयों को हलालमुक्त उत्पाद उपलब्ध कराने का निर्णय दे, जनता यही अपेक्षा करती है ! |