Govind Pansare Murder Case : कॉ. गोविंद पानसरे हत्या प्रकरण में ६ लोगों को जमानत मिली

गोविंद पानसरे

मुंबई – मुंबई उच्च न्यायालय ने आधुनिकतावादी तथा कम्युनिस्ट कॉ. गोविंद पानसरे हत्या प्रकरण में संदिग्ध सचिन अंदुरे, गणेश मिस्किन, अमित देगवेकर, भरत कुराने, अमित बड्डी और वासुदेव सूर्यवंशी को जमानत दी । ‘इस प्रकरण का शीघ्र समाधान होने की संभावना नहीं है । आरोपी लंबे समय से हिरासत में हैं । जांच में सफलता अथवा महत्वपूर्ण प्रगति न होने के कारण आरोपी जमानत के पात्र हैं ।’ मुंबई उच्च न्यायालय ने २९ जनवरी को यह निर्णय सुनाया । न्यायमूर्ति ए.एस. किल्लोर की एकल पीठ ने यह निर्णय दिया । उच्च न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि प्रकरण का शीघ्र निपटारा करने के लिए प्रकरण की प्रतिदिन सुनवाई की जाए । वरिष्ठ अधिवक्ता नितिन प्रधान, अधिवक्ता सिद्धविद्या और अधिवक्ता पुष्पा गनेडीवाला ने संदिग्धों की ओर से कार्यवाही संभाली । उच्च न्यायालय ने संदिग्धों को २५,००० रुपये के निजी जमानत बांड पर जमानत पर प्रत्येक महीने की १ और १६ दिनांक को कोल्हापुर के राजारामपुरी पुलिस थाने में उपस्थित होने को कहा है ।
डॉ. वीरेंद्र तावड़े की जमानत याचिका पर उच्च न्यायालय अलग से सुनवाई करेगा क्योंकि यह याचिका देर से दायर की गई थी । उपरोक्त संदिग्धों को २०१८ और २०१९ के बीच बंदी बनाया गया था । “हम पिछले ६ वर्षों से बंदी हैं और मुकदमा अभी भी चल रहा है तथा निकट भविष्य में इसकी समाप्ति की संभावना नहीं है ।” ऐसा कहते हुए संदिग्ध ने जमानत के लिए मुंबई उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था ।

मुंबई उच्च न्यायालय ने पानसरे परिवार द्वारा दायर याचिका का निपटारा कर दिया था, जिसमें पानसरे की हत्या के मुख्य अपराधी का पता चलने तक प्रकरण की जांच की निगरानी जारी रखने का अनुरोध किया गया था । ‘दो आरोपी व्यक्तियों की जांच को छोड़कर, कॉ. गोविंद पानसरे की हत्या की सभी पहलुओं से जांच की गई है । उच्च न्यायालय ने भी कुछ दिन पहले स्पष्ट किया था कि फरार आरोपियों के कारण जांच की देखरेख न्यायालय को करने की कोई आवश्यकता नहीं है ।

जमानत का निर्णय घोषित होने के बाद, कॉ. गोविंद पानसरे की बहू मेघा पानसरे ने कहा, “क्या हमें सर्वोच्च न्यायालय जाना चाहिए ?” हम अधिवक्ताओं से इस संदर्भ में चर्चा करेंगे । मुख्य आरोपी अभी भी फरार हैं ।

जांच की पृष्ठभूमि !

६ फरवरी २०१५ को, कॉ. गोविंद पानसरे को कोल्हापुर में गोली मार दी गई । चार दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई । गौरी लंकेश हत्या प्रकरण में गिरफ्तारियों के बाद पानसरे के प्रकरण में उपरोक्त संदिग्धों को बंदी बनाया गया था । प्रकरण की जांच पहले कोल्हापुर पुलिस ने की, फिर राज्य अपराध जांच विभाग (सी.आई.डी) ने और बाद में विशेष जांच दल (एस.आई.टी) ने की । इस प्रकरण में १० आरोपियों को बंदी बनाया गया और ४ आरोपपत्र प्रविष्ट किये गये । यह दावा करते हुए कि वे मुख्य आरोपी को ढूंढने में असफल रहे हैं, पानसरे परिवार ने मांग की थी कि जांच आतंकवाद निरोधक दस्ते ए.टी.एस को सौंपी जाए । इस मांग को स्वीकार करते हुए मुंबई उच्च न्यायालय ने वर्ष २०२२ में प्रकरण की जांच ए.टी.एस को सौंप दी ।

संदिग्धों को बिना किसी संदर्भ के बंदी बनाया था ! – वरिष्ठ अधिवक्ता नितिन प्रधान, मुंबई उच्च न्यायालय

न्याय हुआ; लेकिन बहुत देर हो चुकी थी । एक भी क्लू (सुराग) न होते हुए संदिग्धों को बंदी बनाया गया था । उन्हें बंदी बनाया गया, जबकि उनका प्रकरण से, प्रकरण से संबंधित किसी प्रमाण से, प्रकरण के पीछे किसी कारण से, किसी से भी कोई संबंध नहीं था । उन्हें सात वर्ष तक जेल में रहना पड़ा । कई न्यायाधीशों ने कहा कि अपराधियों को न्याय देने की हमारी प्रणाली ध्वस्त हो गई है । यह प्रकरण इसका प्रतीक है । इसलिए, भले ही देरी हो, लेकिन न्याय तभी मिलता है जब प्रकरण उचित न्यायालय में आता है । इसलिए आम लोगों का न्यायपालिका पर अभी भी विश्वास है ।

देर हुई; लेकिन अंततः देरी से ही सही, न्याय मिला । इसलिए हम प्रसन्न हैं – अधिवक्ता पुष्पा गनेडीवाला

मुंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि पानसरे हत्या में षड्यंत्र होने के बार-बार किए जा रहे दावे प्रथम दृष्टि में विश्वसनीय नहीं लगते ! – अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर, राष्ट्रीय अध्यक्ष, हिन्दू विधिज्ञ परिषद

अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर

पानसरे हत्या प्रकरण में मुकदमा अपेक्षित गति से आगे नहीं बढ़ रहा था । मुंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि इस हत्या में षड्यंत्र की बात बार-बार कही जा रही है, जो प्रथम दृष्टि से सुसंगत नहीं लगती । “मुझे लगता है कि यह इस मामले में अधिवक्ता नितिन प्रधान, अधिवक्ता पुष्शा गनेडीवाला, अधिवक्ता सिद्धविद्या द्वारा प्रस्तुत तर्कों और जिस तरह से उन्होंने न्यायालय में अपना पक्ष प्रस्तुत किया, उसकी सामूहिक जीत है ।”

यदि हम पिछले ४-५ वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई जमानत पर दृष्टि डालें तो, यदि आरोपी ४ महीने, ६ महीने अथवा डेढ़ वर्ष तक जेल में रहा हो तो भी जमानत दी जाती है । इसलिए, इन संदिग्धों को, जो इतने लम्बे समय, अर्थात् ६ वर्षों से जेल में हैं, निश्चित रूप से जमानत दी जानी चाहिए । इसलिए, यदि इस निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील भी प्रविष्ट की जाती है तो वह टिक नहीं पाएगी । शेष दो आरोपियों की जमानत कोल्हापुर जिला एवं सत्र न्यायालय में लंबित है और इसकी सुनवाई १२ फरवरी को होगी । उच्च न्यायालय ने जो निरीक्षण लिखा है, निश्चित ही उससे हमें लाभ होगा; क्योंकि बाकी आरोपी भी पिछले ६ वर्ष से जेल में हैं ।