मद्रास उच्च न्यायालय का ‘मुस्लिम व्यक्तिगत कानून’ को विचार में नहीं लिया !

१. दूसरा विवाह करने के प्रकरण में मुसलमान डॉक्टर को उसकी पत्नी को ५ लाख रुपए सहायता राशि देने का मद्रास उच्च न्यायालय का आदेश

‘एक मुसलमान डॉक्टर दंपति में विवाद हुआ । उसके कारण डॉक्टर पति ने उसकी डॉक्टर पत्नी को तीन तलाक (विवाहविच्छेद) देकर दूसरा विवाह किया । उसके उपरांत उसकी डॉक्टर पत्नी ने ‘महिलाओं को पारिवारिक हिंसा संरक्षण कानून’ के अंतर्गत उसके पति के विरुद्ध न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की । उसमें सहायता राशि मिलना आदि मांगें की । पति ने पत्नी द्वारा लगाए सभी आरोपों को झूठ बताया । उसके उपरांत उच्च न्यायालयाने मुसलमान डॉक्टर पति को उसकी पत्नी को ५ लाख रुपए सहायताराशि देने का आदेश दिया । यहां उच्च न्यायालय ने ‘पारिवारिक हिंसा २००५’ के अनुच्छेद ३ का विचार किया । उसके अनुसार हिन्दू, ईसाई, पारसी एवं यहूदियों ने पहली पत्नी से विवाहविच्छेद न कर यदि दूसरा विवाह किया (पहली पत्नी से विवाहविच्छेद न देकर), तो उनके विरुद्ध आपराधिक अभियोग पंजीकृत किया जा सकता है । इस प्रकरण में न्यायाधीश ने कहा, ‘यदि मुस्लिम व्यक्तिगत कानून’ के अनुसार २ विवाह करने में भले ही अनुमति हो, तब भी इस प्रकरण में पति ने दूसरा विवाह किया तथा पहली पत्नी का उत्पीडन भी किया । उसके कारण उसे ५ लाख रुपए सहायता राशि दी जाए, यह जो कनिष्ठ न्यायालय ने आदेश दिया है, वह उचित है ।’

(पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी जी

यहां केवल सहायता राशि के देने तक यह विवाद सीमित था; परंतु डॉक्टर पति ने यह भूमिका ली थी कि उसने पत्नी को तीन तलाक दिया है, तो वह सहायता राशि के रूप में ५ लाख रुपए क्यों दे ?  इसपर न्यायालय ने कहा, ‘यह न्यायालय तीन तलाक को मान्यता नहीं देता । यदि पति-पत्नी ने न्यायालय जाकर विवाहविच्छेद किया होता, तो बात अलग थी । इस प्रकरण में निर्णय देते हुए न्यायालय ने मुसलमानों को तलाक देने के संबंध में जो असीमित अधिकार दिए हैं, उसमें सर्वोच्च न्यायालय से लेकर विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा दिए निर्णयों का संदर्भ दिया । उसमें मुसलमान महिलाओं के साथ कैसे अन्याय होता है, यह बताकर कानून में संशोधन करने का महत्त्व विशद किया ।

२. मुसलमान परंपराओं के समर्थक तथा हिन्दुओं की आलोचना करनेवाले आधुनिकतावादी विचारक

कथित आधुनिकतावादी (?) सदैव ही बोलते रहते हैं कि ‘हिन्दू धर्म में महिलाओं पर अत्याचार किए जाते हैं’ तथा वे कितने सुधारवादी हैं, यह दिखाने का प्रयास करते हैं । मुसलमान पंथ में मुगलों के काल से ही महिलाओं पर अत्याचार किए जा रहे हैं; परंतु ये कथित आधुनिकतावादी उसके विरुद्ध कभी नहीं बोलते । सभी राजनीतिक दल मुसलमान समुदाय की ओर वोटबैंक के रूप में देखते हैं, उनके तुष्टीकरण में लगे रहते हैं तथा मुसलमान महिलाओं पर होनेवाले अत्याचारों की अनदेखी करते हैं ।

३. केंद्र सरकार को देश में देशहित के कानून बनाने में समस्याएं

केंद्र की भाजपा सरकार ने इस्लाम में स्थित तीन तलाक जैसी प्रथाओं को अवैध प्रमाणित किया; परंतु तब भी मुसलमान अन्य प्रकार से उनकी महिलाओं का शोषण करते रहते हैं । स्वतंत्रता के उपरांत कांग्रेस की सरकारों ने हिन्दुओं के विरोध में अनेक कानून बनाए । उन्होंने ‘हिन्दू कोड बिल’ जैसा विधेयक लाकर द्विभार्या प्रतिबंधक कानून लाया, तो दूसरी ओर मुसलमानों को खुली छूट दी । वर्तमान में मोदी के नेतृत्व में चल रही केंद्र सरकार ‘समान नागरिक संहिता’, ‘संतति नियमन’, ‘भारतीय नागरिकता संशोधन कानून’, ऐसे कुछ अच्छे कानून लाने का प्रयास कर रही है, साथ ही ‘वक्फ कानून’ में भी संशोधन करने का प्रयास कर रही है; परंतु उसे उनका कार्यान्वयन करना कठिन हो गया है ।

देश में मुसलमान समुदाय को एक से अधिक विवाह करने का अधिकार है; परंतु संतति नियमन की मुख्य समस्या है । लव जिहाद ‘जैसे थे’ बना हुआ है । बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण अनेक राज्यों में ‘डेमोेग्राफी’ (जनसंख्या का स्तर) बदल गया है । हिन्दू उनके त्योहारों को हर्षाेल्लास के साथ मना नहीं सकता । भारत के विरोध में सदैव ही इस्लामी राष्ट्रों का पक्ष लिया जाता है; परतुं पुलिस एवं प्रशासन कुछ नहीं करता । इस संदर्भ में केंद्र सरकार से हिन्दुओं को बहुत अपेक्षाएं हैं । यदि इन समस्याओं का समाधान किया गया, तभी भारत में स्थिरता, शांति, सुरक्षा तथा संप्रभुता टिके रहेंगे ।’

श्रीकृष्णार्पणमस्तु ।

– (पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी, मुंबई उच्च न्यायालय (६.११.२०२४)