उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विगत २७ वर्षों से राजनीति में हैं । उससे पूर्व उनके गुरु महंत अवैद्यनाथ राजनीति में थे । साध्वी उमा भारती भी अनेक वर्षाें से राजनीति में सक्रिय हैं । साध्वी निरंजन ज्योति केंद्रीय राज्यमंत्री थीं । अनेक वर्षाें से ऐसे अनेक साधु तथा संन्यासी भारतीय राजनीति में सक्रिय हैं । भारतीय संविधान के अनुसार किसी भी धर्म के धर्मगुरु, संत, महंत, पादरी, भंते (बौद्ध भिक्षुक) आदि राजनीति में आ सकते हैं; इसलिए यदि कोई ऐसा कहता है कि ऐसे लोग राजनीति में न आकर उनके धर्म का कार्य करें, तो वह संविधान के विरुद्ध दिया गया वक्तव्य होगा । योगी आदित्यनाथ के ‘बटेंगे तो कटेंगे’, इस वक्तव्य के कारण केवल देश के ही नहीं, अपितु पूरे विश्व के हिन्दुओं को एकता का संदेश मिला है तथा हिन्दू विरोधी राजनीतिक दलों को उसके परिणाम में अपनी पराजय दिखाई दे रही है । उसके कारण ये राजनीतिक दल तिलमिलाकर इस नारे की आलोचना कर रहे हैं । कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की प्रचारसभा में योगी आदित्यनाथ की आलोचना करते हुए अत्यंत आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया । संतों के विषय में कैसे बोलना चाहिए, ८२ वर्षीय खडगे यह मर्यादा भी भूल गए । इससे यह ध्यान में आता है कि योगी आदित्यनाथ के इस नारे से कांग्रेस को कितना कष्ट हो रहा है । खडगे ने तो सीधे योगी को राजनीति छोडकर संन्यासी का जीवन जीने का सुझाव दे दिया । भारतीय धर्मशास्त्र के अनुसार खडगे की आयु को देखते हुए उन्हें ही संन्यास लेना अपेक्षित है, तब भी वे द्वार-द्वार भटकते हुए मतों की भीख मांग रहे हैं । ‘केवल नाम के लिए कांग्रेस के अध्यक्ष खडगे, गांधी परिवार के गुलाम ही हैं’, ऐसा जनता का मानना है । ‘गांधी परिवार जो बोलेगा, वे उसके अनुसार ही बोलते तथा आचरण करते हैं’, जनता को यही दिखाई दे रहा है ।
एक संत, महंत तथा संन्यासी पर बोलने की क्या उनकी योग्यता है ? ‘केवल आयु बढ जाने से समझदारी आती है’, ऐसा नहीं है’, खडगे की बातों से यह ध्यान में आता है । उनके इस वक्तव्य का सूत्रधार कौन है, जनता यह भी जानती है । कांग्रेस का इतिहास ही हिन्दू, धर्म, देवता एवं संतों का द्वेष करनेवाला है । इस देश से मुगलों तथा अंग्रेजों की सत्ता जाने के उपरांत कांग्रेस ने उन्हीं के उत्तराधिकारी के रूप में ६० से अधिक वर्ष सत्ता चलाकर हिन्दुओं का दमन किया । कांग्रेस के कारण ही देश का विभाजन हुआ । वर्तमान में भी कांग्रेस के कारण ही देश का पुन: विभाजन होने की स्थिति उत्पन्न हो गई है । ऐसी कांग्रेस से देश को बचाने का कार्य गुंडे अथवा राजनेता नहीं कर सकते, अपितु हिन्दुओं के सच्चे (पाखंडी नहीं) संत-महंत ही कर सकते हैं, अब जनता को योगी आदित्यनाथ के कारण यह सूत्र स्पष्ट दिखाई दे रहा है । असुरों को सुरों से भय लगता है, वैसे ही कांग्रेस को योगी से भय लगने लगा है । उसके कारण वे उन्हें राजनीति से संन्यास लेने का सुझाव दे रहे हैं; परंतु ‘संत कांग्रेसमुक्त भारत बनाए बिना अब नहीं रुकेंगे’, यही वर्तमान स्थिति है । हिन्दुओं के सामने अपने धर्म की रक्षा करने हेतु कांग्रेस को मिटाने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है, खडगे के इस वक्तव्य से यह बात पुनः स्पष्ट होती है ।
राजनीति एक्जिमा है !
भारत ने वर्ष १९५० में लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्वीकार कर संविधान बनाया । इस व्यवस्था में धर्मनिरपेक्ष शासनतंत्र चलाना सुनिश्चित किया गया । उसके कारण बहुसंख्यक हिन्दुओं का भारत धर्मविहीन बन गया तथा कांग्रेस में, देश में यह विचार स्थापित किया गया कि ‘हिन्दू धर्म का विरोध ही सच्ची धर्मनिरपेक्षता है ।’ धर्म से दूर हो चुके हिन्दुओं ने भेड-बकरियों की भांति इस विचार को स्वीकार किया तथा उसके कारण विगत ७८ वर्षाें से वे काटे जा रहे हैं । योगी आदित्यनाथ आज यही बता रहे हैं, ‘यदि आप जातियों में बंट जाओगे, तो कट जाओगे; इसलिए बंटो मत !’ कांग्रेस ने हिन्दुओं को धर्म से दूर ले जाकर उनके मन एवं बुद्धि में धर्म विरोधी विचारों का रोपण किया । आज हिन्दुओं को इसका भान हो रहा है तथा वे हिन्दू के रूप में पुनः संगठित हो रहे हैं । इसके कारण ही हिन्दुओं को विभाजित कर सत्ता प्राप्त करनेवालों के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई है । जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराजजी ने स्पष्ट कहा है, ‘केवल दबंग तथा गुंडे ही राजनीति में आ सकते हैं, ऐसा कहीं लिखा नहीं है’, साथ ही उन्होंने यह भी बताया, ‘छत्रपति शिवाजी महाराज ने भगवा फहराकर देश को संगठित किया ।’ इससे भगवा रंग सनातन धर्म का है तथा उस रंग का पालन करनेवाले लोग यदि राजनीति में आकर देश को पुनर्वैभव वापस दिलाते हों, तो वह उचित, साथ ही आवश्यक भी है । उसके कारण उनके पेट में भय से दर्द होना भी स्वाभाविक है । वर्तमान में भ्रष्टाचार, आतंकवाद, विभिन्न जिहाद, घुसपैठ, हिन्दुओं का अल्पसंख्यक बनना आदि समस्याओं से देश संकट में है । प्रधानमंत्री मोदी देश का विकास कर रहे हैं । भारत विश्व की पांचवीं बडी अर्थव्यवस्था बन गया है । भले ही यह सब अच्छा हो; परंतु इसके साथ देश के हिन्दू तथा उनका धर्म सुरक्षित हो, तभी इसका कुछ अर्थ है । हिन्दू यदि असुरक्षित हुए अथवा नष्ट हुए, तो भारत की स्थिति अफगानिस्तान, पाकिस्तान तथा बांग्लादेश जैसी होगी । इसलिए वर्तमान में देश को योगी आदित्यनाथ जैसे भगवा धारण करनेवाले संन्यासियों, संतों एवं त्यागियों की आवश्यकता है । उनके जैसे निष्काम संन्यासी यदि प्रत्येक राज्य के सरकार में हों अथवा उनके हाथ में सत्ता हो, तो इस देश तथा हिन्दू धर्म का परिदृश्य कैसा होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है । छत्रपति शिवाजी महाराज ने हाथ में भगवा लेकर ५ बादशाहों को नष्ट कर शिवशाही की स्थापना की । वर्तमान में राजनीति का भगवाकरण कर वही कार्य करने की आवश्यकता है । उसके बिना राजनीति का शुद्धीकरण नहीं हो सकता । शिवसेना प्रमुख हिन्दूहृदय सम्राट बाळासाहेब ठाकरे ने ‘राजनीति एक्जिमा है’, ऐसा कहा था । आज की स्थिति देखी जाए, तो जनता की दृष्टि से राजनीति एक्जिमा के भी अगले स्तर तक पहुंच गई है । इस गंदगी को स्वच्छ करने हेतु राजनीति का भगवाकरण करना आवश्यक है ।
हिन्दू धर्माचरण करें !
राजनीति का भगवाकरण करने के लिए हिन्दुओं को धर्माचरण एवं साधना करना अत्यंत आवश्यक है । मुसलमान दिन में ५ बार नमाज पढते हैं, रमजान की अवधि में कठिन उपवास रखते हैं तथा धर्म के लिए प्राण त्यागने की तैयारी रखते हैं । उनकी तुलना में कितने हिन्दू धर्माचरण करते हैं तथा धर्म के प्रति गर्व रखकर धर्म की रक्षा हेतु छत्रपति शिवाजी महाराज की भांति कार्य करने की इच्छा रखते हैं ? यह एक प्रश्न है । इसलिए हिन्दुओं का आध्यात्मिकीकरण होना आवश्यक है । जनता यदि साधना करनेवाली हो, तो वह धर्माचरणी तथा सात्त्विक व्यक्ति को ही सत्ता में बिठाएगी । आगे जाकर इसी जनता से धर्माचरण करनेवाले लोग राजनीति में आएंगे तथा यही आज की आवश्यकता है ।
राजनीति का भगवाकरण करने हेतु सच्चे संत ही राजनीति की धुरी संभालें, ऐसा हिन्दुओं को लगता है, तो उसमें अनुचित क्या है ? |