श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ‘गुरुदेवजी का मनोरथ जानकर’ तथा इस चरण से भी आगे जाकर ‘सप्तर्षि तथा ईश्वर के मनोरथ’ को समझकर दैवी कार्य कर रही हैं !

‘श्रीसत्‌शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी मेरी आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणियां हैं । उनमें से श्रीसत्‌शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी स्थूल का कार्य देखती हैं तथा श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी सूक्ष्म का कार्य देखती हैं, उनके कार्याें से ऐसा ध्यान में आता है । इन दोनों कार्याें में से श्रीसत्‌शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी के स्थूल का कार्य थोडा-बहुत तो समझ में आ सकता है; परंतु ‘श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी सूक्ष्म का कार्य कैसे करती हैं ?’, इसकी सभी को जिज्ञासा होगी, वैसी जिज्ञासा मुझे भी थी । श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी द्वारा उस विषय में थोडा सा बताने पर मुझे वह ज्ञात हुआ ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी

१. श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के सूक्ष्म कार्य की एक पद्धति

भगवान श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी को सूक्ष्म से विचार देते हैं अथवा दृश्य दिखाते हैं । वे तुरंत ही उसके अनुसार कृति कर भगवान का आज्ञापालन करती हैं, सूक्ष्म से जानकर किया हुआ उनका यही कार्य है ! यह उनके सूक्ष्म के कार्य की एक पद्धति बन गई है । भगवान के विचार समझ में आना बहुत कठिन है । उसके लिए मन, बुद्धि एवं चित्त का शुद्ध होना आवश्यक होता है, साथ ही उनका लय होना भी आवश्यक है । ऐसे शुद्ध मन में ही भगवान के विचार प्रकट होते हैं तथा यदि बुद्धि शुद्ध हो, तभी हम भगवान का आज्ञापालन कर सकते हैं । इससे श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी की विशेषता ध्यान में आती है ।

इसके साथ ही भगवान द्वारा दिखाए गए दृश्य का अर्थबोध भी होना चाहिए । ‘उससे यह समझ में आना चाहिए कि भगवान क्या बता रहे हैं ?’ तभी हम उसके अनुसार कृति कर पाएंगे । श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी में उस प्रकार की क्षमता है, साथ ही भगवान उन्हें किसी प्रसंग से भी सिखाते हैं । उस प्रसंग का कार्यकारणभाव समझ लेना, श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी का सूक्ष्म कार्य है !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के चरणों में शरणागत भाव से वंदन करतीं श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी (वर्ष २०२२)

२. श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के सूक्ष्म की क्षमता का एक उदाहरण

अक्टूबर २०२३ के पहले सप्ताह में एक दिन चेन्नई सेवाकेंद्र में सूर्याेदय के समय वे अग्निहोत्र कर रही थीं, उस समय सूक्ष्म से उन्हें उनके अगल-बगल में पानी ही पानी है, ऐसा दृश्य दिखाई दिया । इससे वे समझ पाईं कि ‘भविष्य में चेन्नई का यह क्षेत्र रहने के लिए असुरक्षित है ।’ समुद्र निकट होने से चेन्नई पर चक्रवाती तूफान तथा त्सुनामी का संकट होता है ।’ इस संबंध में भगवान के द्वारा दृश्य दिखाकर सूचित किए जाने के उपरांत उसके अगले महीने ही वे चेन्नई से ६० कि.मी. की दूरी पर स्थित सप्तपुरों में से एक पवित्र क्षेत्र ‘कांचीपुरम्’ में रहने चली गईं । बिना समय गंवाए वायु की गति से कृति करना उनकी एक और विशेषता है । सप्तर्षि ने नाडी-पट्टिकाओं में उनके इस निर्णय की प्रशंसा कर कहा, ‘हम उन्हें कांचीपुरम् जाने के लिए बतानेवाले ही थे; परंतु उससे पूर्व ही उन्होंने हमारी बात को सूक्ष्म से जानकर आज्ञापालन किया !’

३. श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी निर्णय लेकर उचित समय पर संबंधित कृति करती हैं !

भगवान पूर्वसूचना देकर आगे की कृति करना सूचित करते हैं । वह समय उस कृति को करने हेतु पूरक होता है । अतः उसी समय कृति करने पर वे १०० प्रतिशत सफल  होती हैं । किसी कार्य के संबंध में निर्णय लेकर उचित समय पर संबंधित कृति करना श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी का और एक गुण है !

इसमें उन्हें समाज के सात्त्विक लोगों से सहायता भी मिलती है; क्योंकि ऐसे लोगों से निकटता बनाकर उनसे अच्छे संबंध स्थापित करना भी उनका एक गुण है ।

४. श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के द्वारा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना में सूक्ष्म ज्ञान का उपयोग करना

अभी तक श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी ने अनेक वर्षों तक सूक्ष्म परीक्षण करना, सूक्ष्म से ज्ञान प्राप्त करना, सूक्ष्म के प्रयोग करना जैसी सूक्ष्म स्तर की सेवाएं की हैं । वर्तमान में वे सूक्ष्म के उस ज्ञान का हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के कार्य में उपयोग कर उस कार्य को गति प्रदान कर रही हैं । उनका यह कार्य केवल भारत में ही नहीं, अपितु विदेशों में भी चल रहा है ।

श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ‘गुरुदेवजी का मनोरथ जानकर’, इस चरण से भी आगे बढकर ‘सप्तर्षियों तथा ईश्वर का मनोरथ जानकर’, इस प्रकार से दैवी कार्य कर रही हैं । ‘श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में उनका यह विश्वकार्य इसी प्रकार तीव्र गति से संपन्न हो’, सप्तर्षियों तथा ईश्वर के चरणों में यह प्रार्थना !’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी (२३.१२.२०२३)