बलपूर्वक धर्मांतरण के विरुद्ध उत्तरप्रदेश उच्च न्यायालय का निर्णय !

उत्तर प्रदेश में अजीम नाम के कट्टरपंथी धर्मांध ने बलपूर्वक एक हिन्दू लडकी का धर्मांतरण कर उसके साथ विवाह किया । इस प्रकरण में उसे बंदी बनाया गया । उसके उपरांत उसके द्वारा जमानत के लिए किया आवेदन उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया ।

उत्तरप्रदेश उच्च न्यायालय

१. हिन्दू युवती का बलपूर्वक धर्मांतरण तथा उसके साथ विवाह करने के प्रकरण में कट्टरपंथी धर्मांध गिरफ्तार

पीडिता ने पुलिस में यह शिकायत करते हुए कहा कि अजीम नामक इस धर्मांध ने उसका यौन उत्पीडन किया, साथ ही आपत्तिजनक ध्वनिचित्रीकरण कर उसे ‘ब्लैकमेल’ किया तथा उसके साथ बलपूर्वक विवाह किया । उसके पश्चात उसने उसपर इस्लाम पंथ स्वीकार करने की जबरदस्ती की, साथ ही उसे मांसाहारी भोजन बनाने की, उसका सेवन करने का तथा मुसलमानों जैसे वस्त्र पहनने का दबाव डाला । इस प्रकरण में आरोपी के विरुद्ध बुद्धवंदन जिले के कोतवाली पुलिस थाने में भारतीय अपराध संहिता की कुछ धाराओं, ‘उत्तर प्रदेश प्रोहिबिशन ऑफ अनलॉफुल कन्वर्जन ऑफ रिलिजन एक्ट’, ‘गैरकानूनी धर्मांतरण प्रतिबंधक कानून २०२१’ के अंतर्गत अपराध पंजीकृत किया तथा उसे बंदी बनाया गया । उसने जमानत के लिए सत्र न्यायालय में आवेदन दिया; परंतु न्यायालय ने उसे अस्वीकार कर दिया ।

२. जमानत के लिए उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय में आवेदन

सत्र न्यायालय के द्वारा जमानत अस्वीकार करने के उपरांत अजीम उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय पहुंचा तथा वहां उसने जमानत की मांग की । इस आवेदन में आरोपी ने कहा कि पीडिता ने उसे बलपूर्वक विवाह करने के लिए बाध्य किया तथा उसके उपरांत वह स्वयं ही उसे छोडकर चली गई । उसने उसके दंडाधिकारी के सामने दिए स्पष्टीकरण में उनके पति-पत्नी होने की बात स्वीकार की; इसलिए उसकी जमानत अस्वीकार करने का कोई कारण ही नहीं बनता । सरकारी पक्ष ने इस जमानत के आवेदन का विरोध करते हुए स्पष्टता से पीडिता का पक्ष रखते हुए कहा, ‘अपराध पंजीकृत करने के उपरांत अन्वेषण विभाग के ब्योरे में स्पष्टता से यह कहा है कि पीडिता को बलपूर्वक इस्लाम पंथ स्वीकार करना पडा तथा बकरी ईद के दिन यह तथाकथित विवाह संपन्न हुआ । (इसका अर्थ उन्होंने बकरी ईद को क्या कुरबानी दी, यह ध्यान में आता है ।) बकरी ईद के दिन दी जानेवाली कुरबानी देखने के लिए उसे बाध्य किया गया ।

अपराध पंजीकृत करने के उपरांत तथा उच्च न्यायालय में जमानत का आवेदन देने से पूर्व आरोपी ने एक रिट याचिका प्रविष्ट की थी, जिसमें उसने पुलिस से संरक्षण देने की मांग की थी; परंतु माननीय उच्च न्यायालय ने यह मांग स्वीकार नहीं की ।

(पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णीजी

३. उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय में जमानत अस्वीकार  

उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय ने आरोपी को जमानत देने से अस्वीकार करते हुए अपने निर्णय में कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने धर्मांतरण विरोधी कानून पारित किया है । इसे मार्च २०२१ में राज्यपाल द्वारा अनुमोदित किया गया, साथ ही ५.३.२०२१ को उत्तर प्रदेश सरकार के गैजेट में यह कानून प्रकाशित हुआ । ‘किसी का भी बलपूर्वक धर्मांतरण नहीं किया जा सकता’, इस कानून का यही उद्देश्य है । इस प्रकरण में धर्मांध मुसलमानों ने पीडिता को इस्लाम पंथ स्वीकार करने के लिए बाध्य किया । जिससे वर्ष २०२१ के इस कानून का उल्लंघन होता है; इसलिए आरोपी जमानत के लिए योग्य पात्र नहीं है । बकरी ईद के दिन उसे कुरबानी देखने पर बाध्य करना तथा मांसाहारी भोजन बनाकर खाने के लिए कहना उसकी इच्छा के विरुद्ध है, ऐसा ध्यान में आता है ।’

४. कानून के अनुसार धर्मांतरण करने के ६० दिन पूर्व जिला दंडाधिकारी को आवेदन देना आवश्यक ! 

भारतीय संविधान देश के प्रत्येक नागरिक को उसके धर्म के अनुसार आचरण करने का अधिकार प्रदान करता है; इसलिए पीडिता को धर्मांतरण कर इस्लाम पंथ स्वीकार करना आवश्यक नहीं है । इसके साथ ही इस प्रकरण में विभिन्न अन्य कानूनों का भी उल्लंघन हुआ है । इस आधार पर आरोपी को जमानत नहीं मिलनी चाहिए । वर्ष २०२१ के इस कानून के अनुसार लालच देना, बल प्रयोग करने जैसी पद्धतियों से धर्मांतरण नहीं किया जा सकता । अपराध पंजीकृत करते समय पुलिस द्वारा मारपीट करना, धमकियां देना, बल प्रयोग करना इत्यादि अनेक धाराएं लगाई थीं । वर्ष २०२१ के धर्मांतरण बंदी कानून में अपराध पंजीकृत करने के उपरांत आरोपी को जमानत देना अनिवार्य नहीं है । इस कानून के अनुसार धर्मांतरण करने से ६० दिन पूर्व जिला दंडाधिकारी को आवेदन देना पडता है । जब यह धर्मांतरण बिना किसी लालच के, बल प्रयोग किए बिना तथा स्वेच्छा से होता है तथा इसके प्रति जिला दंडाधिकारी आश्वस्त होता है, तभी जाकर उसके द्वारा धर्म-परिवर्तन की अनुमति मिलती है । इस प्रकरण में पीडिता को बंदी बनाया गया था, उसे बलपूर्वक इस्लाम के अनुसार आचरण करने पर बाध्य किया गया, पीडिता के द्वारा इसका विरोध किए जाने पर उसके साथ मारपीट की गई, साथ ही उसके साथ बलपूर्वक शारीरिक संबंध बनाए गए । इस आधार पर माननीय उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय ने जमानत अस्वीकार कर दी ।

५. ‘लव जिहाद’ के प्रति जागरूकता आवश्यक !

वर्तमान समय में देश में ‘लव जिहाद’ की सहस्रों घटनाएं हो रही हैं । कानून बनाने पर भी इसमें कुछ विशेष परिवर्तन नहीं आया है, यह हिन्दुओं का दुर्भाग्य ही है । अतः इस विषय में हिन्दू लडकियों एवं महिलाओं में जागरूकता लाना अति आवश्यक है ।’

श्रीकृष्णार्पणमस्तु ।

– (पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी, मुंबई उच्च न्यायालय (८.८.२०२४)