श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी में एक ही साथ देवीस्वरूप अवतारत्व के सभी लक्षण विद्यमान हैं । उनका पूरा देह ही प्रकाशमान दिखता है । उनकी कांति अत्यंत तेजस्वी है; क्योंकि उनमें देवत्व है । उनकी त्वचा अत्यंत स्वच्छ एवं कोमल है; क्योंकि उस देह में साधकों के प्रति ईश्वरीय प्रीति एवं करुणा छिपी है । उनके केश का स्पर्श भी कोमल है; क्योंकि उसमें ईश्वरीय चैतन्य के प्रवाह की धारा है । उनकी आंखें पानी से भरी दिखाई देती हैं; क्योंकि उनमें ममता की नमी है । उनके हाथों एवं चरणों के नख चमकीले तथा पीले हो गए हैं; क्योंकि उनमें समष्टि कल्याण हेतु चैतन्य की गंगा निर्बाध रूप से बह रही है । उनकी त्वचा भी पारदर्शी हो गई है; क्योंकि अब उनकी देह में माया लेशमात्र भी शेष नहीं है । शेष है, तो केवल गुरुकृपा का झरना ! उनकी वाणी अत्यंत मधुर तथा किसी बालिका की भांति निर्मल है; क्योंकि उस वाणी में ईश्वर के प्रति भाव है ।
श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के मस्तक पर स्थित ब्रह्मरंध्र का बिंदु अत्यंत स्पष्ट तथा खुली आंखों से भी प्रकाशमान दिखाई देता है । इससे श्वेत प्रकाश प्रक्षेपित होता रहता है । अनेक साधकों ने इसकी अनुभूति ली है । जब बुद्धि अत्यंत सात्त्विक होकर निष्काम कार्य करने लगती है, उस समय ब्रह्मरंध्र निरंतर प्रकाश से दैदीप्यमान दिखाई देने लगता है । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के जीवन का प्रत्येक कर्म निष्काम एवं भक्तिमय होने के कारण उनका जीवन सहजभाव से भर गया है । उसके कारण ही वे निरंतर वर्तमान में रहती हैं तथा माया में रहकर भी माया से अलिप्त हैं । श्री गुरुदेवजी उनकी आत्मा हैं, इसलिए उनके जीवन में स्वयं के लिए करने जैसा कुछ भी शेष नहीं है । यही है समर्पित जीवन ! श्री गुरुदेवजी ने उन्हें साधक, संत, सद्गुरु जैसे स्तरों से ले जाते हुए बडी सहजता से देवीतत्त्व तक पहुंचा दिया है ।
अध्यात्म में प्रगति करते समय किसी में देवत्व के एक-दो लक्षण दिखाई देते हैं; परंतु श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी में देवीतत्त्व के सभी गुण विद्यमान होने से ही महर्षि ने उन्हें देवीस्वरूप अवतार के रूप में सम्मानित किया है, इसमें कोई संदेह नहीं है ।
– श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी (११.१०.२०२३)