‘वक्फ कानून’: ‘सेक्युलर’ (धर्मनिरपेक्ष) घोटाले का अंत होने का समय अब आ चुका है !

भारत में ‘वक्फ कानून’ अन्य धर्माें से पूर्ण भेदभाव करनेवाला कानून है । वक्फ बोर्ड को दिए विशेष अधिकारों के कारण ‘सेक्युलर’ भारत में भय का वातावरण है । प्रस्तुत लेख में उक्त तथा अन्य सूत्रों पर चर्चा की गई है ।

१. वक्फ क्या है ?

 इस्लामी न्यायशास्त्र में ‘वक्फ’ एक महत्त्वपूर्ण घटक है ।  इस शब्द की उत्पत्ति मूल अरबी शब्द ‘वकाफा’ से हुई है तथा उसका अर्थ होता है, ‘नियंत्रण में लेना’, रोक कर रखना अथवा बांधकर रखना’, वास्तव में वक्फ का अर्थ बंद अथवा प्रतिबंधित करना अर्थात इस्लाम धर्म की दृष्टि से कोई व्यक्ति जब अपनी संपत्ति धार्मिक अथवा धर्मादाय कारणों के लिए अर्पण करता है, तब उसे बेचने पर प्रतिबंध है । ‘वक्फ कानून १९९५’ के अनुच्छेद ३ (आर) में ‘वक्फ अर्थात किसी व्यक्ति द्वारा मुस्लिम कानून के अनुसार मान्यता प्राप्त पवित्र, धार्मिक एवं धर्मादाय कारणों से स्वयं की स्थायी अथवा चल संपत्तियों को स्थायी रूप से अर्पित करना !’ शरिया कानून के अनुसार एक बार वक्फ की स्थापना हुई तथा संपत्ति वक्फ को अर्पण की, तो वह संपत्ति वक्फ की हो जाती है तथा वह उसी प्रकार रह जाती है । जो व्यक्ति वक्फ करता है, उसे ‘वाकिफ’ कहते हैं । वक्फ कानून के अनुच्छेद ३ में ‘वाकिफ का अर्थ है, इस प्रकार से अर्पण करनेवाला व्यक्ति’; इसलिए ‘वक्फ को बनानेवाला व्यक्ति होता है वाकिफ !’ वक्फ अल्लाह के नाम से दिया गया स्थायी अर्पण है, यहां इसे समझकर लेना महत्त्वपूर्ण है तथा उसके लिए वाकिफ अथवा कार्यक्षम अधिकारी व्यक्ति वक्फ का प्रबंधन देखने के लिए मुतवल्ली (मस्जिद के व्यवस्थापक) की नियुक्ति करता है ।

२. भारतीय कानून के अंतर्गत आनेवाले ३ प्रकार के वक्फ

अधिवक्ता अमितोष पारीख

अ. उपयोगकर्ता से किया गया वक्फ : यदि भूमि, भवन अथवा किसी क्षेत्र के उपयोग से मालिक अवगत है तथा धार्मिक अथवा पवित्र कारण से यदि उसका स्थायी रूप से उपयोग किया जा रहा है, तो ऐसी संपत्ति को ‘उपयोगकर्ता से किया गया वक्फ’ कहते हैं ।

आ. वक्फ मशरत उल खिदमत : यह एक सार्वजनिक वक्फ है, जिसमें वाकिफ (वक्फ का निर्माता) मुस्लिम समुदाय के लाभ के लिए अपनी संपत्ति देता है तथा इसमें सेवा देने हेतु अनुदान प्रदान करने का वादा करता है ।

इ. वक्फ अल औलाद : वाकिफ का परिवार तथा बच्चों के लिए बनाए भारतीय कानून के अनुसार वक्फ की निर्मिति करने हेतु वक्फ की शाश्वतता, अपरिवर्तनीयता तथा अविभाज्यता को पूर्वग्रहित माना जाता है । इसमें समझने योग्य महत्त्वपूर्ण सूत्र यह है कि वक्फ की स्थापना करने हेतु निर्धारित औपचारिकता आवश्यक नहीं है । एक बार कोई संपत्ति वक्फ के रूप में घोषित हो गई, तो स्थायी रूप से उसका स्वामित्व अल्लाह के पास चला जाता है ।

३. भारत में वक्फ का उद्गम

भारत में वक्फ की संकल्पना इस्लामी कार्यकाल में विशेषरूप से देहली प्रदेश में आरंभ हुई । सुल्तान मुईजुद्दीन साम घोर ने मुल्तान की जामा मस्जिद के नाम से २ गांव अर्पण किए तथा उसका प्रशासन शेख उल इस्लाम को सौंपा । उसके उपरांत के काल में भारत की भूमि पर इस्लामी राजवंश समृद्ध हुए तथा उनके वक्फ की संपत्ति की संख्या बढने लगी । मुगल काल में संप्रभु अथवा निजी व्यक्तियों ने वक्फ की निर्मिति की तथा प्रशासन से उसे समर्थन मिला । निचले स्तर पर वक्फ का व्यवस्थापन मुतवल्ली देखते थे तथा काजी (शरिया कानून के अनुसार न्यायदान करनेवाला) उसपर ध्यान रखते थे । उसके उपरांत मुगल काल में सद्र अज सुदूर वक्फ का व्यवस्थापन देखते थे । उस समय शरिया कानून लागू था तथा न्यायाधीश शरिया कानून से प्रतिबद्ध थे ।

४. ब्रिटिशकालीन वक्फ

     ब्रिटिश सत्ता के आरंभिक काल में ब्रिटिशों ने हिन्दू एवं मुसलमानों के चंदे में हस्तक्षेप करना टाला । ब्रिटिश काल में वर्ष १८१० में ‘बंगाल कोड रेग्युलेशन १४’ कानून लागू किया गया । यह कानून मस्जिदों, मंदिरों तथा सार्वजनिक इमारतों के रखरखाव हेतु किराया देने के संबंध में व्यवस्थापन देखने हेतु लागू किया गया । ‘बंगाल कोड’ के उपरांत वर्ष १८१७ में ‘मद्रास कोड रेग्युलेशन ७’ नियम लागू किया, जिसकी न्यायव्यवस्था बंगाल की भांति ही थी; परंतु वह मद्रास राज्य तक ही सीमित था । उसके उपरांत लंबे समय के उपरांत अर्थात वर्ष १८६३ में सरकार ने ‘रिलीजियस एंडोवमेंट एक्ट ऑफ १८६३’ कानून बनाकर इन धार्मिक स्थलों पर उसका जो सीधा नियंत्रण था, उसे हटा लिया । इन धार्मिक स्थलों का व्यवस्थापन स्थानीय समितियों के पास दिया गया तथा आवश्यकता पडने पर न्यायालय को उसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार दिया गया । इसमें महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ११ वीं शताब्दी में लंडन की ‘प्रिवी काउंसिल’ के ४ न्यायाधीश – लॉर्ड वैटसन, लॉर्ड हॉबहाउस, लॉर्ड शैंड तथा सर रिचर्ड काउच ने वक्फ संपत्ति के संबंध में जब सुनवाई करते हुए कहा कि ‘वक्फ बुराई का प्रतीक है तथा वह अत्यंत हानिकारक है’, यह निरीक्षण लिखकर यह छूट रद्द की ।

अब्दुल फतेह मोहम्मद विरुद्ध रूसोमॉय धूर चौधरी के मध्य के अभियोग के समय ‘परिवार की वृद्धि हेतु तथा धर्मादाय कारणों से संपत्ति अर्पण कर निर्मित वक्फ छद्म है, चाहे वह छोटी धनराशि का भी क्यों न हो; उसमें स्थित अनिश्चितता अवैध है’; परंतु मुस्लिम विधि विशेषज्ञों ने मुस्लिम वक्फ वैधता कानून १९१३’ के इस इस्लामी कानून के विरुद्ध है’, ऐसा मत व्यक्त कर उसपर आपत्ति दर्शाई । उसके कारण इस कानून ने भारत में अवैध एवं अनियंत्रित वक्फ को बचा लिया ।

वर्ष १९४७ के उपरांत वक्फ की संपत्ति का व्यवस्थापन वर्ष १९२३ के ‘वक्फ प्रमाणीकरण कानून’ के अनुसार किया गया । उसके उपरांत वर्ष १९५४ में तत्कालीन कांग्रेस की सरकार ने ‘वक्फ कानून १९५४’ लागू कर वक्फ की संपत्ति के केंद्रीय व्यवस्थापन हेतु वक्फ बोर्ड की स्थापना की । इस कानून के क्रियान्वयन तथा ऊपरी अस्तित्व के न्यायालयीन कार्य हेतु वक्फ बोर्ड को अधिकार प्रदान किए गए । इस कानून के अंतर्गत वक्फ बोर्ड को मुतवल्लियों के कार्य की जांच कर उन्हें हटाने तथा मुस्लिम कानून के अनुसार वक्फ कानून की भिन्नता पारित करने के अधिकार प्रदान किए गए । वर्ष १९६९ में राज्य के वक्फ बोर्डाें के निरीक्षण हेतु (वक्फ कानून १९५४ की धारा ९ [१] के अनुसार) ‘केंद्रीय वक्फ बोर्ड’ (सेंट्रल वक्फ काउंसिल ऑफ इंडिया) की स्थापना की गई । वर्ष १९८४ में वक्फ जांच समिति ने उसके ब्योरे में वक्फ के व्यवस्थापन की पुनर्रचना करने का निर्देश दिया तथा उसके उपरांत ‘वक्फ एक्ट १९९५’ लागू किया गया ।

४ अ. केवल हिन्दुओं के मंदिरों को ही राज्य सरकारों के सीधे नियंत्रण में लाया गया ! : स्वतंत्र भारत में ‘वक्फ कानून १९५४’ लागू कर राजनीति में मुसलमानों का तुष्टीकरण करना आरंभ हुआ; क्योंकि उस समय हिन्दू, सिख एवं ईसाईयों के लिए वक्फ बोर्ड के लिए समानांतर अन्य किसी बोर्ड की स्थापना नहीं की गई । ‘सिख गुरुद्वारा’ कानून की वक्फ कानून से तुलना नहीं हो सकती; क्योंकि वह कानून गुरुद्वारों की संपत्ति से संबंधित नहीं है, अपितु केवल गुरुद्वारों के व्यवस्थापन से संबंधित है । हिन्दुओं के मंदिरों के लिए ‘रिलीजियस एंडोवमेंट एक्ट १९६३’ कानून लागू किया गया तथा इस कानून के अनुसार हिन्दुओं के मंदिरों को राज्य सरकारों के सीधे नियंत्रण में लाया गया, यहां इसका उल्लेख करना महत्त्वपूर्ण रहेगा ।

५. वक्फ कानून १९९५ तथा उसके परिणाम

२२ नवंबर १९९५ को ‘वक्फ कानून १९९५’ लागू कर उसकी कार्यवाही आरंभ हुई । वक्फ तथा उससे संबंधित बातों का प्रशासन अच्छा रहे, साथ ही इस कानून में वक्फ बोर्ड, राज्य वक्फ बोर्ड, मुख्य कार्यकारी अधिकारी तथा मुतवल्ली के अधिकार एवं कार्य के संबंध में बताया गया । वक्फ आयोग को वक्फ की संपत्ति से संबंधित प्रकरणों में अधिक मात्रा में अधिकार होने के अंतर्गत यह संशोधन किया गया, जो संकटकारी माना जाने लगा । वक्फ आयोग में तीन लोगों का समावेश किया गया है – न्यायालयीन सेवा में कार्यरत एक व्यक्ति, राज्य नागरी सेवा में कार्यरत एक व्यक्ति तथा मुस्लिम कानूनों के विषय में विशेष ज्ञान प्राप्त एक व्यक्ति । इसमें चौंकानेवाली बात यह है कि इस संशोधित कानून के अनुसार वक्फ से संबंधित प्रकरणों में सत्र न्यायालय के अधिकार छीन लिए गए, साथ ही इस कानून के अनुसार वक्फ आयोग का निर्णय अंतिम एवं अनिवार्य है तथा वक्फ आयोग के आदेश के अनुसार याचिका प्रविष्ट करने के विषय में उसमें किसी प्रकार का प्रावधान नहीं है । अतः हम कह सकते हैं कि ‘वक्फ आयोग को वक्फ का संरक्षण तथा अच्छा व्यवस्थापन करने हेतु अधिकार दिए गए हैं’; साथ ही हम ऐसा भी कह सकते हैं कि इस आयोग को विस्तृत स्तर पर तथा बिना किसी विचार पर आधारित ऐसे अधिकार प्रदान किए गए हैं । ये अधिकार सत्र न्यायालय के न्याय देने की पद्धति के अनुसार नहीं हैं; अपितु केवल वक्फ को संरक्षण देना तथा वक्फ से प्रामाणिक रहने के लिए ही हैं ।

६. वक्फ कानून में किए प्रमुख संशोधन तथा वक्फ की व्याख्या का किया गया विस्तार

वर्ष १९५४ के कानून के अनुसार वक्फ की व्याख्या का विस्तार किया गया । इसमें ‘जो संपत्ति (धार्मिक एवं धर्मादाय कारणों से उपयोग की जानेवाली) औपचारिक रूप से अर्पण नहीं की गई थी, उसका भी समावेश’ किया गया । वर्ष १९९५ में इस व्याख्या का और विस्तार कर उसमें ‘जिस संपत्ति का उपयोग धार्मिक एवं धर्मादाय कारणों से रुक गया है, ऐसी संपत्ति का भी समावेश’ किया गया । उसके उपरांत वर्ष २०१३ में प्रमुख संशोधन किया गया । इस कानून में किए संशोधन के अनुसार ‘इस्लाम का अनुकरण न करनेवाले किसी भी व्यक्ति की ओर से अर्पण की जानेवाली संपत्ति वक्फ की संपत्ति मानी जाने लगी ।

६ अ. न्यायालयीन प्रक्रिया : ‘वक्फ कानून १९५४’ के अनुसार वक्फ की संपत्ति से संबंधित विवादों के विषय में निर्णय लेने का अधिकार सत्र न्यायालय को था; परंतु वर्ष १९९५ में सत्र न्यायालय से यह अधिकार छीनकर उसे वक्फ आयोग को दे दिया गया ।

६ आ. सर्वेक्षण का शुल्क : ‘वक्फ कानून १९५४’ में संपत्ति के सर्वेक्षण का व्यय करना मुतवल्ली का (मस्जिद के व्यवस्थापक का) दायित्व था तथा वक्फ उसके लिए धनराशि का प्रबंध करे’; परंतु ‘वक्फ कानून २०१३’ के अनुसार ‘सर्वेक्षण का व्यय सरकार करे’, ऐसा आदेश जारी किया गया ।

६ इ. वक्फ बोर्ड की रचना : ‘वक्फ कानून १९५४’ के अनुसार गैरमुस्लिम नागरिकों को भी वक्फ बोर्ड की सदस्यता दी जाती थी; परंतु उसके उपरांत ‘वक्फ कानून १९९५ तथा २०१३’ के अनुसार ‘इस बोर्ड के सदस्य केवल मुस्लिम समाज के ही होंगे’, यह संशोधन किया गया ।

६ ई. ‘लिमिटेशन कानून’ पर (समयावधि कानून पर) प्रतिबंध ! : ‘वक्फ कानून १९९५’ के अंतर्गत लागू किए गए ‘लिमिटेशन एक्ट १९६३’ पर प्रतिबंध लगाया गया तथा उसके कारण ‘लिमिटेशन कानून’ अंतर्भूत किए बिना ही न्यायालयीन अभियोग चलाया जा सकता है । ‘वक्फ कानून २०१३’ के अनुसार वक्फ की सूची में अभियोग का नाम प्रकाशित होने के एक वर्ष पूर्ण होने के उपरांत वह न्यायालयीन अभियोग वक्फ आयोग की ओर से आधिकारिक नहीं माना जाएगा, साथ ही इस कानून में सार्वजनिक नोटिस देने का प्रावधान भी नहीं किया गया है ।

७. वक्फ के द्वारा मनमानी पद्धति अथवा अवैधरूप से निजी अथवा सरकारी संपत्ति पर दावा किए जाने के कुछ प्रकरण

अधिकतर प्रकरणों में वक्फ ने मनमानी पद्धति से अथवा अवैधरूप से निजी एवं सरकारी संपत्ति पर अपना दावा प्रस्तुत किया है । धोखाधडी कर तथा मनमानी कर सार्वजनिक संपत्ति तथा भूमि हडपकर भारत की सर्वाधिक भूमि पर स्वामित्व होने के विषय में भारतीय सेना एवं रेल विभाग के उपरांत वक्फ बोर्ड तीसरे स्थान पर है ।

अ. तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने अवैधरूप से राज्य का ‘थिरुचेनथुराई गांव’ ‘वक्फ की संपत्ति’ होने की घोषणा की । इस गांव में अधिकतर हिन्दू रहते हैं, यहां इस बात को ध्यान में लेना होगा । अब तक के उपलब्ध ब्योरों के अनुसार तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने हिन्दुओं की बस्तियोंवाले ७ गांवों पर दावा किया है ।

आ. ‘सूरत नगरपालिका प्राधिकरण’ का कार्यालय ‘वक्फ की संपत्ति है’, ऐसा घोषित किया गया ।

इ. जुलाई २००५ में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने ‘ताजमहल’ पर उसका अधिकार जताकर उसे ‘वक्फ की संपत्ति’
घोषित किया ।

ई. उत्तर प्रदेश में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने ‘काशी विश्वनाथ मंदिर’ को ‘वक्फ की संपत्ति’ घोषित किया ।

उ. उत्तर प्रदेश शिया केंद्रीय वक्फ बोर्ड ने सांठगांठ कर लक्ष्मणपुरी (लखनऊ) के एक ‘शिवालय’ को ‘वक्फ की संपत्ति’ घोषित कर दिया ।

ऊ. द्वारका टापू में स्थित २ टापुओं पर वक्फ की संपत्ति होने का दावा किया गया ।

८. वक्फ के द्वारा दावा करने के संबंध में  चले अभियोगों में विभिन्न न्यायालयों के निर्णय

अ. मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा दिए एक निर्णय में न्यायाधीश जी.एस. अहलुवालिया (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग विरुद्ध मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं अन्य) ने मध्य प्रदेश वक्फ बोर्ड का ‘बुरहानपुर किला’ ‘वक्फ की संपत्ति’ होने का दावा रद्द किया । मध्य प्रदेश वक्फ बोर्ड की याचिका रद्द करते हुए न्यायाधीश अहलुवालिया द्वारा दिए निरीक्षणों में कहा है, ‘यदि ऐसा है, तो ताजमहल वक्फ की संपत्ति क्यों नहीं होगी ? कल आप यह कहेंगे कि संपूर्ण भारत ही वक्फ की संपत्ति है । आपने अधिसूचना जारी की तथा वह संपत्ति आपकी हो गई, ऐसा नहीं होगा ।’

आ. ‘वक्फ बोर्ड राजस्थान विरुद्ध जिंदल सॉ लिमिटेड’ अभियोग में सर्वाेच्च न्यायालय ने २९ अप्रैल २०२२ में दिए निर्णय में कहा है, ‘अर्पण करने के संबंध में कोई प्रमाण न होते हुए, जर्जर दीवार अथवा व्यासपीठ को प्रार्थना करने के लिए अथवा नमाज पढनेयोग्य श्रेणी नहीं दी जा सकती ।’

इ. आंध्र प्रदेश में ‘कोलाची राम रेड्डी विरुद्ध आंध्र प्रदेश राज्य’ के इस अभियोग के निर्णय में तेलंगाना न्यायालय ने कहा है, ‘केवल अधिसूचना जारी कर वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति पर अधिकार नहीं दिखा सकता । बोर्ड को उसके संबंध में प्रमाण प्रस्तुत करना होगा ।’

ई. राजस्थान में ‘धन्य राम विरुद्ध राजस्थान राज्य’ अभियोग में राजस्थान न्यायालय द्वारा दिए निर्णय के निरीक्षण में कहा है, ‘वक्फ कानून १९९५ के अनुसार मुख्य कार्यकारी अधिकारी को किसी भी संपत्ति को ‘वक्फ की संपत्ति’ के रूप में घोषित करने का अधिकार नहीं है । अतः प्रस्तुत विवादित भूमि का उपयोग दफनभूमि के रूप में किया जाएगा ।’

९. संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों का  उल्लंघन करनेवाला ‘वक्फ कानून’ !

वक्फ कानून इस्लाम से संबंधित धार्मिक संपत्ति हेतु बनाया विशेष कानून है । अन्य किसी भी धर्म के लिए ऐसा कोई कानून नहीं है । संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता के विषय में (सेक्युलरिज्म) लिखा है तथा संविधान के अनुच्छेद १२ के अनुसार ‘इस देश का कोई धर्म नहीं है’, ऐसा कहा गया है । इसके आधार पर अन्य धर्मियों के साथ भेदभाव किया जा रहा है, यह स्पष्ट हो रहा है । इस प्रकार का न्यायशास्त्र लागू करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद १३ का उल्लंघन करनेवाला है । इसके अनुसार एक विशिष्ट वर्गविशेष की धार्मिक संपत्ति के लिए विशेष प्रक्रिया व्यवस्था बनाई है, ऐसा ध्यान में आता है । यहां ध्यान में लेनेयोग्य सूत्र यह है कि तुर्कीए, लीबिया, इजिप्त, सुदान, लैबनान, सीरिया, जॉर्डन, ट्युनिशिया एवं इराक, इन इस्लामी राष्ट्रों में वक्फ कानून नहीं है तथा इन सभी देशों में वक्फ का कोई अस्तित्व भी नहीं है । इसलिए ‘वक्फ कानून १९९५’ में प्रस्तावित संशोधनों के अनुसार संविधान के अनुच्छेद २५ एवं २६ का उल्लंघन हो रहा है । दूसरी ओर ‘वक्फ कानून १९९५’ में स्थित प्रावधानों के कारण संविधान के अनुच्छेद १४, १९, २५ एवं ३०० अ, इन अनुच्छेदों का उल्लंघन हो रहा है । वक्फ की ओर से संपत्तियों को अवैध अधिग्रहण से बचाया जाना चाहिए तथा इस कानून के संचालन पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए ।

लेखक : अधिवक्ता अमितोष पारीख, राजस्थान उच्च न्यायालय, राजस्थान.

(साभार : साप्ताहिक ‘ऑर्गनाइजर’)

   ‘मदीना के पवित्र युद्ध में सम्मिलित होने के लिए’, अपने अनुयायियों से मोहम्मद की जो निरंतर मांग थी, इन मांगों में ही वक्फ का मूल छिपा है । – प्रो. जोसेफ स्काश्त, विचारक, अमेरिका
हिन्दुओ, सिखों एवं ईसाईयों के लिए नहीं, अपितु मुसलमानों के तुष्टीकरण के लिए वक्फ बोर्ड की स्थापना की गई है, इसे जान लें !