प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) – राष्ट्रीय हरित अधिकरण (‘एनजीटी’) ने प्रयागराज के संगम पर गंगा तथा यमुना नदियों के प्रदूषण को रोकने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है । इस कमेटी से २ महीने के भीतर ब्योरा मांगा गया है । याचिकाकर्ता अधिवक्ता सौरभ तिवारी तथा कमलेश सिंग की याचिका पर एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायिक सदस्य अरुण कुमार त्यागी तथा विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल ने यह आदेश दिया । इस प्रकरण की अगली सुनवाई ३९ नवंबर को होगी ।
गंगा नदी का जल पीने योग्य एवं आचमन योग्य नहीं है ! – एनजीटी
जनवरी २०२४ में आयोजित माघ मेले के समय खुले नालों का पानी बिना किसी प्रक्रिया के नदी में छोडे जाने के प्रकरण में अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने याचिका दायर की थी । इसके पश्चात एनजीटी ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव तथा प्रयागराज के कलेक्टर के नेतृत्व में एक जांच कमेटी बनाई । कमेटी ने २६ अप्रैल को एनजीटी को अपनी रिपोर्ट सौंपी । ”एनजीटी” ने १ जुलाई को इस पर सुनवाई करते हुए कहा कि ”प्रयागराज में गंगा नदी का पानी पीने तथा आचमन करने के योग्य नहीं है ।”
महाकुंभ पर्व तक ‘सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट’ तैयार होने असंभव हैं !
सौरभ तिवारी की याचिका के अनुसार, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी ने १९ सितंबर को एनजीटी को उत्तर दिया, ३ निर्माणाधीन ‘एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट’ (एसटीपी) परियोजनाएं जनवरी २०२५ में महाकुंभ पर्व तक तैयार नहीं हो पाएंगी । गंगा एवं यमुना नदियों में छोडे जाने वाले नालों के अपशिष्टों को विशेष तकनीक का उपयोग करके शुद्ध किया जाएगा।