प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) – इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्त्वपूर्ण निरीक्षण प्रविष्ट किया है । न्यायालय ने कहा है, ‘हिन्दू पद्धति के अनुसार किया हुआ विवाह किसी एक समझौते की भांति समाप्त नहीं कर सकते । अथवा उसे विसर्जित नहीं कर सकते । हिन्दू पद्धति से किया हुआ विवाह धार्मिक संस्कारों पर आधारित होता है तथा वह केवल विशिष्ट परिस्थिति में ही कानूनी पद्धति से किया जाता है । यदि कोई व्यक्ति पति अथवा पत्नी पर संतान न होने का आरोप लगाता हो, तो आरोप प्रमाण के द्वारा ही सिद्ध हो सकता है ।’
१. इस प्रकरण में वर्ष २००६ में विवाह किए दंपति में से पति भारतीय सैना में है । उसने वर्ष २००८ में विवाहविच्छेद (तलाक) हेतु आवेदन दिया था । पति ने दावा करते हुए कहा था कि उसकी पत्नी संतान को जन्म देने में अक्षम है । इस आधार पर उसने तलाक मांगा ।
२. पत्नी ने अपने प्रथम लिखित निवेदन में विवाहविच्छेद के लिए सम्मति दी थी । तथापि वर्ष २०१० में पत्नी ने तलाक को विरोध करनेवाला दूसरा लिखित प्रविष्ट किया । तथा बांझपन के संदर्भ में पति के आरोपों का खंडन करने हेतु कागदपत्र (दस्तावेज) प्रस्तुत किए । उसने यह भी अनावृत किया कि वर्ष २००८ में जब तलाक का आवेदन दिया था, उससे पूर्व ही उसने एक संतान को जन्म दिया था एवं वर्ष २०१० में दूसरे बच्चे को जन्म दिया था ।
३. परिवारिक न्यायालय ने पति की आपत्ति को स्वीकार करते हुए पत्नी के दूसरे लिखित निवेदन की अनदेखी कर दी । उसी दिन न्यायालय ने इस प्रकरण की सुनवाई करते हुए पति का तलाक निवेदन सम्मत किया । इस निर्णय को पत्नी ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी ।