(‘माइक्रोप्लास्टिक’ अर्थात प्लास्टिक के छोटे कण)
नई दिल्ली – ‘माइक्रोप्लास्टिक्स इन सॉल्ट एंड शुगर’ इस नाम से ‘टाक्सिक्स लिंक’ नामक पर्यावरण अनुसंधान संस्था ने विवरण (रिपोर्ट) प्रकाशित किया है। इस में भिन्न भिन्न प्रकार के नमक एवं चीनी के परीक्षण में ‘माइक्रोप्लास्टिक’, अर्थात प्लास्टिक के छोटे कण दिखाई दिए हैं ।
१. माइक्रोप्लास्टिक्स फाइबर, गोलियां एवं टुकडे के रूप में पाए जाते हैं। इन माइक्रोप्लास्टिक के कणों का आकार ०.१ मि.मी. से ५ मि.मी. जितना पाया जाता है। आयोडिनयुक्त नमक में माइक्रोप्लास्टिक के कण सर्वाधिक मात्रा में पाए गएं। वे अलग अलग रंगों के पतले फाइबर के रूप में थें ।
२. नमक के नमूनों के १ किलोग्राम में ६.७१ से ८९.१५ ग्राम जितनी माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा पाई गई। आयोडिनयुक्त नमक में सर्वाधिक, जबकि जैविक खडे नमक में सबसे अल्प मात्रा पाई गई।
३. चीनी के नमूनों में प्रति १ किलोग्राम में ११.८५ से ६८.२५ ग्राम जितनी माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा पाई गई ।
४. माइक्रोप्लास्टिक के कण अन्न, जल एवं वायु के द्वारा मानवी देह में प्रवेश कर सकते हैं । हाल ही में किए गए अनुसंधान में फेफडे, हृदय, मां के दूध में एवं गर्भ में भी माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है।
५. ‘टाक्सिक्स लिंक’ के संस्थापक-संचालक रवि अग्रवाल ने कहा, ‘हमारे अध्ययन का उद्देश्य ‘माइक्रोप्लास्टिक पर वर्तमान में उपलब्ध वैज्ञानिक जानकारी में योगदान देना है। इस अध्ययन के उपरांत नीतियां बनाने की दिशा में कार्य हों एवं माइक्रोप्लास्टिक का संकट न्यून करनेवाली तकनीक की ओर शोधकर्ता का ध्यान जाएं यही उद्देश्य है।
संपादकीय भूमिकाक्या अब एक भी वस्तु शेष रही है, जिसमें प्लास्टिक के कण नहीं मिलते ? विज्ञान ने प्लास्टिक का शोध किया है तथा उसका प्रकृति एवं मानवी पर किस प्रकार से विपरीत (ऊलटा) परिणाम हो रहा है, यह ध्यान में आ रहा है ! इस पर से ऐसा विज्ञान अधोगति (निम्नीकरण) की ओर ही ले जाएगा, यही प्रमाणित होता है ! |