अनेक शारीरिक कष्ट होते हुए भी लगन के साथ हिन्दुत्व का कार्य करनेवाले वाराणसी व्यापार संगठन के अध्यक्ष श्री. अजीत सिंह बग्गा ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर जन्म-मृत्यु के चक्र से हुए मुक्त !

श्री. बग्गा कर्मयोगी हैं । समाज की ओर निरपेक्ष भाव से देखना, उनकी भक्ति का उदाहरण है । उनमें अहं अल्प होने के कारण ही वे निरपेक्ष भाव से समाज एवं राष्ट्र हेतु कार्य करते हैं ।

पू. भगवंत कुमार मेनरायजी के पार्थिव शरीर से प्रचुर मात्रा में चैतन्य प्रक्षेपित होना तथा उनके अंतिम दर्शन करनेवाले साधकों को आध्यात्मिक लाभ होना

‘संतों के पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक दृष्टि से क्या लाभ होता है ?’, इसके संदर्भ में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से ‘यू.ए.एस. (यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर)’ उपकरण तथा लोलक के द्वारा शोध किया गया ।

‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति हमें अंतिम सांस तक कृतज्ञ रहना चाहिए !’ – श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी

‘शब्दों का अस्तित्व जहां समाप्त होता है, वही ‘कृतज्ञता है !’ हम ‘भाव’ को शब्दों में बांध सकते हैं । उसे व्यक्त भी किया जा सकता है; परंतु कृतज्ञता शब्दों के परे है, इसलिए वह भाव से भी उच्च  है