‘श्रीदुर्गादेवी ने महिषासुर का और प्रभु श्रीराम ने रावण का वध किया, इसका स्मरण करानेवाला दिन है विजयादशमी ! हिन्दुओ, सर्वशक्तिमान देवता अजेय हैं, इसलिए उनका विजय दिवस ‘विजयादशमी’ के रूप में मनाया जाता है । आजकल विजयादशमी के दिन गांव की सीमा पर स्थित मंदिर में जाकर सीमोल्लंघन करना तथा कचनार के पत्ते स्वर्ण के रूप में एक-दूसरे को देना, ये कृत्य केवल कर्मकांड के रूप में किए जा रहे हैं । मूलतः ‘सीमोल्लंघन की परंपरा देश में क्यों निर्माण हुई ?’, इसका विचार हिन्दू समाज कभी करता है क्या ? ‘आक्रमण ही बचाव का सर्वाेत्तम मार्ग है’, यह प्राचीन काल के हिन्दू राज्यकर्ताओं को ज्ञात था; इसलिए शत्रु की सीमा का उल्लंघन करने की शौर्यपरंपरा देश में निर्माण हुई । आजकल यह परंपरा लुप्त हो गई है । ‘चुनाव में किसी राजनीतिक दल की विजय, हिन्दुओं की विजय है’, ऐसा माना जाने लगा है । वास्तव में नूंह में हुए दंगे, मणिपुर में हुई हिंसा, कन्हैयालाल का ‘सर तन से जुदा’, श्रद्धा वालकर के ३५ टुकडे, इन घटनाओं को देखें, तो ध्यान में आएगा कि सर्वत्र हिन्दू समाज पराजय की छाया में जी रहा है । ऐसे वातावरण में विजयादशमी मनाना, केवल औपचारिकता है । चंद्रयान ने चंद्रमा की सीमा का उल्लंघन किया, वह वैज्ञानिक विकास है । उसके माध्यम से हिन्दुओं ने सीमोल्लंघन किया, ऐसा कहना अनुचित है ।
हिन्दुओ, ध्यान रखो, जो समाज अजेय है, उसका राष्ट्र ही विजयादशमी मनाने हेतु पात्र है ! इसीलिए विजयादशमी के उपलक्ष्य में हिन्दू समाज को अजेय बनाने का संकल्प करो !’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले, संस्थापक, सनातन संस्था (१६.९.२०२३)