सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार
‘ज्ञानयोग के अनुसार साधना करने पर वह प्रमुख रूप से बुद्धि से होती है । कर्मयोग के अनुसार साधना करने पर, वह शरीर और बुद्धि से होती है; जबकि भक्तियोग के अनुसार साधना करने पर, वह मन, बुद्धि और शरीर से होती है।’
✍️ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले, संस्थापक संपादक, ʻसनातन प्रभातʼ नियतकालिक