श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचितशक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का गुरुपूर्णिमा निमित्त संदेश

ईश्‍वर की भक्ति अथवा साधना करने से ईश्‍वर की कृपा तो होती ही है; और मनुष्यजन्म का भी कल्याण ही होता है । इसलिए इस गुरुपूर्णिमा से प्रतिदिन साधना करने का निश्‍चय करें । – (श्रीचित्शक्ति) श्रीमती अंजली गाडगीळ

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

बुढापा आने पर ही, बुढापा क्या होता है ? यह समझ मे आता है ।  उसका अनुभव होने पर बुढापा देनेवाला पुनर्जन्म नहीं चाहिए, ऐसे लगने लगता है; किन्तु तब तक साधना कर पुनर्जन्म टालने का समय चला गया होता है ।

सनातन संस्था और हिन्दू जनजागृति समिति के संयुक्त तत्त्वाधान में ११ भाषाओंओं में ‘ऑनलाइन गुरुपूर्णिमा महोत्सवों’ का आयोजन !

भारतीय संस्कृति की ‘गुरु-शिष्य परंपरा’ मानवजाति को हिन्दू धर्म द्वारा दी गई अद्वितीय देन है । राष्ट्र और धर्म पर संकट आने पर धर्मसंस्थापना का कार्य ‘गुरु-शिष्य’ परंपरा ने किया है । गुरुपूर्णिमा के निमित्त इस महान गुरु-शिष्य परंपरा का स्मरण करना आवश्यक है ।

संसद की भांति न्यायालयों में सभी अभियोगों की कार्यवाही ‘वीडियो कॉन्फरेन्सिंग’ से करें ! – सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता सुभाष झा की मांग

हिन्दू विधिज्ञ परिषद की ओर से आयोजित ऑनलाइन राष्ट्रीय अधिवक्ता अधिवेशन का राष्ट्र एवं धर्म प्रेमी अधिवक्ताओं द्वारा उत्स्फूर्त प्रत्युत्तर !

चीन के दूत !

‘वर्षा चीन में होने पर भी भारत के साम्यवादी यहां छाता तान देते हैं ।’ चीन के विरुद्ध कुछ होने पर भारत के साम्यवादी उसका विरोध करते हैं । इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय साम्यवादियों की नाल चीन से जुडी है ।

श्रीगुरु के प्रति श्रद्धा बढानेवाले सनातन के ग्रंथ !

गुरु, पिता से भी अधिक श्रेष्ठ क्यों हैं ? गुरु, सद्गुरु एवं परात्पर गुरु में क्या अंतर है ? साधक पर गुरुकृपा शनैः-शनैः कैसे होती रहती है ?

आगामी आपातकाल में जीवित रहने के लिए पहले से की जानेवाली व्यवस्था

विश्‍वयुद्ध, भूकंप, विकराल बाढ आदि के रूप में महाभीषण आपातकाल तो अभी आना शेष है । यह महाभीषण आपातकाल निश्‍चित आएगा, यह बात अनेक नाडीभविष्यकारों और द्रष्टा साधु-संतों ने बहुत पहले ही बता दी है । उन संकटों की आहट अब सुनाई देने लगी है ।

आगामी भीषण आपातकाल में स्वास्थ्य रक्षा हेतु उपयुक्त औषधीय वनस्पतियों का रोपण अभी से करें !

संकटकाल में औषधीय वनस्पतियों का उपयोग कर, हमें स्वास्थ्यरक्षा करनी पडेगी । उचित समय पर उचित औषधीय वनस्पतियां उपलब्ध होने हेतु वे हमारे आसपास होनी चाहिए । इसके लिए अभी से ऐसी वनस्पतियों का रोपण करना समय की मांग है ।

चातुर्मास्य (चातुर्मास)

आषाढ शुक्ल पक्ष एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी तक अथवा आषाढ पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक चार माह के काल को ‘चातुर्मास’ कहते हैं । अनेक स्त्रियां चातुर्मास में एक या दो अनाजों पर ही निर्वाह करती हैं । उनमें से कुछ पंचामृत का त्याग करती हैं, तो कुछ एकभुक्त रहती हैं ।

गुरुपूर्णिमा का महत्त्व

गुरुपूर्णिमा पर अन्य किसी भी दिन की तुलना में गुरुतत्त्व (ईश्‍वरीय तत्त्व) १ सहस्र गुना अधिक कार्यरत रहता है । इसलिए गुरुपूर्णिमा के आयोजन हेतु अथक परिश्रम (सेवा) व त्याग (सत् हेतु अर्पण) का व्यक्ति को अन्य दिनों की तुलना में १ सहस्र गुना अधिक लाभ होता है ।