धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र स्थापना हेतु कार्यरत हिन्दू जनजागृति समिति
हिन्दू विधिज्ञ परिषद की ओर से आयोजित ‘ऑनलाइन’ राष्ट्रीय
अधिवक्ता अधिवेशन का राष्ट्र एवं धर्म प्रेमी अधिवक्ताओं द्वारा उत्स्फूर्त प्रत्युत्तर !
मुंबई – कोई अभियोग १० मिनट में निपटाया जा सकता है; फिर भी वह १० – १० दिन चलता है । दूसरी ओर, जिन अभियोगों के लिए समय देना आवश्यक है, उन्हें २ मिनट में निपटा दिया जाता है । मैंने ३३ वर्ष के कार्यकाल में अनुभव किया है कि हमारे न्यायतंत्र में सुधार की बहुत आवश्यकता है । राज्यसभा और लोकसभा में जहां गोपनीय विषयों पर चर्चा की जाती है, वहां भी ‘वीडियो कॉन्फरेन्सिंग’ की अनुमति रहती है । तब, न्यायपालिका में ‘वीडियो कॉन्फरेन्सिंग’ का उपयोग क्यों नहीं हो सकता ? विश्व के अनेक देशों में न्यायदान की संपूर्ण कार्यवाही जनता ‘वीडियो कॉन्फरेन्सिंग’ के माध्यम से कभी भी देख सकती है । परंतु, भारत में कोरोना के चलते संचारबंदी लागू होने के पश्चात, ‘वीडियो कॉन्फरेन्सिंग’ के माध्यम से न्यायदान प्रारंभ हुआ है । न्यायप्रणाली की इस प्रक्रिया को और सक्षम बनाना चाहिए । यदि न्यायपालिका स्थायी रूप से ‘वीडियो कॉन्फरेन्सिंग’ नहीं स्वीकारती है, तब केंद्रशासन को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए और अध्यादेश जारी कर ‘सभी अभियोगों की कार्यवाही का ‘ध्वनिचित्रीकरण’ अनिवार्य करनेवाला कानून बनाना चाहिए’, यह मांग उच्चतम न्यायालय में अधिवक्ता सुभाष झा ने की । वे हिन्दू विधिज्ञ परिषद की ओर से १४ जून को हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के उद्देश्य से आयोजित ३ दिवसीय ‘ऑनलाइन’ राष्ट्रीय अधिवक्ता सम्मेलन में ‘कोरोना महामारी, न्यायव्यवस्था की वर्तमान दशा और उपाय’ विषय पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे ।
इस सम्मेलन का उद्घाटन देहली स्थित हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी के हाथों दीपप्रज्वलन से हुआ । सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी ने ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के कार्य में अधिवक्ताओं का साधना के रूप में क्या योगदान हो ?’ इस विषय में मार्गदर्शन किया । उन्होंने कहा, ”सम्मेलन के माध्यम से हमें राष्ट्र और धर्मनिष्ठ अधिवक्ताओं का संगठन करना है । समाजव्यवस्था कानून पर आधारित होती है । इसलिए राष्ट्रनिर्माण में अधिवक्ताओं का योगदान महत्त्वपूर्ण है । हिन्दू समाज पर अन्याय के विरुद्ध अधिवक्ताओं को कार्य करना चाहिए ।” इस अवसर पर हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्र्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने ‘हिन्दू राष्ट्र स्थापना के कार्य में अधिवक्ताओं का योगदान’ विषय पर उद्बोधन किया ।
राममंदिर का अभियोग लडनेवाले उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने ‘याचिकाओं के माध्यम से राष्ट्र और धर्म की रक्षा हेतु किए कार्य’; जम्मू के अधिवक्ता अंकुर शर्मा ने ‘जम्मू में जारी ‘लैंड जिहाद’ के विरुद्ध किए वैधानिक संघर्ष’; ‘हिन्दू जागरण मंच’ असम केंद्र के अधिवक्ता राजीब नाथ ने ‘लव जिहाद और धर्मांतरण रोकने के लिए किए वैधानिक और संगठनात्मक कार्य’ तथा बैंगलूरु के अधिवक्ता कृष्णमूर्ति ने ‘कोरोना महामारी काल में समाजरक्षा के लिए किए कार्य’ विषय पर संबोधन किया । जिहादी आतंकवादियों ने कश्मीरी हिन्दू सरपंच अजय पंडिता की जो हत्या की है, उसकी सम्मेलन में निंदा कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई ।
ब्रिटिशों की गुलामी के प्रतीकों का भी त्याग कर देना
चाहिए ! – सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी, राष्ट्रीय मार्गदर्शक, हिन्दू जनजागृति समिति
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात हमने हमारी संस्कृति के संवर्धन हेतु भाषाभिमान बढाना, नगर एवं सडकों को दिए गए अंग्रेजों के नामों को बदलना आदि कुछ न कुछ कदम उठाए हैं; परंतु तब भी आज हम अनेक बातों में अंग्रेजों का अनुकरण कर रहे हैं, इसे ध्यान में लेकर उसके विरुद्ध कार्य करने की आवश्यकता है । आज अधिवक्ता गले में जो ‘बैंड’ धारण करते हैं, वह मोजेस की १० आज्ञाओं का प्रतीक है तथा ईसाई धर्म से संबंधित है । अधिवक्ताओं का काला कोट भी अंग्रेजों की प्रथा का भाग है । हमारे न्यायाधीश ब्रिटिशों की वेशभूषा धारण करते हैं और उनके बाजू में ऐतिहासिक वेशभूषा धारण कर सिपाही अथवा सहायक खडे होते हैं । इस माध्यम से, ‘हमारे लोग ब्रिटिशों का गुणगान करते हैं’, यह संदेश जाता है । यह बात कितने अधिवक्ताआें को ज्ञात है ? इस संबंध में जागृति लाना तथा उसमें परिवर्तन लाने हेतु अभियान चलाना आवश्यक है । अधिवक्ताओं के मन में गुलामी के इन प्रतीकों को त्यागने का विचार आता हो, तो न्यूनतम न्यायालय के क्षेत्र में अधिवक्ताओं को कार्यकर्ता बनना ही पडेगा । यदि हम समाज में बदलाव की अपेक्षा करते हैं, तो अधिवक्ताओं को इस बदलाव का नेतृत्व करना चाहिए ।
जब अधिवक्ता कोई याचिका प्रविष्ट करता है, तब उसमें उसे जीतने का विश्वास होता है; परंतु कौन से कृत्य करने से हिन्दू राष्ट्र-स्थापना की दिशा में मेरे कदम आगे बढेंगे, अधिवक्ताओं को इसका भी विश्वास होना चाहिए । ऐसा हुआ, तो हिन्दू राष्ट्र का उषाकाल दूर नहीं है ।
अधिवक्ता को स्वयं से ‘हिन्दू राष्ट्र के कार्य में मेरा क्या योगदान रहेगा ?’, यह प्रश्न पूछना चाहिए । ‘हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के कार्य में मैं मेरी क्षमता के अनुरूप और किस बात का त्याग कर सकता हूं ?’, प्रत्येक अधिवक्ता को इसका मनन-चिंतन करने की आवश्यकता है ।
विशेष‘ऑनलाइन’ राष्ट्रीय अधिवक्ता अधिवेशन का यह कार्यक्रम ‘फेसबुक’ के द्वारा १५ सहस्र ५२६ लोगों ने देखा, तथा ३ सहस्र १७० लोगों ने ‘यू ट्यूब’ के माध्यम से देखा । कुल मिलाकर १८ सहस्र ६९६ लोगों ने यह कार्यक्रम देखा, साथ ही ७२ सहस्र ६३४ लोगों तक यह विषय पहुंचा । |