आगामी काल में तृतीय विश्वयुद्ध होगा और उसमें परमाणु युद्ध के कारण करोडों लोग मारे जाएंगे, साथ ही भीषण प्राकृतिक आपदाएं भी आएंगी, ऐसी संतों की भविष्यवाणी है । संकटकाल में यातायात के साधक, डॉक्टर्स और औषधियां उपलब्ध होंगी, यह निश्चित नहीं रहता । आजकल कोरोना संकट के कारण सर्वत्र यही स्थिति अनुभव हो रही है । संकटकाल में औषधीय वनस्पतियों का उपयोग कर, हमें स्वास्थ्यरक्षा करनी पडेगी । उचित समय पर उचित औषधीय वनस्पतियां उपलब्ध होने हेतु वे हमारे आसपास होनी चाहिए । इसके लिए अभी से ऐसी वनस्पतियों का रोपण करना समय की मांग है । प्राकृतिक, तथा मनुष्य निर्मित विविध कारणों से अनेक औषधीय वनस्पतियां दुर्लभ हो गई हैं । उनका रोपण करने से औषधियों के संवर्धन के साथ ही हमारा स्वास्थ्य ठीक रहने में भी सहायता मिलेगी । भावी हिन्दू राष्ट्र में आयुर्वेद ही मुख्य चिकित्सा-पद्धति होगी । भावी हिन्दू राष्ट्र में आयुर्वेद ही मुख्य चिकित्सा-पद्धति होगी । इस दृष्टि से ही आयुर्वेद का संवर्धन करने के लिए वनौषधियों का रोपण करना आवश्यक होता है । आयुर्वेद भारतीय ग्रंथ है; इसलिए वनौषधियों का रोपण प्रत्येक राष्ट्रप्रेमी नागरिक का कर्तव्य है ।
लेख में दी गई जानकारी सनातन के ग्रंथ स्थानकी उपलब्धताके अनुसार औषधीय वनस्पतियोंका रोपण से संकलित है । विस्तृत जानकारी हेतु पाठक यह ग्रंथ अवश्य पढें ।
१. गमले में पौधा कैसे लगाएं ?
गमलों की अपेक्षा अन्य पात्रों (उदा. प्लास्टिक की थैलियां, टीन के डिब्बे इत्यादि) में पौधरोपण इस प्रकार करें ।
१ अ. पौधारोपण हेतु योग्य मिट्टी बनाना : गमलों में पौधा लगाने के लिए ऐसी भूमि की ऊपरी सतह की मिट्टी लें, जहां भरपूर सूर्यप्रकाश रहता है । जिस मिट्टी में वृक्षकी पत्तियां और घासफूस का अपघटन (डिकंपोजिशन) हुआ हो, उसे अच्छी समझना चाहिए । अधिक नीचे की मिट्टी में पौधे के लिए पोषक पदार्थों का अभाव हो सकता है । यथासंभव १ फुट से अधिक नीचे की मिट्टी न लें । मिट्टी में बडे-बडे कंकड-पत्थर हों, तो उन्हें निकाल दें अथवा मिट्टी छान लें । इस मिट्टी के ३ भाग कर, १ भाग में अपघटित गोबर की खाद और थोडी राख मिलाएं । गोबर की अपघटित खाद पर्याप्त उपलब्ध हो, तो ३ भाग मिट्टी में २ भाग गोबर की खाद मिलाएं । ताजे गोबर का सीधे उपयोग न करें, भलीभांति अपघटित होने पर ही उपयोग करें । अपघटित गोबरखाद न मिले, तो अपघटित घासफूस अथवा घर में अपघटित किया रसोई के कचरे का खाद के रूप में प्रयोग करें ।
१ अ १. मिट्टी का विकल्प : ‘पौधों के लिए मिट्टी, आधार तथा विकास के लिए अन्नघटक प्रदान करनेवाली एक माध्यम होती है । घर में सब्जियों के डंठल, छिलके, व्यर्थ हुआ भोजन, निवासी संकुल के (सोसाइटी के) वृक्षों के गिरे हुए पत्ते, रसवंती गृह से (जूस सेंटर से) फलों की सीठी, इन सभी का उपयोग कर, हम वृक्षों के लिए उत्तम मिट्टी सहजता से घर में बना सकते हैं । सभी जैविक (प्राकृतिक) घटक अपघटित होने पर मिट्टी बन जाते हैं । इनमें जल का गीलापन संजोए रखने की क्षमता तथा पोषकद्रव्य उत्तम मात्रा में होते हैं ।’
– श्री. राजेंद्र भट, मराठी दैनिक लोकसत्ता (२६.२.२०१५)
१ आ. उचित आकार के गमलों का चयन
पौधरोपण के लिए मिट्टी के गमले ही लें; क्योंकि सीमेंट अथवा प्लास्टिक के गमलों में सूक्ष्म वायु का संचार नहीं हो पाता । इससे पौधे की जडों को सांस लेने में कठिनाई होती है । फलस्वरूप पौधे का उचित विकास नहीं हो पाता । गमले का आकार ऊपर की ओर चौडा और नीचे की ओर संकरा होना चाहिए । (आकृति क्र. १ देखें) ऐसे आकार के कारण गमले की मिट्टी को परिवर्तित करना सरल होता है । आकृति क्र. २ में दिखाए अनुसार गमला मटके जैसा नहीं होना चाहिए । ऐसे गमलों की मिट्टी बदलना कठिन होता है । छोटे पौधों के लिए ६ से ८ इंच व्यास के ४ से ६ इंच गहरे तथा बडे पौधों के लिए १० से १४ इंच व्यास के ८ से १२ इंच गहरे गमले लें । इससे बडे गमलों को उठाना-रखना कठिन होता है । गमले की तली में जमा अतिरिक्त पानी निकलने के लिए उसमें १ – २ छेद हैं न, यह सुनिश्चित करें ।
१ इ. मिट्टी का गमला ठीक से पका है, यह निश्चिति करना आवश्यक : मिट्टी का गमला लेते समय यह देखें कि वह ठीक से पका है । यह जांचने के लिए गमले को हाथ में पकडकर किसी सिक्के से बजाएं । ‘टन्’ की ध्वनि सुनाई देने पर, उस गमले को अच्छा पका हुआ समझना चाहिए । यदि वह पका हुआ न हो अथवा अल्प मात्रा में पका हो, तो ‘बद्’ की ध्वनि होगी, ऐसा गमला न लें । उसमें चीरें पडने की आशंका अधिक होती है ।
१ ई. गमले में मिट्टी भरने की पद्धति : गमले की पेंदी में जो छेद हैं, उस पर एक खपडे का छोटा टुकडा अथवा छोटी-पतली गिट्टी रख दें । इससे गमले का अतिरिक्त पानी तो बह जाता है, परंतु मिट्टी सुरक्षित रहती है । अब इसपर नारियल का बाहरी कठोर आवरण अथवा ईंट के बहुत छोटे -छोटे टुकडे अथवा पत्थर की बहुत छोटी-छोटी गिट्टियां अथवा कंकड बिछा दें । इससे गमले में जमा अतिरिक्त जल छनकर निकल जाएगा । अब भीमसेनी कपूर की एक छोटी टिकिया का चूर्ण बनाकर कंकडों की इस परत पर छिडक दें । तत्पश्चात, आपने पहले जो मिट्टी बनाकर रखी है, उसे हाथों से उठाकर धीरे से गमले को आधा भरें और हिलाएं । गमला हिलाने से मिट्टी उसमें सब ओर फैल जाएगी । इसके पश्चात उस मिट्टी को हाथ से थोडा दबा दें । अब आपका गमला पौधा लगाने योग्य हो गया है ।
१ उ. गमले में बीज बोने की पद्धति : ‘बीज एकदम ऊपरी परत पर अथवा बहुत गहराई में न बोएं । मध्यभाग में रहें, इस अंदाज से उन्हें बोएं । बीज बोनेके उपरांत हलके हाथ से गमले पर जल छिडकें । जल छिडकते समय यथासंभव उसमें एक चुटकी हलदी और दो चम्मच गोमूत्र मिलाएं । बोने के तीन से चार दिन में अंकुर आते हैं । जब तक बीजांकुर छोटा रहता है, पक्षी उसे खा लेंगे, ऐसा भय रहता है । इसलिए सुरक्षा के रूप में गमले के चारों ओर कांटे गाडकर रखें । इससे पक्षियों की चोंच बीजांकुर तक नहीं पहुंचती ।’
– श्री. राजेंद्र भट, लोकसत्ता (१४.५.२०१५)
१ ऊ. गमले में पौधा लगाने की पद्धति : जो पौधा हम लगानेवाले हैं, उसे गमले में बीचोबीच रखकर, उसे मिट्टी से भर दें । मिट्टी इतनी डालें कि पौधे की जड के पास रिक्ति न रहे । इसके लिए मिट्टी को हाथ से थोडा दबा दें । गमले में पर्याप्त पानी रहने के लिए उसे ऊपर से २ इंच खाली रखें । पौधा लगाने पर उसे तुरंत पानी दें ।
१ ए. गमलों के अभाव में प्लास्टिक की थैलियों में पौधरोपण की विधि : पौधरोपण के लिए गमले न मिलें, तब प्लास्टिक की थैलियों में भी उपर्युक्त विधि से पौधे लगाए जा सकते हैं । इन थैलियों में पौधे लगाने से पहले इनकी पेंदी में और चारों ओर भी अतिरिक्त पानी निकलने तथा वायुसंचार के लिए छेद बनाना न भूलें । इन छिद्रों पर गमलों के छिद्रों की भांति खपडे अथवा कंकड रखना आवश्यक नहीं है । थैली के निचले कोने भीतर की ओर मोडकर उसमें मिट्टी भरें । इससे उस थैली का आकार पेड के तने समान और पेंदी समतल हो जाएगी । ऐसी थैली भूमि पर ठीक से खडी रहती है ।
१ ऐ. आपातकाल के विचार से मिट्टी के गमलों की तुलना में अन्य साधनों का उपयोग करना अधिक अच्छा : गमलों में पेड लगाने पर उनका विकास अच्छा होता है; परंतु वे मिट्टी के होने के कारण उठाने-रखने में फूट सकते हैं । आपातकाल में कब क्या होगा, इसका भरोसा नहीं होता । इसलिए गमलों को टूट-फूट से बचाने के लिए इस काल में मिट्टी के गमलों की तुलना में टीन के पीपे, तेल के खाली टीन के डिब्बे, प्लास्टिक की बोरियां, थैलियां, डब्बे अथवा पीपों का उपयोग करना अधिक अच्छा रहता है । इन वैकल्पिक साधनों का उपयोग करते समय उनकी तली में छेद अवश्य करें, जिससे अतिरिक्त पानी निकल सके ।
२. पौधों की देखभाल कैसे करें ?
२ अ. रोपण किए गए गमले रखने के लिए उचित स्थान का चयन : हम जहां पौधा लगाने की सोच रहे हैं, वहां कितनी धूप रहती है, इसका अध्ययन करें । पूरे वर्ष में सूर्य के उत्तरायण एवं दक्षिणायन के अनुसार हमारे घर में आनेवाली धूप की कालावधि परिवर्तित होती रहती है । इसलिए रोपण किए गमले घर की छत में अथवा आंगन में वहां रखें, जहां न्यूनतम चार घंटे सूर्यप्रकाश मिले । लकडी अथवा लोहे की ‘रैक’में गमले रखनेपर अल्प स्थानमें अधिक गमले रखे जा सकते हैं । गमलेको एक स्थानसे उठाकर दूसरे स्थानपर रखा हो, तो उसे बीचसे पकडकर उठाएं, ऊपरसे नहीं ।
२ आ. पौधे को पानी देना
२ आ १. पौधों को अधिक पानी देने से बचें : ‘वनस्पतियों की जडों को नमी की आवश्यकता है, पानी की नहीं । केवल कमल जैसी वनस्पति पानी से ऑक्सीजन लेकर, स्वयं का विकास कर सकती है । हमारे यहां के पौधे अधिक पानी के कारण मर जाते हैं । गमले से जल की निकासी होनी ही चाहिए और मिट्टी में योग्य नमी बनी रहनी चाहिए। ध्यान रखें, गमले से पानी बाहर निकल रहा है, तो इसका अर्थ है हम अधिक पानी डाल रहे हैं । अधिक पानी के कारण जिस प्रकार पौधे का विकास भलीभांति नहीं होता, उसी प्रकार अधिक पानी के कारण फफूंदजन्य रोग बढते हैं । पौधे अशक्त होते हैं । इसके कारण कीडे पैदा होते हैं; इसलिए पौधों को उचित मात्रा में पानी देना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है ।’ – श्री. राजेंद्र भट, लोकसत्ता (२६.२.२०१५)
२ आ २. पानी की मात्रा : शीतकाल में गमले के पौधे को २४ घंटे में एक बार पानी देना पर्याप्त है । यथासंभव, पानी सायंकाल में दें । इससे पानी वाष्प बनकर उडता नहीं, साथ ही पौधों को पूरा विश्राम मिलेगा और वे अधिक हरे-भरे दिखाई देंगे । किंतु, ग्रीष्मकाल में इन्हें दिन में दो बार पानी देना आवश्यक है । गमले के २५ प्रतिशत आकारमान का पानी पौधों के लिए पर्याप्त होता है । पौधों की जडों में हरी सब्जियों के डंठल, चाय की उपयोग की हुई पत्ती आदि डाला हो, तो अधिक पानी डालने की आवश्यकता नहीं रहती । गमले में पौधे के चारों ओर से पानी दें । गमले में से निकला मिट्टी का पानी घर में न फैलकर भूमि खराब न हो, इसके लिए गमले के नीचे प्लास्टिक अथवा धातु का पुराना पात्र रखें ।
२ आ ३. पौधों के लिए पोषक जल : घर के बर्तन मांजने से पूर्व बिना साबुन लगाए धोएं और वह जल पौधों में थोडा थोडा डालें । रसोई के समय हम दाल, चावल धोते हैं । यह धोवन यूं ही फेंकें नहीं; गमले में डालें । सादे पानी की अपेक्षा, यह पानी अधिक पोषक होता है, साथ ही इससे पानी का अपव्यय भी टल जाता है ।
‘एक लीटर पानी में एक कटोरी छाछ मिलाकर, वह डालने पर पौधों की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढती है । उसी प्रकार एक लीटर पानी में एक चुटकी हलदी चूर्ण, आधा कप बिनप का दूध, इसका मिश्रण भी पौधों के लिए लाभदायक होता है ।’
– श्री. राजेंद्र भट, लोकसत्ता (१४.५.२०१५)
२ इ. पौधे को तरल खाद देना और इसे बनाने की विधि : गमले के पौधों को १५ दिन के अंतराल पर तरल खाद देने से, वे सदैव लहलहाते रहेंगे । इसके लिए, गाय का लगभग एक कटोरी नया गोबर एक लोटा पानी में घोलकर २४ घंटे के लिए छोड दें । पश्चात उसमें भीमसेनी कपूर के छोटे टुकडे का चूर्ण अच्छे से मिला दें । अब यह घोल एक-एक प्याला प्रत्येक पौधे को दें । यह खाद डालने के पहले, उस गमले में पानी देना आवश्यक है । कुछ पौधे स्वभावतः अधिक पानी सोखते हैं । जब ऐसे पौधों की जडों में यह पतली खाद पहले डाली जाएगी, तब वे इसे अधिक मात्रा में पीएंगे, जिससे उनकी हानि हो सकती है अथवा वे मर सकते हैं ।
२ इ १. नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम प्रदान करनेवाले प्राकृतिक पदार्थ : ‘वृक्ष के सूखे पत्ते, सब्जियों के डंठल, छिलके, इनका उपयोग खाद के रूप में किया जा सकता है । उनके कारण मिट्टी के पोषणमूल्य बढते हैं । पौधे को नाइट्रोजन मिलने के लिए मेथी के शाक का अनावश्यक भाग, और फॉस्फोरस मिलने के लिए फूल और पत्ता गोभी के डंठल का खाद के रूप में उपयोग करें । अनेक बार पोटैशियम के अभाववश ऐसा लगता है, जैसे पत्तों में जंग लग गई है । ऐसे में केले, पपीते के पत्तों का उपयोग करें ।’ (संदर्भ : लोकसत्ता (२२.४.२०१५)
२ ई. एक निश्चित समय के पश्चात गमले की मिट्टी परिवर्तित करना
२ ई १. गमले की मिट्टी परिवर्तित करने की विधि : बडे गमले की मिट्टी वर्ष में एक बार और छोटे गमले की मिट्टी ६ मास में एक बार परिवर्तित करनी चाहिए । मिट्टी परिवर्तित करने के लिए खडे होकर बाएं हाथ की तर्जनी और मध्यमा उंगलियों के मध्य पौधे को धीरे से पकडकर, गमले को उसी हाथ पर उलट दें और दूसरे हाथ से गमले की किनार को पकडकर ऊपर-नीचे हलका झटका दें । इससे पौधा मिट्टी सहित गमले से बाहर आ जाएगा । इसके पश्चात, हलके हाथ से पौधे की जड से लगी मिट्टी इस प्रकार निकालें कि जडों को क्षति न पहुंचे । तदुपरांत इसे गमले में पहले की भांति पुनः लगाकर, गमले में पानी दें । मिट्टी परिवर्तित करने का कार्य यथासंभव सायंकाल में करें । इससे पौधे को पर्याप्त विश्राम मिलेगा और वह सवेरे प्रफुल्लित दिखाई देगा । कभी-कभी अनावश्यक जडों को छांटना पडता है । इसके लिए पानी देने के उपरांत उस पौधे को पर्याप्त विश्राम देने के लिए चार दिन छाया में रखें । गमले के पौधे को प्रायः सूर्य प्रकाश की आवश्यकता अधिक रहती है । अतः उसे ऐसे स्थान पर रखें, जहां सूर्यप्रकाश अधिक समय तक रहता हो ।
२ ई २. बडे गमलों की मिट्टी परिवर्तित करते समय सावधानी : बडे गमलों की मिट्टी परिवर्तित करना थोडा कठिन कार्य है । इसलिए इनकी मिट्टी परिवर्तित करने के पहले उनमें आवश्यक मात्रा में पानी डालना चाहिए । जब मिट्टी यह पानी सोख ले, तब उस गमले को भूमि के समानांतर आडा रखें । तत्पश्चात पौधे को जड के समीप से पकडकर धीरे से खींचें । मिट्टी गीली होने से पौधा गमले से बाहर आ जाता है ।
२ उ. फफूंद जनित रोगों की रोकथाम के लिए पौधों का निर्जंतुकीकरण आवश्यक : अनेक बार हम पौधा बाहर से लाकर लगाते हैं । ऐसे समय उस पौधे पर अथवा उसकी जडों में विविध प्रकार के कीटक अथवा चींटियां लगी हो सकती हैं । इसलिए लगभग आधी बाल्टी पानी में १ चम्मच हलदी चूर्ण, ४ चुटकी हींग चूर्ण और कर्पूर की दो टिकिया पीसकर अच्छे से मिला दें । अब इस घोल में पौधों को १० मिनट तक डुबाने के उपरांत गमले में लगाएं । ऐसा करने से पौधों की फफूंद और फफूंद जन्य अन्य रोगों से रोकथाम होगी ।
२ ऊ. गमले में लगे पौधों को कीडों से बचाने के घरेलू उपाय : कभी-कभी पौधों में चींटियां, कीडे आदि लग जाते हैं । ये पौधे के पत्ते खा जाते हैं अथवा उन्हें अन्य प्रकार से हानि पहुंचाते हैं । कीडे बडे हों, तो उन्हें पकडकर नष्ट करें । इन कीडों की रोकथाम के लिए निम्नांकित कोई भी घरेलू उपचार कर सकते हैं ।
१. प्रातः दो चम्मच तंबाकू तीन चौथाई लोटा पानी में भिगो दें । दोपहर में इस मिश्रण का आधा लोटा काढा बनाएं । जब काढा ठंडा हो जाए, तब फव्वारे की बोतल में भर लें और सायंकाल रोगग्रस्त पौधे पर सब ओर से छिडकाव करें । अधिकतर कीडे सायंकाल में ही लगते हैं; इसीलिए उस समय छिडकाव करना अधिक लाभदायक होता है । कीडे पत्तों के पीछे भी छिपे रहते हैं । इसलिए वहां भी छिडकाव करें ।
२. तंबाकू की भांति नीम के काढे का भी छिडकाव कर सकते हैं ।
३. कभी-कभी केवल कपूर अथवा हींग के घोल का छिडकाव करने से भी चींटियां और कीडे भाग जाते हैं । कपूर अथवा हींग का घोल बनाते समय वह पदार्थ पानी में पर्याप्त मात्रा में मिलाएं, जिससे उस घोल से तीव्र गंध आने लगे ।
– श्री. माधव रामचंद्र पराडकर, डिचोली, गोवा.
२ ए. पौधों को रोग हो जाए, तो भौतिक उपचारों के साथ आध्यात्मिक उपचार भी करें ! : अनेक बार पौधे पर कीडों का प्रादुर्भाव, फफूंद लगना, पौधा सूखना आदि के आध्यात्मिक कारण भी हो सकते हैं । अतएव पौधे की सुरक्षा के लिए भौतिक उपचारों के साथ ही विभूति फूंकना, पेड के आसपास नामजप की पट्टियों का मंडल बनाना, मन्त्र से जल अभिमन्त्रित कर, पौधे पर छिडकना जैसे आध्यात्मिक उपचार भी करें । आध्यात्मिक उपचारों संबंधी अधिक जानकारी सूत्र ११. वनस्पतियों को होनेवाली अनिष्ट शक्ति की पीडा के आध्यात्मिक उपचार में दी है ।
(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘औषधीय वनस्पतियोंका रोपण कैसे करें ?’)
‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की ओर से पूरे
भारत में नियोजित औषधीय वनस्पतियों के रोपण में सहायता करें !
आगामी भीषण काल में तीसरे विश्वयुद्ध एवं प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने की पूर्वतैयारी के एक भाग के रूप में ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की ओर से शीघ्रातिशीघ्र पूरे भारत में औषधीय वनस्पतियों का रोपण करने का नियोजन किया गया है । इसके लिए किसान; बडे भूखंडधारक; वनस्पतिशास्त्र (बॉटनी), कृषि तथा आयुर्वेद शास्त्र के विशेषज्ञ; औषधीय वनस्पतियों के जानकार जैसे अनेक लोगों की सहायता की आवश्यकता है । अपनी रुचि और क्षमता के अनुसार आगे दी सेवाओं में आप भी योगदान दे सकते हैं ।
१. प्रत्यक्ष रोपण संबंधी सेवा
अपनी भूमि में औषधीय वनस्पतियों का रोपण करना (यह रोपण खडी फसल-बगीचे में अंतरफसल के रूप में भी किया जा सकता है । इससे मुख्य फसल पर विपरीत परिणाम नहीं होता); औषधीय वनस्पतियों के रोपण हेतु आवश्यक पौध बनाना; रोपण के लिए भूखंड, मानव-संसाधन या औजार उपलब्ध कराना; शास्त्रीय पद्धति से रोपण करवा लेना; प्रत्यक्ष श्रमदान करना ।
२. अन्य सेवाएं
औषधीय वनस्पति पहचानना; रोपण कैसे करें, इस विषय पर मार्गदर्शन करना; तकनीकी समस्याएं दूर करना; औषधीय वनस्पतियों के रोपण संबंधी जानकारी देनेवाले ग्रंथ अथवा लेखन उपलब्ध कराना; शासकीय योजना मिलने में सहायता करना; रोपण हेतु आर्थिक सहायता करना; वनस्पतियों से औषधियां बनाने में सहायता करना ।
औषधीय वनस्पतियों के रोपण की सेवा में सहभागी होने हेतु संपर्क
श्री. विष्णु जाधव, ‘सनातन आश्रम’, २४/बी, रामनाथी, बांदिवडे, फोंडा, गोवा. पिन – ४०३ ४०१.
सचल-दूरभाष क्रमांक : 8208514791
संगणकीय पता : [email protected]
भावी हिन्दू राष्ट्र में आयुर्वेद ही मुख्य उपचार-पद्धति होगी ! उसके लिए भी अभी से औषधीय वनस्पतियों का संवर्धन करना महत्त्वपूर्ण है ।
वृक्षारोपण राजनेताओं से नहीं; अपितु संतों से करवाएं !
कहते हैं, ‘जैसा बीज बोओगे, वैसा ही फल होए’; इसलिए नेताओं द्वारा लगाए पेडों पर रज-तमात्मक अहंकार के, जबकि संतों के हाथों लगाए पेडों पर साधकत्व निर्माण करनेवाले फल लगते हैं !
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले