साधना की तीव्र लगन और ईश्वर पर दृढ श्रद्धा रख असाध्य रोग में भी भावपूर्ण साधना कर ‘सनातन के १०७ वें (समष्टि) संतपद’ पर आरूढ हुए अयोध्या के पू. डॉ. नंदकिशोर वेदजी (आयु ६८ वर्ष) !

परात्पर गुरु डॉ. आठवले

     रामनाथी (गोवा) – यहां के सनातन आश्रम में निवास करनेवाले डॉ. नंदकिशोर वेदजी (आयु ६८ वर्ष) का दीर्घकालीन रोग के कारण ११ मई २०२१ की संध्या को निधन हुआ । वे मूलत: अयोध्या (उत्तर प्रदेश) निवासी थे । २२ मई २०२१ को डॉ. नंदकिशोर वेद को देहत्याग किए १२ दिन पूर्ण हुए । इस दिन साधना की तीव्र लगन और ईश्वर पर दृढ श्रद्धा रख, असाध्य रोग में भी भावपूर्ण साधना कर वे सनातन के १०७ वें (समष्टि) संतपद पर आसीन हुए ।

पू. डॉ. नंदकिशोर वेदजी

     ‘अयोध्या जैसी पवित्र भूमि में जन्म लेकर संयुक्त परिवार में पले-बढे श्री. नंदकिशोर वेदजी की आरंभ से ही अध्ययन में रुचि थी । उत्तम स्मरणशक्ति और अध्ययन की वृत्ति के कारण उन्होंने अत्यधिक परिश्रम कर शिक्षा ग्रहण की । उन्होंने ‘अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद’ विषय पर शोध निबंध प्रस्तुत कर ‘पीएचडी’ की पदवी प्राप्त की । उन्होंने अन्य २ पुस्तकें भी लिखी हैं । अध्यापन की सेवा करते हुए उन्होंने उनके विद्यार्थियों से पुत्रवत प्रेम किया । ‘पीएचडी’ करनेवाले विद्यार्थियों का उन्होंने नि:शुल्क मार्गदर्शन किया । इससे उनकी निःस्वार्थ और निरपेक्ष प्रवृत्ति दिखाई देती है । इस कारण उनकी साधना कर्मयोगानुसार हुई । शिक्षा क्षेत्र में प्रगति करते समय उन्होंने अपने परिजनों की कभी उपेक्षा नहीं की । उन्होंने अपनी पुत्रियों को अच्छी शिक्षा देने के साथ-साथ अच्छे संस्कार भी दिए । ‘आदर्श पुत्र’, ‘आदर्श बंधु’, ‘आदर्श शिक्षक’ और ‘आदर्श पिता’ के रूप में उन्होंने सभी कर्तव्य उत्तम प्रकार से निभाए ।

     वर्ष २००० से अयोध्या (फैजाबाद) में सनातन संस्था का कार्य आरंभ होने पर डॉ. नंदकिशोर वेदजी लगन से सेवा करने लगे । उनका अहं मूलत: अल्प था । इसलिए स्वयं की उच्च शिक्षा अथवा प्रतिष्ठा का कोई भी विचार न कर, ‘जो दिखाई दे, वही कर्तव्य’ के भाव से वे सेवा करने लगे । उनका निवासस्थान साधकों के लिए आश्रम ही बन गया था । अयोध्या में सनातन का कार्य बढे, इस हेतु उन्होंने सभी स्तरों पर लगन से प्रयास किए । इसलिए वे ‘आदर्श साधक’ भी बने और वर्ष २०१८ में उनका आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत हुआ एवं वे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हुए ।

     दिसंबर २०१९ में पता चला कि उन्हें रक्त का कर्करोग हुआ है । व्यष्टि-समष्टि साधना की दृढ नींव और ईश्वर पर दृढ श्रद्धा के कारण उन्होंने कर्करोग की कटु वास्तविकता स्वीकार ली । असहनीय वेदना होते हुए भी ईश्वर के प्रति उनकी निष्ठा कभी नहीं डगमगाई । निरंतर भावविश्व और आंतरिक सान्निध्य में रहकर वे मन-बुद्धि से परे का आनंद अनुभव करते रहे । इसलिए रोग से जूझते हुए भी उनकी आध्यात्मिक उन्नति तीव्र गति से हुई । जब साधना अंतर्मन से होने लगती है, तब बाह्य स्थिति कितनी भी प्रतिकूल हो, साधना में अखंडता रहती ही है । साथ ही देहप्रारब्ध की ओर साक्षीभाव से देख पाना संभव होता है ।

     बढते रोग के कारण ११.५.२०२१ को सनातन के रामनाथी आश्रम में डॉ. नंदकिशोर ने अंतिम श्वास ली । आसन्न मृत्यु को देखते हुए भी उन्होंने लगन और भावपूर्ण साधना की, जिसके कारण मृत्यु के समय उनका आध्यात्मिक स्तर ६९ प्रतिशत हो गया था । आज उनके निधन का बारहवां दिन है । इन १२ दिनों में उनके आध्यात्मिक स्तर में २ प्रतिशत वृद्धि हुई है । विगत गुरुपूर्णिमा के समय उनका आध्यात्मिक स्तर ६२ प्रतिशत था, अर्थात केवल १० मास में उनका स्तर ९ प्रतिशत बढा है । इतनी तीव्र गति से आध्यात्मिक उन्नति करने का सनातन के इतिहास का यह प्रथम उदाहरण है ।

     साधना की तीव्र लगन और ईश्वर के प्रति दृढ श्रद्धा रखनेवाले डॉ. नंदकिशोर वेद ने आज ७१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया है । ‘सनातन के समष्टि संत’ के रूप में उन्होंने १०७ वां संतपद सुशोभित किया है ।

     पू. डॉ. नंदकिशोर वेदजी का पूर्ण परिवार साधना करता है । उनकी पुत्री श्रीमती क्षिप्रा का आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत है तथा अन्य सभी परिजनों की साधना भी भलीभांति चल रही है ।

     ‘पू. डॉ. नंदकिशोर वेदजी की आगामी प्रगति इसी प्रकार तीव्र गति से होगी’, इसका मुझे पूर्ण विश्वास है ।’

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले