परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी और श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी की एकरूपता के संदर्भ में साधकों को हुई अनुभूतियां

     सनातन के साधकों को जैसी अनुभूति परात्पर गुरु डॉक्टरजी के संदर्भ में होती है, वैसी ही अनुभूति उनकी आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचितशक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के संदर्भ में भी होती हैं । इससे ‘गुरुतत्त्व एक ही है’, परात्पर गुरुदेवजी की इस सीख की प्रतीति होती है । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी शिवधनुष उठाने समान साधकों को साधना संबंधी मार्गदर्शन करने की सेवा करती हैं एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी हिन्दू राष्ट्र-स्थापना और साधकों के साधना की बाधाएं दूर होने के लिए अविरत यात्रा कर रही हैं । अनेक साधकों ने दोनों सद्गुरुओं को प्रत्यक्ष देखा भी नहीं है, तब भी उनका भाव अनुभूतियों द्वारा प्रकट होता है ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी एवं दोनों सद्गुरु, प.पू. भक्तराज महाराजजी में विलीन होते हुए अनुभव होना

     ‘१.७.२०२० को मैं आषाढी एकादशी के दिन सवेरे ५.३० बजे उठा और मुझे प.पू. भक्तराज महाराजजी के दर्शन हुए । तदुपरांत मुझे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों के दर्शन हुए । उस समय मुझे परात्पर गुरु डॉक्टरजी संत भक्तराज महाराजजी में विलीन होते हुए दिखाई दिए । आगे श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के चरणों के दर्शन हुए एवं वे भी प.पू. भक्तराज महाराजजी में विलीन होती हुईं दिखाई दीं । तदुपरांत श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के चरणों के दर्शन हुए एवं वे भी प.पू. भक्तराज महाराजजी से एकरूप होती हुईं दिखाई दीं ।’ यह अनुभव करते समय मेरी आंखों से भावाश्रु बह रहे थे । भगवान ने दर्शन दिए, इसलिए मुझे चैतन्य एवं आनंद अनुभव हुआ तथा मेरा भाव जागृत हुआ । ईश्वर ने मुझे यह अनुभूति प्रदान की इसलिए मैं उनके चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञ हूं ।’
– श्री. शिवाजी चव्हाण, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल, महाराष्ट्र.

गुरुपादुका पूजन के समय परात्पर गुरुदेवजी और सद्गुरुद्वय,
इन तीनों के चरणों का पूजन हो रहा है, ऐसा अनुभव होना

     ‘महर्षि की आज्ञानुसार परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा हस्तस्पर्श की गईं गुरुपादुकाओं की प्रतिष्ठापना २३.३.२०१९ को वाराणसी सेवाकेंद्र में की गई । ध्यानमंदिर में गुरुपादुकाओं का पूजन होते हुए ‘परात्पर गुरुदेवजी शेषनाग पर लेटे है । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी और श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी भी उपस्थित हैं एवं इन तीनों के चरणों का पूजन हो रहा है ।’, ऐसा मुझे अनुभव हुआ । ‘पूर्ण वातावरण में लाल रंग फैला है’, ऐसा भी लगा ।’
– श्री. चंद्रशेखर सिंह, वाराणसी, उत्तर प्रदेश.

गुरुपादुका पूजन के समय परात्पर गुरुदेवजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती)
बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के दर्शन होना

     ‘परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा हस्तस्पर्श की गईं पादुकाओं का पूजन होते समय श्रीकृष्ण, परात्पर गुरुदेवजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के मुझे दर्शन हुए । ‘मैं श्री लक्ष्मीमाता रूपी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के चरणों की पूजा कर रही हूं’, ऐसा मुझे अनुभव हुआ । गुरुपादुका पूजन के चैतन्य के कारण मेरा मन शांत एवं स्थिर हुआ । उस समय मुझे अत्यंत शीतलता अनुभव हुई ।’
– कु. सुनीता छत्तर, वाराणसी, उत्तर प्रदेश.

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जन्मदिवस के निमित्त
प्रकाशित विशेष अंकों का अच्छे से उपयोग कर उसे संग्रहित रखें !

     गत वर्ष कोरोना महामारी के कारण अनेक मास दैनिक की छपाई नहीं हो सकी थी । इस अवसर पर सनातन के ग्रंथ, पहले प्रकाशित हुए ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकों का ही साधकों को आधार था । आगे आपातकाल में भी कैसी स्थिति होगी, इसकी इससे कल्पना की जा सकती है । यह ध्यान में रख इस बार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जन्मदिवस के निमित्त प्रकाशित किए जा रहे रंगीन विशेष अंकों की छपाई अच्छे कागज पर की गई है, जिससे आपातकाल के कुछ वर्ष साधक उसे संग्रहित रख सकते हैं । इन विशेष अंकों का उपयोग करते समय किन बातों का ध्यान रखना है, इस संदर्भ की कुछ सूचनाएं हैं ।

१. विशेष अंक पढकर, प्लास्टिक की थैली में रखें ।

२. वर्ष में एक बार यह अंक १० मिनट के लिए धूप में रखें । धूप से हटाने के उपरांत तुरंत ही प्लास्टिक की थैली में न रख वह ठंडा होने पर ही थैली में रखें ।

३. इन विशेष अकों में साधकों की सहज भावजागृति करनेवाले परात्पर गुरुदेवजी और संतों के विशेष छायाचित्र होने के कारण, उनका उपयोग आवरण निकालना इत्यादि के लिए न करें ।

४. अंक संग्रही रखते समय उसे अनेक बार न मोडें । मोडने पर कागज जल्दी जीर्ण होता है ।

सूक्ष्म : व्‍यक्‍ति का स्‍थूल अर्थात प्रत्‍यक्ष दिखनेवाले अवयव नाक, कान, नेत्र, जीव्‍हा एवं त्‍वचा यह पंचज्ञानेंद्रिय है । जो स्‍थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे है, वह ‘सूक्ष्म’ है । इसके अस्‍तित्‍व का ज्ञान साधना करनेवाले को होता है । इस ‘सूक्ष्म’ ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्‍लेख है ।

इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक