स्‍वभावदोष और अहं निर्मूलन का ‘ऑनलाइन’ सत्‍संग लेनेवाली ६१ टक्‍के आध्‍यात्मिक स्‍तर की कु. मधुलिका शर्मा में हुए परिवर्तन !

श्री शंभू गवारे

चैत्र शुक्‍ल पक्ष चतुर्दशी (२६.४.२०२१) को झारखंड की साधिका कु. मधुलिका शर्मा का तिथिनुसार जन्‍मदिन है । इसी दिन उनके द्वारा लिए जा रहे सत्‍संग को भी एक वर्ष पूर्ण हो रहा है । परात्‍पर गुरु डॉ. आठवले जी की कृपा से मुझे पिछले दो वर्षों से मधुलिका दीदी के साथ सेवा का अवसर मिला । इस कालावधि में व्‍यष्‍टि और समष्‍टि सेवा करते हुए कु. मधुलिका दीदी में हुए परिवर्तन मुझे ध्‍यान में आएं । वह गुरुचरणों में अर्पण करने का प्रयास कर रहा हूं !

सनातन परिवार की ओर से कु. मधुलिका शर्मा को जन्‍मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं !

कु. मधुलिका शर्मा

१. सकारात्‍मकता में वृद्धि होना : पूर्व में दीदी के मन में स्‍वयं के विषय में अनेक नकारात्‍मक विचार रहते थे । लेकिन विगत दो वर्षों में दीदी ने उनके स्‍वभावदोष पर कठोरता से प्रयास किए इस कारण अभी उनके मन में स्‍वयं के प्रति नकारात्‍मक विचार नहीं रहते हैं । साधना के लिए आवश्‍यक पंचसूत्री (पूछना, सुनना, स्‍वीकारना, सीखना और कृति करना) का दीदी मन लगाकर पालन करती है । उनके ‘पूछना और सुनना’ इन गुणों में वृद्धि हुई है ।

२. आत्‍मविश्‍वास में वृद्धि होना : पूर्व में उन्‍हें लगता था कि ‘मैं अच्‍छे से बात नहीं कर सकती, मुझे समाज के सामने बात करने में डर लगता
है ।’ इस कारण वे ऐसी सेवाआें से दूर रहती थी । संचारबंदी की कालावधि में गुरुदेव जी ने दीदी से बहुत अच्‍छे प्रयास करवाएं । समाज के लिए हमने स्‍वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया का अभ्‍यासवर्ग आरंभ किया । वह दीदी भावपूर्ण, अभ्‍यासपूर्वक एवं आत्‍मविश्‍वास के साथ लेने
लगी । उनके वर्ग लेने की पद्धति से केवल साधकों में ही नहीं, अपितु समाज के लोगों में भी स्‍वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया के प्रति रूचि निर्माण होकर स्‍वयं में परिवर्तन अनुभव होने लगे ।

३. अन्‍यों का विचार करना : पहले सेवा करते समय दीदी केवल स्‍वयं की सेवा का विचार करती थी । उनके मन में अन्‍य सेवा के बारे में विचार भी नहीं आते थे तथा ‘यह चूक है’ ऐसा बोध भी उन्‍हें अल्‍प मात्रा में होता था । अभी दीदी इस स्‍वभावदोष पर मात कर स्‍वयं में व्‍यापकत्‍व लाने का अच्‍छा प्रयास कर रही है । अभी दीदी अन्‍यों की सेवा का विचार कर उन्‍हें सहायता भी करती है ।

४. स्‍वयं को बदलने की लगन : दीदी को समष्‍टि सेवा की दृष्‍टि से साधकों से बात करना अच्‍छा नहीं लगता था तथा उस हेतु प्रयास करने की भी उनकी मन की सिद्धता नहीं रहती थी । समष्‍टि सेवा का महत्‍व ध्‍यान में आने पर उन्‍होंने कृति के स्‍तर पर प्रयास करना आरंभ किया । अब वे स्‍वयं साधकों के साथ बात करती है । इस कारण अब साधकों को भी उनसे निकटता अनुभव होकर उनका आधार लगता है । गुरुदेव जी की कृपा से उनमें यह लक्षणीय परिवर्तन हुआ है ।

– श्री. शंभू गवारे, कोलकाता (७.४.२०२१)

उनको अपना आशीर्वाद रूपी उपहार दिया ।

मधुलिका दीदीने किए हैं स्‍वयं में बदलाव ।
दोषों के सामने नहीं मानी उन्‍होंने हार ।
देखकर उनके प्रयास, गुरुदेवजी ने जन्‍म-मृत्‍यु के चक्र से मुक्‍त किया ।
उनको अपना आशीर्वाद रूपी उपहार दिया ॥ १ ॥

दीदी में है भाव, जिससे उन्‍होंने जीता साधक एवं संतों का मन ।
श्रीगुरुचरणों में एक ही प्रार्थना ।
करवा लें दीदी से आगे की प्रगति बनाकर उनका साधनामय हर क्षण ॥ २ ॥

                                                        – श्री. शंभू गवारे, कोलकाता (७.४.२०२१)