‘एम.आई.एम.’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने २६ अप्रैल को वाराणसी की एक चुनावी प्रचारसभा में उत्तर प्रदेश के माफिया मुख्तार अंसारी की मुक्तकंठ से प्रशंसा की । केवल इतने पर न रुककर ओवैसी ने अंसारी के ‘शहीद’ होने की भी बात कही तथा वहां उपस्थित सहस्रों मुसलमानों ने उनके इस वक्तव्य का तालियां बजाकर समर्थन किया । बैरिस्टर होने के कारण असदुद्दीन ओवैसी को कानून का अच्छा ज्ञान है । ‘मुख्तार अंसारी कौन था ?’, इसकी उन्हें अच्छी जानकारी है । अनेक हत्याओं का आरोपी तथा उत्तर प्रदेश में ही नहीं, अन्य राज्यों में भी जिस पर आपराधिक मामले पंजीकृत हैं, ऐसे अपराधी का ओवैसी ने समर्थन किया । मुख्तार अंसारी पिछले १८ वर्ष से कारागृह में बंद था । पिछले महिने कारागृह में उसकी मृत्यु हुई । उसके परिजनों ने आरोप लगाया कि ‘पुलिस ने उस पर विषप्रयोग कर उसकी हत्या कराई ।’ ओवैसी को भी उसमें सच्चाई लगती हो, तो इस बैरिस्टर महानुभाव को न्यायालय में इस प्रकरण में मांग करनी चाहिए थी; परंतु वैसा करने के स्थान पर ओवैसी मुख्तार अंसारी जैसे शैतान को ‘महात्मा’ के रूप में मुसलमानों के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं । ओवैसी के द्वारा मतों के लिए की जा रही यह राजनीति भविष्य में देश के लिए घातक तो है ही; परंतु यह बात मुसलमान समुदाय के लिए भी अच्छी नहीं है । पहले ही आपराधिक गतिविधियों में अग्रणी मुसलमान समुदाय को ओवैसी जैसे नेता और अधिक रसातल तक पहुंचा रहे हैं । ‘भविष्य में देश के लिए यह सिरदर्द बनेगा’, इसे अलग से बताने की आवश्यकता नहीं है । अनेक लोगों की हत्याएं कर तथा डाके डालकर जहन्नुम के (नर्क के) अधिकारी मुख्तार अंसारी को ओवैसी ‘शहीद’ प्रमाणित करते हों, तो ऐसे शहीद तथा उनके समर्थक भारत को पाकिस्तान की दिशा में ले जाएंगे ।
अल्लाह द्वारा दिखाए पथ पर जाकर इस्लाम के लिए मृत्यु स्वीकार करनेवाले व्यक्ति को ‘शहीद’ कहा जाता है । अनेक लोग ‘हुतात्मा’ शब्द के स्थान पर ‘शहीद’ शब्द का प्रयोग करते हैं । उसके कारण भारत की स्वतंत्रता हेतु बलिदान देनेवाले क्रांतिकारी तथा देश की रक्षा करते हुए प्राणों का बलिदान देनेवाले भारत के सैनिकों को भी कुछ लोग ‘शहीद’ बोलते हैं । क्रांतिकारी भगत सिंह को भी ‘शहीद’ उपाधि लगा दी जाती है; परंतु इस्लाम की व्याख्या के अनुसार उक्त लोगों में से कोई भी ‘शहीद’ नहीं है, इसके विपरीत उन्हें ‘शहीद’ बोलना उनके त्याग का अपमान है । ओवैसी को ‘शहीद’ एवं ‘हुतात्मा’ के बीच का अंतर निश्चित ही ज्ञात है । इसलिए उन्होंने इस्लाम के परिप्रेक्ष्य में ही मुख्तार अंसारी को ‘शहीद’ बोला है, इसमें कोई संदेह नहीं है । स्वराज्य पर चाल कर आनेवाले औरंगजेब, अफजलखान आदि धर्मांध भी मुसलमानों को ‘आलमगिर’ (विश्वविजेता) तथा ‘शहीद’ लगते हैं । इसका कारण यह है कि उन्होंने इस्लाम के लिए प्राणों का बलिदान दिया, यह ओवैसी तथा मुसलमान समुदाय की धारणा है; इसलिए इनसे भारत को संकट है ।
मुसलमानों को पिछडा रखनेवाले नेता !
मुसलमान आर्थिक, शैक्षिक एवं सामाजिक दृष्टि से पिछड गए, इसका ठिकरा देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं पर फोडा जाता है; परंतु मुसलमानों का पिछडापन उनमें स्थित धर्मांधता में है । उसके लिए अन्य कोई भी उत्तरदायी नहीं हैं, अपितु ओवैसी भाईयों जैसे मुसलमान नेता ही इसके लिए उत्तरदायी हैं । ओवैसी द्वारा मुख्तार अंसारी को ‘शहीद’ कहे जाने का अर्थ है उसके द्वारा की गई हत्याओं का तथा गुंडागर्दी का समर्थन करना ! ऐसे व्यक्ति को अल्लाह का बंदा (शहीद) बोलकर ओवैसी ने सभी मुसलमानों को मुख्यात अंसारी के पथ पर चलने का संदेश दिया है । मुसलमान आधुनिक शिक्षा नहीं लेते; इसलिए सरकार मदरसों में कुरान के अतिरिक्त अन्य विषयों की शिक्षा देने की योजना तो ले आई; परंतु उसके उपरांत भी मुसलमानों की धर्मांधता कम होने का नाम नहीं ले रही है । इसका कारण यह है कि ओवैसी जैसे नेता उनका नेतृत्व करते हैं । कश्मीर का फारूख अब्दुल्ला का घराना हो या महाराष्ट्र के अबू आजमी हों, मुसलमानों के इन नेताओं ने मुसलमानों के सामने सदैव ही धर्मांधता का आदर्श रखा है । ये नेता नैतिकता तथा विकास के बल पर चुनाव नहीं जीत सकते । केवल धर्म के नाम पर ही उनकी राजनीति चमकती है । इसलिए इन नेताओं ने अभी तक हिन्दुओं को भय दिखाकर मुसलमानों के मत अर्जित करने का काम किया है । जब तक ऐसे नेता मुसलमान समुदाय का नेतृत्व करेंगे, तब तक मुसलमानों को ‘अल्पसंख्यक’ के रूप में चाहे कितनी भी सुविधाएं दी जाएं, तब भी मुसलमानों का विकास संभव नहीं है ।
केवल मतों के लिए उपयोग !
स्वतंत्रता के उपरांत के काल में कांग्रेस मुसलमानों का मुखौटा बन गई । धर्म के नाम पर मुसलमानों के एकमुश्त मत मिलते हैं, यह ध्यान में आने पर कांग्रेस ने भारत में मुसलमानों के तुष्टीकरण की राजनीति आरंभ की । कांग्रेस ने अनेक वर्ष तक मुसलमानों के एकमुश्त मतों के बल पर अपने अनेक प्रत्याशियों को जिताया । कांग्रेस ने मतों के लिए मुसलमानों को ‘अल्पसंख्यक’ प्रमाणित कर उन्हें अनेक सुविधाएं भी दीं । स्वतंत्रता के उपरांत के काल के पश्चात भी अभी तक मुसलमानों को ये सुविधाएं देना जारी है; परंतु इतने वर्षाें में आपराधिक क्षेत्र में मुसलमान ही अग्रणी हैं । बलात्कार, मादक पदार्थाें की तस्करी एवं हत्याओं के प्रकरणों में युवा मुसलमानों की संलिप्तता भी बडे स्तर पर दिखाई देती है । इस विषय में मुसलमानों को सचमुच ही चिंतन करने की आवश्यकता है । कांग्रेस ने अभी तक मुसलमानों का केवल उपयोग कर लिया, यह बात ध्यान में आने पर मुसलमान समाज में ओवैसी जैसे नेता तैयार हुए । इन नेताओं को यदि सचमुच मुसलमानों का हित साधना होता, तो वे मुसलमानों को अपराधों के इस दलदल से बाहर निकालने का प्रयास करते; परंतु वे भी कांग्रेस की भांति ही मतों के लिए ही मुसलमानों का उपयोग कर रहे हैं । ऐसे नेता मुसलमानों का हित नहीं कर सकते ।
मुसलमानों को यह भय दिखाया जाता है कि उन्होंने यदि अपनी धर्मांधता छोडी, तो भारत में उनका अस्तित्व संकट में पड जाएगा; परंतु यह उनका भ्रम है । मुसलमानों की अपेक्षा अधिक अल्पसंख्यक होकर भी भारत में जैन एवं पारसी पंथीय लोग मिलजुलकर रहते हैं । हिन्दुओं के मन को उन्हें हिन्दू बनाने का विचार भी स्पर्श नहीं करता । मूलतः धर्मांतरण या बलपूर्वक धर्म बढाने की सीख हिन्दुओं के किसी भी ग्रंथ में नहीं है । ओवैसी जैसे नेता मुसलमानों को धर्मांधता की ओर ले जा रहे हैं । इसमें न मुसलमानों का हित है न भारत का !, यह मुसलमानों को समझ लेना चाहिए । संक्षेप में कहा जाए, तो अधिकतर मुसलमानों में विद्यमान धर्मांधता राष्ट्रीय समस्या है, जिससे निपटने हेतु सरकार द्वारा गंभीरता से प्रयास होने की आवश्यकता है !
राष्ट्र की जड पर आघात करनेवाली मुसलमान समाज की धर्मांधता से निपटने के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास होना आवश्यक ! |