CJI In Judicial Officers Conclave : नागरिकों के प्राण जाने की प्रतीक्षा करनेवाली न्यायदान प्रक्रिया में परिवर्तन लाना चाहिए !

मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड ने न्यायपालिका को सुनाए खडे बोल !

मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रदूड

कर्णावती (गुजरात) – न्याय की संकल्पना न्यायालय के द्वार खटखटाने के तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए । इसलिए न्यायदान में ही परिवर्तन करना होगा, ऐसा वक्तव्य मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रदूड ने गुजरात के ‘ज्युडिशियल ऑफिसर्स कॉन्कलेव्ह’ इस कार्यक्रम में दिया । ‘किसान के जीवित रहने तक उसे न्याय नहीं मिलता है । इस स्थिति में परिवर्तन लाना हो, तो न्यायदान करते समय नागरिकों के प्राण चले जाने की प्रतीक्षा न करें’, ऐसा भी उन्होंने न्यायव्यवस्था को सुनाया ।

मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड ने प्रस्तुत किए सूत्र

१. युक्तिवाद के लिए किसी अधिवक्ता को मनवाना कठिन बात !

जटिल अभियोग का निर्णय देना सरल होता है; परंतु युक्तिवाद के लिए किसी अधिवक्ता को मनवाना कठिन बात है; क्योंकि सुनवाई स्थगित करना नित्य की बात हो गई है । समझ लो कि यदि आप डॉक्टर के पास जाते हैं और डॉक्टर कहते हैं कि, ‘आज मैं उपचार नहीं करूंगा’, तो क्या आप उसका स्वीकार करोगे ?

२. न्यायपालिका पर नागरिकों का विश्वास बना रहे, ऐसा काम न्यायपालिका को करना चाहिए !

बार-बार सुनवाई स्थगित की जाना और अभियोग धीमी गति से चलते रहना यह न्यायालयों की संस्कृति है । जनसामान्यों की ऐसी ही भावना है; परंतु न्यायपालिका को ऐसा काम करना चाहिए कि, ‘न्यायपालिका पर नागरिकों का विश्वास बना रहे।’ इसके लिए न्यायालयों को मूलभूत सुविधाएं देनी चाहिए । न्यायालय में भीड नहीं होगी, अभियोग प्रविष्ट (दाखिल) करने में विलंब नहीं होगा, इसकी सावधानी बरतनी होगी ।

३. जिला न्यायालय में प्रतिभू (जमानत) नकारने की प्रवृत्ति वृद्धिंगत हो रही है । इसका कारण खोजना चाहिए । जिला न्यायालयों को आत्मपरीक्षण कर इसपर स्पष्टीकरण देना चाहिए ।

४. महिलाओं को न्यायपालिका में दुर्लक्षित किया जाता है !

महिला न्यायाधीश अभियोगों को निपटाने में ही लगी रहती हैं । मुझे बताया गया कि वे सवेरे ९ बजे से पहले और सायंकाल में ६ बजे के उपरांत ही प्रसाधनगृह में जाती हैं । देश के केवल ६ प्रतिशत जिला न्यायालयों में सॅनिटरी नैपकीन यंत्र हैं । महिला न्यायाधीश और कर्मचारियों को न्यायालयों में पर्याप्त सुविधाएं नहीं दी जाती । विशेष बात यह कि महिलाओं की न्यायपालिका में उपेक्षा की जाती है ।

संपादकीय भूमिका

इसके लिए मुख्य न्यायाधीश को ही आगे आना चाहिए और उनकी अधिकार कक्षा में परिवर्तन करवा लेने चाहिए, ऐसा ही जनता को लगता है ! मुख्य न्यायधीश ने ही यह विचार रखे, वह अच्छा हुआ । अब इस व्यवस्था में परिवर्तन करने के लिए संबंधित व्यक्तियों को पहल करना आवश्यक !/strong>