Gyanvapi Survey : मस्‍जिद के स्‍थान पर पूर्व में मंदिर होने के ३२ प्रमाण मिले ! 

ज्ञानवापी के भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण विभाग का सर्वेक्षण

ज्ञानवापी मस्‍जिद

वाराणसी (उत्तर प्रदेश) – यहां ज्ञानवापी मस्‍जिद का भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण विभाग ने जिला न्‍यायालय आदेश से सर्वेक्षण किया था । उसका विवरण (रिपोर्ट)  हिन्‍दू एवं मुसलमान पक्ष को दिया गया । हिन्‍दू पक्ष के अधिवक्‍ता विष्‍णु शंकर जैन ने २५ जनवरी रात्रि को पत्रकार परिषद लेकर इस रिपोर्ट के महत्त्वपूर्ण सूत्र सार्वजनिक किए । इस सर्वेक्षण के रिपोर्ट में ज्ञानवापी मस्‍जिद के स्‍थान पर पूर्व में बडे मंदिर का अस्‍तित्‍व था । यह मंदिर ध्‍वस्‍त कर उसके अवशेषों का उपयोग कर वहां मस्‍जिद का निर्माण किया गया, ऐसा स्‍पष्ट किया गया है । ८३९ पृष्ठों के इस विवरण में इस स्‍थान पर मंदिर होने के ३२ प्रमाण प्राप्त होने की जानकारी दी गई है ।

कब हुआ था सर्वेक्षण ?

मई २०२२ में ज्ञानवापी में न्‍यायालय आयुक्‍तों द्वारा सर्वेक्षण किया गया । तदनंतर  भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण विभाग द्वारा सर्वेक्षण किया गया । ८४ दिनों के सर्वेक्षण में ज्ञानवापी में जी.पी.आर. (ग्राऊंड पेनेट्रेटिंग रडार – भूमि भेदक रडार), छायाचित्र, चित्रीकरण आदि माध्‍यमों का उपयोग किया गया । ३६ दिनों में इसका विवरण तैयार किया गया । जी.पी.आर. रिपोर्ट बनाने के लिए ३० दिन लगे । यह रिपोर्ट अमेरिका के जी.पी.आर. सर्वेक्षण विशेषज्ञों द्वारा बनाई गई ।

 मंदिर होने की रिपोर्ट में प्रविष्ट किए गए प्रमाण 

१. भगवान शिव के जनार्दन, रुद्र एवं ओमेश्‍वर इस प्रकार ३ नाम मिले ।

२. मंदिर ध्‍वस्‍त कर उसके स्‍तंभ, मस्‍जिद का निर्माण करने के लिए उपयोग में लाए गए ।

३. मस्‍जिद की पश्‍चिम की ओर की भीत, मंदिर की भीत थी, यह स्‍पष्ट रूप से दिखाई देता है । यह भीत ५ सहस्र वर्षों पूर्व नागर शैली में निर्माण की गई थी ।

४. भीत के नीचे १ सहस्र वर्ष पुराने अवशेष भी मिले ।

५. मस्‍जिद का घुमट केवल ३५० वर्ष पुराना है ।

६. श्री हनुमान एवं श्री गणेशजी की भग्न मूर्तियां भी मिली हैं ।

७. भीत पर त्रिशूल का आकार है ।

८. मस्‍जिद में औरंगजेब-कालीन एक पत्‍थर का स्‍लैब भी मिला है ।

९. तलघर (बेसमेंट) ‘एस-२’ में हिन्‍दुओं के देवताओं की मूर्तियां भी मिली हैं ।

१०. पुरातत्‍व विभाग ने २ सितंबर १६६९ को मंदिर ध्‍वस्‍त करने के इतिहास विशेषज्ञ  जदुनाथ सरकार के निष्‍कर्ष पर विश्‍वास व्‍यक्‍त किया है ।

११. मिले हुए स्‍तंभों पर ‘शक संवत १६६९’ लिखा है एवं ‘औरंगजेब ने मस्‍जिद का निर्माण १६७६-७७ में किया’, ऐसा लिखा है ।

१२. भीत पर कन्‍नड, तेलगू, देवनागरी भाषा में लेखन मिला है ।

१३. ज्ञानवापी मस्‍जिद के कक्षों में फूलों की नक्‍काशी है ।

१४. एक स्‍तंभ पर अनेक घंटियां, चारों ओर से दीपक उकेरे गए हैं । उस पर शक संवत १६६९ (अर्थात १ जनवरी १६१३) लिखा हुआ है ।

१५. एक कक्ष में अरबी-फारसी भाषा में लिखी हुई शिला मिली है । उस पर मस्‍जिद का निर्माण मुगल शासक औरंगजेब के शासनकाल में (१६७६-७७) में किया गया, ऐसा उल्लेख मिलता है ।

१६. इसी शिला पर वर्ष १७९२-९३ में मस्‍जिद की देखभाल-दुरुस्‍ती की गई होने की प्रविष्टि है । इस शिला का छायाचित्र पुरातत्‍व विभाग के पास भी उपलब्‍ध है । वर्तमान जांच में यह शिला मस्‍जिद के एक कक्ष में देखी गई; परंतु मस्‍जिद का निर्माण एवं विस्‍तार के संदर्भ में पत्‍थर की पंक्‍तियां मिटा दी गई थी ।

१७. परिसर के सभी विद्यालय एवं मंदिर ध्‍वस्‍त करने का आदेश दिया गया था, यह औरंगजेब के चरित्र ‘मासिर-ए-आलमगिरी’ में उल्लेखित है । तदनंतर काशी का विश्‍वनाथ मंदिर ध्‍वस्‍त किया गया था ।

१८. द्वारों पर पशु-पंखियों के चित्र उकेरे गए हैं । इस क्षेत्र में कुआं भी दिखाई दिया है ।

१९. ‘महामुक्‍ति मंडप’ ऐसा शब्‍द लिखा हुआ एक शिलालेख परिसर में मिला है ।

(और इनकी सुनिए…) ‘पुरातत्‍व विभाग के सर्वेक्षण व्‍यावसायिक पुरातत्‍व वैज्ञानिकों के सामने नहीं टिक सकते !’ – असदुद्दीन ओवैसी

अंगूर खट्टे हैं ! यदि यह विवरण (रिपोर्ट) मुस्‍लिमों के पक्ष में आया होता, तो ओवैसी ने ऐसी प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त नहीं की होती, ये भी सच है !

असदुद्दीन ओवैसी

भाग्‍यनगर (तेलंगाना) – एम.आइ.एम. के अध्‍यक्ष एवं सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने ज्ञानवापी मस्‍जिद के संदर्भ में पुरातत्‍व विभाग के सर्वेक्षण विवरण पर ‘एक्‍स’ पर पोस्‍ट द्वारा प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त करते हुए कहा ‘‘व्‍यावसायिक पुरातत्‍व वैज्ञानिक अथवा इतिहासकार के किसी भी गुट के शैक्षिक जांच में यह सर्वेक्षण नहीं टिकेगा । यह विवरण (रिपोर्ट) अनुमानों पर आधारित है एवं वैज्ञानिक अध्‍ययन का उपहास उडाता है । एक  महान विद्वान ने एक बार कहा था ‘‘भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण विभाग अर्थात हिन्‍दुत्‍व के हाथ की कठपुतली है ।’’

मुसलमान स्‍वयं ही ज्ञानवापी हिन्‍दुओं को सौंपें  ! – अधिवक्‍ता विष्‍णु शंकर जैन

अधिवक्ता विष्णुशंकर जैन

नई देहली – इससे आगे हिन्‍दू पक्ष मुसलमान पक्ष से किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करेगा । मुस्‍लिम पक्ष को ही ज्ञानवापी हिन्‍दुओं को सौंप देनी चाहिए, यह आवाहन ज्ञानवापी अभियोग के हिन्‍दू पक्ष-अधिवक्‍ता विष्‍णु शंकर जैन ने ‘आज तक’ वृत्तवाहिनी को दिए साक्षात्‍कार में किया । ‘मंदिर ध्‍वस्‍त करने के उपरांत मस्‍जिद का निर्माण किया गया’, ऐसा भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण विभाग के विवरण (रिपोर्ट) से स्‍पष्ट हुआ है । वजूखाना की (नमाज से पूर्व हाथ-पैर धोने का स्‍थान) भारतीय पुरातत्‍व विभाग द्वारा सर्वेक्षण करने की मांग की जाएगी । हम मंदिर न्‍यायालय के माध्‍यम से प्राप्‍त करेंगे । शीघ्र ही ज्ञानवापी परिसर हमारा होगा’, ऐसा विश्‍वास भी अधिवक्‍ता जैन ने इस समय व्‍यक्‍त किया ।

जैन ने आगे कहा ‘‘भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण विभाग के विवरण में ऐसा सूचित किया गया है कि यहां मस्‍जिद पहले से स्‍थित पुराने मंदिर के अवशेषों का उपयोग कर बनाई गई थी । जिस मंदिर पर मस्‍जिद का निर्माण किया गया था, उस मंदिर के अस्‍तित्‍व के पर्याप्‍त प्रमाण मिलने के संदर्भ में, सर्वेक्षण विवरण में बताया गया है ।

देश में जितने मंदिरों को ध्‍वस्‍त कर मस्‍जिदों का निर्माण किया गया, वे सभी हम वापस लेंगे !

अधिवक्‍ता विष्‍णु शंकर जैन ने स्‍पष्‍ट शब्‍दों में कहा कि जब तक हम देश के सभी मंदिर वापस नहीं लेते, तब तक हमारा संघर्ष जारी ही रहेगा । देश में जितने मंदिरों को ध्‍वस्‍त कर मस्‍जिदों का निर्माण किया गया वे सभी हम वापस लेंगे । काशी, मथुरा, टीलेवाली मस्‍जिद, ताजमहल, कुतुब मीनार हम वापस लेंगे ।

संपादकीय भूमिका 

श्रीरामजन्‍मभूमि के सर्वेक्षण में भी वहां पूर्व में मंदिर होने का निष्‍पन्‍न होने से सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने वह भूमि हिन्‍दुओं को दी थी । अब न्‍यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा किए बिना मुस्‍लिमों को स्‍वयं ही ज्ञानवापी मस्‍जिद हिन्‍दुओं को सौंप देनी चाहिए एवं धर्मनिरपेक्षता, निधर्मीवाद, सर्वधर्मसमभाव दिखाना चाहिए ! इसके लिए ऐसी विचारधारा के कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस, समाजवादी पार्टी  आदि दलों को अग्रसर होना चाहिए, हिन्‍दुओं को ऐसा ही लगता है !