संपादकीय
हिन्दुस्थान की अत्यंत पवित्र भूमि की आत्मा मर्यादापुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के मंदिर हेतु किया गया प्रदीर्घ काल का संघर्ष, हिन्दुओं के आत्मसम्मान एवं राष्ट्रीय अस्मिता के लिए विश्व के इतिहास में अमर हो गया है ! भारत की संस्कृति की परिभाषा, भारतीय सभ्यता के आदर्श, भारतीय जीवनमूल्यों का प्रतिनिधित्व करनेवाले रघुकुलवंशी अयोध्यापति श्रीराम का भव्य मंदिर अंततः बन गया है और वहां रामलला की प्राणप्रतिष्ठा की दैवी सूक्ष्म मुहूर्त घटिका निकट है ! आसेतुहिमालय से हिन्द महासागर तक प्रत्येक को एकात्मता के बंधन में बांधनेवाले श्रीराम एक अलौकिक राष्ट्रसूत्र हैं ! प्रत्येक के मन में बसे श्रीराम के मंदिर का निर्माण न केवल इस्लामी आक्रमणकारियों के पराजय की, न केवल अधर्म पर धर्म के विजय की; अपितु कलियुगांतर्गत छठे कलियुग में सत्ययुग की नवनिर्मिति की, हिन्दुओं के अलौकिक ‘हिन्दू राष्ट्र-निर्मिति’ की, अर्थात स्वधर्माधिष्ठित स्वराष्ट्र, सर्वशक्तिसंपन्न, सुव्यवस्थाप्रधान, सर्वसुविधायुक्त, सुखी, समृद्ध, सुसंस्कृत सुराज्य के सूर्याेदय की बेला है !
हिन्दू राष्ट्र की पदचाप !
अश्वमेध यज्ञ कर संपूर्ण पृथ्वी पर सहस्रों वर्ष राज्य करनेवाले प्रभु श्रीराम का रामराज्य, आदर्श राष्ट्र का सर्वोच्च उदाहरण है ! राजा श्रीराम राष्ट्र के लिए किए जानेवाले त्याग का सर्वाेत्तम उदाहरण हैं । वचनपूर्ति के लिए उन्होंने साक्षात राजसिंहासन का त्याग कर दिया ! सुग्रीव और बिभीषण को स्वयं जीते हुए राज्य लौटा दिए । आदर्श राजकाज के लिए दैवी धर्मपत्नी का भी त्याग करनेवाले राजा केवल और केवल प्रजाहितदक्ष प्रभु श्रीराम हैं ! प्रभु श्रीराम नम्रता, वचनबद्धता, नैतिकता, सुसंस्कृतता का सर्वाेच्च आदर्श हैं । वे ब्राह्मतेज और क्षात्रतेज के प्रतिरूप हैं ! असुर निर्दलन तथा आदर्श राष्ट्र-निर्मिति हेतु ही उनका अवतरण हुआ ! राष्ट्र सुरक्षा हेतु वानरों की सेना बनाकर शत्रुनाश के लिए सदैव तत्पर रहनेवाले वे सर्वश्रेष्ठ प्रजारक्षक हैं ! आवश्यकता पडने पर भव्य सागर को भी पार करने की क्षमता रखनेवाले वे चक्रवर्ती राजा हैं । रघुकुल दीपक राम कुशल संगठक हैं ! सभी के ‘आत्मा’राम हैं ! इसलिए वे सभी के लिए आदर्शवत हैं, अनुकरणीय हैं ! ‘यह राज्य निर्माण हो यह ‘प्रभु’ की इच्छा है !’, यही भाव रखकर हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना करनेवाले छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु समर्थ रामदासस्वामीजी ऐसे सर्वगुणसंपन्न प्रभु श्रीराम से एकरूप हुए हैं ! यह केवल संयोग नहीं है । छत्रपति शिवाजी महाराज का हिन्दवी स्वराज्य, आदर्शवत है और आदर्श केवल ‘रामराज्य’ है !
हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना के पूर्व समर्थ रामदासस्वामीजी ने पूरे भारत में भ्रमण कर श्रीरामतत्त्व कार्यरत किया था । रामराज्य परमोच्च आदर्श का बिन्दु है । इसलिए आदर्श राष्ट्र-निर्मिति हेतु रामतत्त्व कार्यान्वित होना, अपरिहार्य है ! वर्ष २०१९ तक विश्व की आर्थिक महासत्ता के १०वें क्रमांक पर रहनेवाला भारत अब तीसरे क्रमांक की आर्थिक सत्ता बनने की ओर अग्रसर है ! रामलला के केवल तंबू से बाहर आने पर इतना परिवर्तन हो सकता है, तो श्रीराम जब अपने भव्य पावन मंदिर में प्राणप्रतिष्ठित हो जाएंगे, जब उनका तत्त्व संपूर्ण विश्व में कार्यरत होने लगेगा, तब भारत को विश्वगुरु बनने में कितना समय लगेगा ? श्रीराम मंदिर का निर्माण केवल स्थूल से राजनीतिक घटनाक्रम लगता हो, तब भी उसके सूक्ष्म आध्यात्मिक परिणाम, दूरगामी तथा सर्वव्यापी हैं । १० वर्ष पूर्व अपराधजन्य माने जानेवाले ‘हिन्दू राष्ट्र’ शब्द का अब जयघोष होने लगा है, क्या यह रामलला की ही लीला नहीं है ? असंभव अब संभव हो रहा है । इसलिए आज की घडी में कठिन प्रतीत होनेवाला ‘हिन्दू राष्ट्र’ प्रत्यक्ष साकार होनेवाला है और यही श्रीराममंदिर निर्माण का सूक्ष्म स्तरीय कार्य है !
अविरत धर्मयुद्ध के ऐतिहासिक संघर्ष का फल !
वैवस्तान मनु द्वारा निर्मित अयोध्या पर द्वापरयुग तक सूर्यवंशी राजघराने के श्रीरामपुत्र कुश के उपरांत ४४ पीढियों ने राज्य किया । इ.स. पूर्व १०० में चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य, पुष्यमित्र शृंग सहित आगे के अनेक राजाओं ने इस मंदिर का नवनिर्माण तथा देखरेख की । वर्ष १५२८ में बाबर के सेनापति मीर बांकी द्वारा मंदिर तोडने के उपरांत, उसे वापस पाने के लिए अभी तक ७६ छोटे-बडे युद्ध हुए । अनेक संत-महात्माओं और भक्तों ने प्राणार्पण किए; परंतु रामभक्त हिन्दुओं की रण जीतने की आकांक्षा किंचित भी नहीं घटी । हिन्दुओं की प्रत्येक पीढी इसके लिए दृढ संकल्पित थी ! इस संघर्ष को नई ऊर्जा मिली और २३ दिसंबर १९४९ को बाबरी ढांचे में रामलला प्रकट हुए । ‘स्वतंत्र हिन्दुस्थान में श्रीरामजन्म के प्रमाण की मांग’, प्रत्येक रामभक्त के हृदय पर हुआ क्रूर आघात था । वर्ष १९९० में श्रीराम के लिए सभी जाति, संप्रदाय, पंथ, पद आदि भूलकर लाखों कारसेवक संगठित हुए और इससे एक बार पुनः यह सिद्ध हुआ कि ‘श्रीराम हिन्दुओं को एकत्र कर सकते हैं !’ १३४ वर्षाें से चल रहे न्यायालयीन संघर्ष का निर्णय, अत्यंत कठोर चुनौतियों के उपरांत अंततः ९ नवंबर २०१९ को हुआ और हिन्दुओं की जीत हुई ! किसी समूह द्वारा पूरे ५०० वर्ष किसी मंदिर के लिए संघर्ष करना, विश्व की एकमात्र घटना होगी । साक्षात ब्रह्मांडनियंता श्रीविष्णु अवतार श्रीराम के चैतन्य का ही यह परिणाम था ! श्रीराममंदिर पर हुआ आक्रमण, हिन्दू धर्म एवं राष्ट्रीयता पर हुआ आघात था । इस कारण यह आत्मगौरव वापस पाते समय प्रत्येक भारतीय का हृदय द्रवित हो उठा है !
स्वर्णिम क्षणों के साक्षी !
‘रामनाम’ तथा अयोध्या, एक सकारात्मक ऊर्जा एवं चैतन्य का स्रोत है, संस्कृति की अस्मिता है, इतिहास का बोध है, जीवन का आदर्श है, राष्ट्रोद्धार की प्रेरणा है; इतना ही नहीं, धर्मसंस्थापना का मार्ग एवं उसके माध्यम से मिलनेवाले मोक्ष का द्वार है ! इस अलौकिक मंदिर के निर्माण से हिन्दू धन्यता तथा आत्मिक संतोष अनुभव कर रहे हैं ! हिन्दू राष्ट्र-निर्मिति की आधारभूत नींव है यह मंदिर ! इसकी निर्मिति के अभूतपूर्व क्षणों के साक्षी बनने का सौभाग्य इस पीढी को मिला है । श्रीराम के व्यष्टि एवं समष्टि व्यक्तित्व का आदर्श आचरण में उतारकर, उसके लिए प्रयास करना ही कालानुसार सच्ची रामभक्ति है । आज विविध कारणों से हिन्दुओं का संगठन बढ रहा है । ‘घर में घुसकर शत्रु को मारने’ का आदर्श श्रीराम ने हमारे समक्ष रखा है । शत्रु को पहचानना, उसके तुल्यबल तैयारी करना तथा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण, विजय के लिए भक्त बनकर उपासना करना, यह सीख रामचरित्र हमारे समक्ष रखता है । धर्म का अधिष्ठान रखकर शत्रु को भयभीत करनेवाला हिन्दू-संगठन तथा धर्माचरण करनेवाली प्रजा, आदर्श हिन्दू राष्ट्र की निर्मिति कर सकती है । मंदिर के माध्यम से रामतत्त्व कार्यरत होगा तथा उसके लिए आध्यात्मिक प्रेरणा मिलेगी । अतएव रामभक्त अब अपनी उपासना की गति बढाएं तथा राष्ट्रोत्थान के कार्य में अभूतपूर्व योगदान देने के लिए संगठित रूप से समर्पित हो जाएं, तो रामराज्य की प्रभात दूर नहीं !
रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ।।