‘वर्ष १९७१ में पाकिस्तान के विरुद्ध चले युद्ध में भारतीय नौसेना ने पाकिस्तान के कराची बंदरगाह पर जोरदार आक्रमण किया था । उसके उपलक्ष्य में भारतीय नौसेना की ओर से प्रतिवर्ष ४ दिसंबर के दिन ‘विजयदिवस’ के रूप में मनाया जाता है । इस वर्ष महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले के मालवण में ‘नौसेना दिवस’ भव्य रूप में मनाया गया । इस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उपस्थित थे । सिंधुदुर्ग में संपन्न इस कार्यक्रम में युद्धनौकाएं सम्मिलित हुईं । इस अवसर पर तारकर्ली एवं मालवण के समुद्र में भारतीय नौसेना के सामर्थ्य का शक्तिप्रदर्शन हुआ । छत्रपति शिवाजी महाराज ने नौसेना एवं समुद्री सुरक्षा को प्राथमिकता दी थी । व्यापारी, समुद्री डाकुओं एवं ब्रिटिशों पर नियंत्रण रखने हेतु समुद्री किलों की आवश्यता को उन्होंने जान लिया था । उसी के चलते उन्होंने अभेद्य सिंधुदुर्ग के किले का निर्माण किया था ।
१. भारतीय नौसेना की सफल यात्रा !
१ अ. नौसेना का अभियान ‘ऑपरेशन ट्राइडंट’ ! : भारतीय नौसेना विश्व की ५ वें क्रम की नौसेना है । भारतीय महासागर क्षेत्र में संतुलन एवं सुरक्षा बनाए रखने का कार्य नौसेना करती है । वर्ष १९७१ में भारतीय नौसेना ने पाकिस्तान के विरुद्ध चले युद्ध में कराची बंदरगाह पर आक्रमण करने में, विशाखापट्टणम् पर किए गए आक्रमण को निष्फल करने में तथा पूर्वी पाकिस्तान की नौसेना को वहां से भगा देने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था । इस अभियान का नाम ‘ऑपरेशन ट्राइडंट’ था ।
१ आ. पनडुब्बियों की बढती संख्या : भारतीय नौसेना ने पारंपरिक तथा परमाणु ईंधन पर चलनेवाली पनडुब्बियों तथा सरकारी गोदियां (जहां जहाज की मरम्मत की जाती है) बनाने की प्रक्रिया आरंभ की । उसके लिए निजी प्रतिष्ठानों के साथ अनुबंध कर तीव्र गति से नौकाएं बनाने की प्रक्रिया आरंभ की । इनमें से कुछ परियोजनाएं सफल सिद्ध हुईं, तो कुछ नौकरशाही में नहीं बन सकी । आज के समय में विभिन्न गोदियों में ३४ युद्धनौकाएं एवं पनडुब्बियों का निर्माण चल रहा है । स्वदेशी बनावटवाली विभिन्न श्रेणियों की कुछ युद्धनौकाओं तथा पनडुब्बियों को नौसेना में सम्मिलित किया गया है । भारत के पास १५ पारंपरिक पनडुब्बियां, परमाणु ईंधन पर चलनेवाली तथा बैलिस्टिक क्षेपणास्त्र दागनेवाली २ पनडुब्बियां हैं ।
पनडुब्बियों के संदर्भ में भारतीय नौसेना पाकिस्तान से बहुत अधिक बलशाली है । ऐसा होते हुए भी चीन भारतीय नौसेना से आगे चल रहा है । उसके पास ७८ पनडुब्बियां हैं, उनमें ६ अति आधुनिक बैलिस्टिक परमाणु पनडुब्बियां हैं, जिनकी मारक क्षमता ७ सहस्र २०० कि.मी. है । परमाणु ईंधन पर चलनेवाली १४ तथा ५७ पारंपरिक पनडुब्बियां हैं ।
१ इ. ‘अरिहंत’ पनडुब्बी ! : परमाणु अस्त्र ले जाने की क्षमता रखनेवाले ‘के-४’ क्षेपणास्त्र का ‘अरिहंत’ पनडुब्बी से सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया है । इस परीक्षण से भारत की नौसेना की शक्ति अनेक देशों के सामर्थ्य का सफलतापूर्वक सामना किया जा सके, इतनी बढ गई है ।
के-४ क्षेपणास्त्र एवं ‘अरिहंत’ पनडुब्बी, ये दोनों स्वदेशी बनावटवाली हैं । पानी के नीचे होते समय पनडुब्बी में कोई खराबी आई, तो उसमें फंसे नौसैनिकों को बाहर निकालने हेतु नौसेना ने नई व्यवस्था बनाई है । ‘डीप सबमर्जंस रेस्क्यू वेईकल’ नामक पनडुब्बी रक्षक वाहन नौसेना के पश्चिमी काफिले में सम्मिलित हुआ है ।
१ ई. महिलाओं को नौसेना में अधिक अवसर ! : विगत कुछ वर्ष से नौसेना में महिला अधिकारी एवं सैनिक कार्यरत हैं; परंतु अभी तक उन्हें युद्धनौकाओं पर काम करने का अवसर नहीं मिला है । आज के समय में युद्धनौकाओं पर महिला अधिकारियों एवं सैनिकों के लिए आवश्यक सुविधाएं स्थापित करने का काम चल रहा है; इसलिए आनेवाले समय में नौसेना में महिला मांझी भी दिखाई दे सकेंगी ।
२. भारतीय नौसेना के सामने विभिन्न चुनौतियां तथा उन पर प्राप्त की गई विजय
अ. बदलते हुए वैश्विक समीकरणों के कारण भारतीय नौसेना के सामने की चुनौतियां भी बदल गई हैं । पनडुब्बियों, विमानवाहक एवं अन्य युद्धनौकाओं के निर्माण में चीन की गति से स्पर्धा करना अन्य किसी भी देश को संभव नहीं हुआ है ।
आ. भारत ने २६/११ के आक्रमण के रूप में समुद्री मार्ग से आनेवाले संकट का अनुभव किया है । समुद्री डाकुओं ने इंडोनेशिया से सोमालिया की ओर अपना अभियान मोड लिया था । उसके कारण संपूर्ण विश्व की व्यापारिक नौकाओं पर सोमालियन समुद्री डाकुओं की दहशत थी; परंतु भारतीय नौसेना ने सोमालियन समुद्री डाकुओं पर नियंत्रण स्थापित किया है ।
इ. आज चीन एवं पाकिस्तान मिलकर परमाणु कार्यक्रम तेज गति से आगे बढा रहे हैं । चीन के पास बैलिस्टिक क्षेपणास्त्रों का बडा संग्रह उपलब्ध है । इस कारण भारत को समुद्री युद्ध में अपनी शक्ति बढाना अति आवश्यक है । इसके लिए अपने काफिले में नौकाओं की संख्या बढाना, उसके लिए आवश्यक आर्थिक प्रावधान करना, आधुनिक शस्त्र एवं प्रणालियां खरीदना, अति आधुनिक विमानों एवं हेलिकॉप्टरों का जो अभाव है, उसकी भरपाई कर नौदल के हवाई विभाग को और अधिक सक्षम बनाना आदि चुनौतियां हैं, साथ ही मानव संसाधन का भी अभाव है । इसका परिणाम नौदल की सुसज्जितता पर हो रहा है । भारतीय नौसेना के सामने भले ही बडी चुनौतियां हों; तब भी भारतीय नौसेना तीव्र गति से इन चुनौतियों पर विजय पा रही है ।
३. नौसेना का नया ध्वज !
बहुत शीघ्र ही २०० युद्धनौकाओं के साथ तथा स्वयंपूर्ण काफिले के साथ भारतीय नौसेना सुसज्जित होगी । अतीत की उपनिवेशतावादी गुलामी के प्रतीकों को नष्ट करते हुए प्रधानमंत्री ने छत्रपति शिवाजी महाराज को समर्पित मुद्राएं चिन्हांकित कर नौसेना के नए ध्वज का अनावरण किया । अब शिवाजी महाराज से प्रेरणा लेकर समुद्र एवं आकाश में नौसेना का नया ध्वज फहरेगा ।
४. भारतीय नौसेना में समाहित ‘आई.एन.एस. विक्रमादित्य’ एवं ‘आई.एन.एस. विक्रांत’ युद्धनौकाएं !
भारतीय नौसेना का संपूर्ण भार आज विमानवाहक युद्धनौका ‘आई.एन.एस. विक्रमादित्य’ पर निर्भर है । मध्य के कुछ समय में यह नौका रखरखाव के लिए कोचीन शिपयार्ड में थी । ७०० करोड खर्च कर उसका नवीनीकरण किया गया । स्वदेशी बनावटवाली पहली विमानवाहक युद्धनौका ‘आई.एन.एस. विक्रांत’ नौदल में सम्मिलित हुई है । भारत के बडे उद्योगों, साथ ही १०० से अधिक सूक्ष्म, छोटे एवं मध्यम उद्योगों द्वारा आपूर्ति किए गए देशी उपकरणों एवं यंत्रों का उपयोग कर ‘आई.एन.एस. विक्रांत’ का निर्माण हुआ है । भारत के समुद्री एवं नौसेना के इतिहास में यह आज तक की सबसे बडी युद्धनौका है, साथ ही इसकी अत्याधुनिक स्वचालित विशेषताएं हैं ।
‘आई.एन.एस. विक्रांत’ केवल युद्धनौका नहीं, अपितु २१ वीं शताब्दी के भारत के परिश्रम, कौशल, प्रभाव तथा प्रतिबद्धता का उदाहरण है, साथ ही वह ‘भारत आत्मनिर्भर हो रहा है’, इसका भी अद्वितीय उदाहरण है । वह स्वदेशी क्षमता, स्वदेशी स्रोत तथा स्वदेशी कौशल का प्रतीक है । विक्रांत पर नौसेना की अनेक महिला सैनिकों की नियुक्ति की जाएगी । असीमित सागरी शक्ति को असीमित स्त्रीशक्ति से जोडा जाएगा ।
– ब्रिगेडियर हेमंत महाजन (सेवानिवृत्त), पुणे.