सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार

स्वार्थी नेताओं की अपेक्षा सर्वस्व का त्याग करनेवाले श्रेष्ठ !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी

‘मुझे ‘यह चाहिए’, ‘वह चाहिए’, ऐसा शासनकर्ताओं से मांगनेवाले और ‘मुझे अपना मत दीजिए’, ऐसा जनता से मांगनेवाले नेता ईश्वर को प्रिय होंगे अथवा राष्ट्र एवं धर्म के लिए सर्वस्व का त्याग करनेवाले ईश्वर के प्रिय होंगे ?’


ईश्वरीय राज्य में सभी स्थानों के नाम चैतन्यदायी होंगे !

‘ईश्वरीय राज्य में घर, उद्यान, मार्ग इत्यादि सभी स्थानों के नेताओं, विदेशी एवं अन्य धर्मीय नामों को परिवर्तित कर दिया जाएगा; क्योंकि  उनसे रज-तम प्रक्षेपित होता है । नए नाम राष्ट्रप्रेमी, धर्मप्रेमी, संत एवं ऋषि-मुनियों के होंगे । उनके नाम के चैतन्य से जनता का भला होगा ।’


मानव जीवन में ईश्वर का महत्त्व !

‘ईश्वर का दास बनना, मंत्री, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री इत्यादि पदों से भी बडा है !’


अध्यात्म विहीन ‍विध्वंसक विज्ञान का साधना ही एकमात्र उ‌त्तर !

‘विज्ञान के शोध के कारण सभी देश एक-दूसरे का विध्वंस प्रभावी रूप से कर सकते हैं । इसके विपरीत साधना सिखाने से सभी देशों की अगली पीढी के नागरिकों में एक परिवार की भावना निर्माण होगी । अतः तृतीय विश्वयुद्ध के उपरांत पृथ्वी पर सर्वत्र परिवार भावना होगी !’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले