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मेरठ (उत्तर प्रदेश) – रुद्राक्ष द्वारा बनी औषधियों का प्रयोग कर्करोग पर उपचार के लिए किया जा सकता है क्या ? इस संशोधन के लिए देहली के शोभित विश्वविद्यालय के संशोधक बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के साथ काम करने की तैयारी में हैं । शोभित विश्वविद्यालय की ओर से इस संदर्भ में प्रथम चूहों पर प्रयोग किया गया , जिसमें उन्हें सफलता मिली । अब बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के अस्पताल में कर्करोग के उपचार के लिए आने वाले रोगियों पर इसका प्रयोग किया जाने वाला है । इस संबंध में अनुमति की प्रक्रिया चालू है ।
कोई भी दुष्परिणाम (साइड इफैक्ट्स) नहीं !
शोभित विश्वविद्यालय के डॉ. शिवा शर्मा, डाॅ. मनीषा शर्मा, मिलिन सागर और प्रशांत पांडे ने यह संशोधन किया । इन संशोधकों का दावा है कि रुद्राक्ष में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एनर्जी और फाइटोकेमिकल्स (अल्कलॉइड, फिनोलिक और फ्लेवेनोइड्स) का समावेश है । फाइटो केमिकल्स का परिणाम कीमोथेरेपी जैसा होता है; लेकिन इसका दुष्परिणाम (साइड इफेक्ट) नहीं होता, जैसा कीमोथेरेपी से होता है । रुद्राक्ष के कर्करोग पर उपचार के प्रयोग के बहुत सकारात्मक परिणाम मिले हैं ।
डॉ. शिव शर्मा ने बताया कि रुद्राक्ष केवल धारण करने पर ही नहीं, बल्कि औषधि के रूप में भी लाभदायी है । २६ तत्वों से युक्त रुद्राक्ष में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड मनुष्य के बायो इलेक्ट्रिसिटी के संपर्क में आने के उपरांत हीलिंग थेरेपी का काम करती है । इस कारण रक्तदाब, तनाव आदि नही होता है ।
इसमें लाभदायक फाइटोकेमिकल्स हैं । जो कर्करोग के रोगियों के लिए रामबाण उपाय हैं । इसकी क्षमता और प्रभाव कीमोथेरेपी समान है । कीमोथेरेपी में बाल झडना, भूख-प्यास ना लगना, अस्वस्थता तथा डर आदि दुष्परिणाम दिखाई देते हैं । रुद्राक्ष के फाइटो केमिकल्स के कारण कोई भी दुष्परिणाम नहीं दिखाई होते ।
१० चूहों पर हुआ सफल संशोधन !
रुद्राक्ष में उपस्थित फाइटोकेमिकल्स का परीक्षण कर्करोग पीडित १० चूहों पर किया गया । इस विषय में डॉ. शिवा शर्मा ने बताया कि इन चूहों को दिन में ३ बार फाइटोकेमिकल्स द्वारा बनाए गए औषधि के डोज दिए गए । प्रत्येक १५ दिनों उपरांत उनका निरीक्षण किया गया । इस कालावधि में उनकी भूख-प्यास अल्प नहीं हुई । यकृत, मूत्रपिंड और पाचन तंत्र ठीक थे । कुछ समय उपरांत सभी चूहे कर्करोग से मुक्त हुए ।
‘इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस’ द्वारा प्रशंसा
बेंगलुरु में हुए ‘इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस’ के सम्मेलन में इस संशोधन की प्रशंसा की गई है । इस संशोधन को ‘सर्वोत्कृष्ट संशोधन’ बताया गया है