‘लिव-इन रिलेशनशिप’ अर्थात ‘टाइमपास’ ! – इलाहाबाद उच्च न्यायालय 

ऐसे रिश्तों में प्रमाणिकता की अपेक्षा आकर्षण ही अधिक होना न्यायालय का मत !

प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) – इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहने वाले एक युगल को पुलिस सुरक्षा देने की मांग करने वाली याचिका अस्वीकार कर दी । न्यायालय ने ‘इस प्रकार के संबंध केवल ‘टाइमपास’ अर्थात समय बर्बाद करने के लिए हैं’, ऐसी टिप्पणी की है । इस समय उच्च न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय ने ‘लिव इन रिलेशनशिप’ के विषय में दिए विभिन्न निर्णयों को योग्य ही ठहराया । इस घटना में युवती हिन्दू तथा युवक मुसलमान है ।

युवती की चाची द्वारा इस युवक के विरोध में शिकायत करने पर अपराध प्रविष्ट किया गया था । इस पर युवक और युवती ने न्यायालय में याचिका प्रविष्ट कर उन्हें पुलिस सुरक्षा देने की मांग की थी । न्यायालय में युवती के अधिवक्ता ने बताया कि, युवती २० वर्ष की सज्ञान है और उसे उसे भविष्य का निर्णय लेने का पूर्ण अधिकार है । उसने युवक को चुना है और उसके साथ वह ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रह रही है । इस पर युवति की चाची के अधिवक्ता ने कहा कि, युवक पर गुंडा कानून के अंतर्गत पहले ही अपराध प्रविष्ट है । वह गुंडा है और उसका कोई भविष्य नहीं । वह इस युवती का जीवन बिगाड देगा ।

उच्च न्यायालय द्वारा रखे सूत्र 

१. केवल २ माह की कालावधि और २० से २२ वर्ष की आयु वाले युगल की ओर से ऐसी अपेक्षा ही नहीं कर सकते कि, उनके इस प्रकार के क्षणिक रिश्ते पर वे गंभीरता से विचार करते होंगे ।

२. न्यायालय को लगता है कि इस प्रकार के रिश्ते में स्थिरता और सच्चाई की तुलना में मोह और आकर्षण अधिक है ।

३. जब तक यह युगल विवाह करने का निर्णय नहीं लेता, उनके रिश्ते को नाम नहीं देता अथवा एक दूसरे के विषय में प्रामाणिक नहीं रहता, तब तक न्यायालय इस प्रकार के रिश्ते पर कोई भी मत व्यक्त करने से स्वयं को रोकेगा ।

४. हमारे विचारों का गलत अर्थ न निकाला जाए ।