देश में महिलाओं द्वारा प्रविष्ट ३६ लाख अभियोग प्रलंबित !

नई देहली – ‘राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड’ की जानकारीनुसार वर्तमान में पूरे देश में ४ करोड ४४ लाख अभियोग विविध न्यायालयों में प्रलंबित हैं । इनमें से ८ प्रतिशत अभियाेग महिलाओं द्वारा प्रविष्ट किए गए हैं । ऐसे अभियोगों की संख्या ३६ लाख ५७ सहस्र है । इसमें सिविल (दीवानी)तथा आपराधिक मामले दोनों समाविष्ट हैं । महिलाओं के ४५ प्रतिशत मामलों में कभी उनके, तो कभी दूसरे पक्ष के अधिवक्ता उपस्थित नहीं रहते अथवा आरोपी प्रतिभूति प्राप्त कर फरार हो चुके होते हैं । इसलिए मामले प्रलंबित हैं । इसके अतिरिक्त ७ प्रतिशत मामलों को वरिष्ठ न्यायालयों ने स्थगन आदेश दिया हुआ है ।

अभियोग प्रलंबित रहने के कारण

१. पुलिस द्वारा आरोपपत्र प्रविष्ट करने में विलंब होना और न्यायालय में सुनवाई की कालावधि बढाने की मांग करना ।

२. आरोपपत्र प्रविष्ट करना; परंतु दस्तावेज प्रस्तुत न करना ।

३. आरोपपत्र प्रविष्ट करने पर कनिष्ठ न्यायालय द्वारा अगली-अगली तारीख देना, जिससे कि आरोप निश्चित होने में ही २-३ वर्ष निकल जाना ।

४. महत्त्वपूर्ण गवाहों को उपस्थित करना पुलिस को संभव न हो पाना ।

५. कनिष्ठ न्यायालय की कार्यवाही पर स्थगन आदेश होने से आरोपी प्रतिभूति पर फरार होना ।

६. कभी सरकारी, तो कभी निजी अधिवक्ताओं का अनुपस्थित रहना ।

न्यायालयों द्वारा समय-समय पर दिए हुए परामर्श

१. पुलिस को संवेदनशील होना चाहिए; इससे वे महिलाओं संबंधी घटनाओं की जांच तथा उसपर तुरंत कार्यवाही कर सकेंगे । – देहली उच्च न्यायालय (मार्च २०१३)

२. कनिष्ठ न्यायालय महिलाओं संबंधी अभियोगों की जांच २-३ महीनों में पूर्ण करें । शीघ्र निर्णय दें । – सर्वोच्च न्यायालय (ऑगस्ट २०१३)

३. सभी न्यायालय दहेज बलि के संदर्भ में संवेदनशील होने चाहिए । – सर्वोच्च न्यायालय (७ अक्टूबर २०१३)

४. महिलाओं संबंधी अपराधों की ओर गंभीरता से देखना और निर्णय समय पर लेना, न्यायालय का कर्तव्य है । – मुंबई उच्च न्यायालय (अक्टूबर २०१८)

५. न्यायालय महिलाओं पर हुए अत्याचारों की घटनाओं की सुनवाई शीघ्रतासे करने का प्रयास करें । – सर्वोच्च न्यायालय (सितंबर २०१९)

६. जो महिलाएं सामने आती हैं, उन्हें शीघ्र न्याय प्राप्त करवाना पुलिस और न्यायालय का काम है । – गुवाहाटी उच्च न्यायालय (अगस्त २०२१)

संपादकीय भूमिका 

भारतीय न्यायव्यवस्था कूर्मगति से चलती है, यह बात अब नई नहीं है और इस व्यवस्था को भी यह ज्ञात है । प्रश्न ऐसा है कि इस स्थिति में परिवर्तन लाने की इच्छाशक्ति कौन और कब दिखाएगा ?