‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु अविरत प्रयासरत सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के विषय में समाज के कुछ ही लोगों को ही पता है । वे रामनाथी, गोवा के सनातन आश्रम में निवास करते हैं । ‘हिन्दू राष्ट्र स्थापित हो’, इसके लिए महर्षि की आज्ञा से रामनाथी, गोवा में सनातन के आश्रम में यज्ञयागादि अनुष्ठान होते रहते हैं । उस समय सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी की वंदनीय उपस्थिति होती है । सहस्रों साधक समाज में जागरूकता निर्माण करने हेतु विविध उपक्रम एवं आंदोलन कर रहे हैं । गत १५ वर्षाें से गुरुदेवजी कहीं भी नहीं जाते । वे बडी-बडी सभाओं को न तो संबोधित करते हैं, न ही प्रवचन आदि लेते हैं; परंतु वे अपने लेखों से साधकों को सतत यही बता रहे हैं कि हिन्दू राष्ट्र अवश्य स्थापित होगा ! समाज के व्यक्तियों को लगता है कि स्वयं को हिन्दू कहलानेवाला कोई ‘असामान्य व्यक्ति’ अपने बलबूते हिन्दू राष्ट्र लाएगा तथा भारत को ‘विश्वगुरु’ बनाएगा ! ऋषि-मुनियों ने भी विविध नाडीपट्टिकाओं में लिखकर रखा है कि सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करेंगे, पर साधकों के मन में भी यह प्रश्न उठ सकता है कि ‘कैसे ?’; इस विजयादशमी पर हम यह विषय समझेंगे ।
१. ‘धर्मसंस्थापना कौन कर सकता है ?’, इस विषय में देवर्षि नारद एवं वाल्मीकि ऋषि में हुआ संवाद
१ अ. ‘वर्तमान में सभी लोकों में सामर्थ्यवान मनुष्य कौन है ?’ ऐसा वाल्मीकि ऋषि का देवर्षि नारद से पूछना : वाल्मीकि ऋषि के मन में प्रश्न उठा कि ऐसा गुणसंपन्न मानव कौन है, जो धर्मसंस्थापना कर सकता है ?
वाल्मीकि रामायण में ग्रंथ के आरंभ में वाल्मीकि ऋषि देवर्षि नारद से पूछते हैं, ‘वर्तमान में सभी लोकों में सद्गुणी, वीर, धर्मज्ञ, कृतज्ञ, सत्यवादी, दृढ निश्चयी, आरंभ किया कोई भी कार्य निश्चयपूर्वक संपन्न करनेवाला, सर्व प्राणियों का हित देखनेवाला, विद्वान, समर्थ, चरित्रवान, सौंदर्यवान, जिसका मन उसके नियंत्रण में हो, जिसने क्रोध पर विजय पा लिया हो, तेजस्वी, मत्सर रहित तथा यदि उसे क्रोध आ जाए, तो देवता भी थरथर कांप उठते हों’, ऐसा सामर्थ्यवान मनुष्य कौन है ? वह मुझे बताओ । आप यह जानकारी देने में समर्थ हैं ।’
१ आ. देवर्षि नारद द्वारा किया ‘श्रीराम’ का गुणसंकीर्तन : वाल्मीकि ऋषि के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए देवर्षि नारद ने श्रीरामचंद्र के जिन गुणों का वर्णन किया है, उससे इस बात की कल्पना कर सकते हैं कि रामायणकाल के कार्य के लिए कितनी महान विभूति की आवश्यकता थी । नारद कहते हैं, ‘हे वाल्मीकि ऋषि, ऐसे ईश्वरीय गुणों से युक्त मानव मिलना कठिन है । ‘आनेवाले काल में इन दैवी गुणों से संपन्न मानव पृथ्वी पर आएगा’, इस विषय में मुझे जो ब्रह्मदेव ने बताया है, वही मैं आपको बताता हूं, ‘राम’ नामक एक शूर-वीर मानव ईक्ष्वाकु वंश में जन्म लेगा । वह गुणों का राजा होगा तथा सभी विषय-वासनाओं पर विजय प्राप्त करनेवाला होगा । वह बुद्धिमान, नीतिमान एवं धैर्यवान होगा । उसका कद ऊंचा एवं अजानुबाहू (अर्थात जिसके हाथ घुटनों से नीचे तक हों) होगा । उसके मुख पर सूर्यसमान तेज एवं वाणी चैतन्यमय होगी । उसका प्रत्येक कार्य सफल तथा धर्म की रक्षा करनेवाला होगा । वह भक्तजनों की रक्षा करनेवाला होगा एवं उसे वेद-वेदांगों का ज्ञान होगा । वह सभी शास्त्रों में पारंगत होगा तथा स्मृतिवान एवं प्रतिभावान होगा । वह लोकप्रिय होगा । ईश्वर के भक्त एवं साधुजन उसे अपने रक्षक के रूप में देखेंगे । वह सर्वगुण संपन्न, समुद्र की गहराईयों समान गंभीर तथा हिमालय पर्वत समान अचल (धैर्यवान) होगा । उसका मुखमंडल पूर्णिमा के चंद्र समान होगा । वह श्रीविष्णु समान महावीर होगा, कालाग्नि समान उसका क्रोध तथा पृथ्वी समान क्षमाशील होगा । धन-संपत्ति में वह कुबेर होगा । उसे देखने पर सभी को ऐसा लगेगा मानो ‘स्वयं धर्म ही हमारे सामने खडा है ।’ वह सर्वगुणसंपन्न दशरथ पुत्र ‘श्रीराम’ के नाम से संपूर्ण पृथ्वी पर विख्यात होगा ।’
२. धर्म संस्थापक में अभिप्रेत सर्व गुण सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवले में होना तथा उनके नाम में ही ‘जयंत’ होना
वाल्मीकि ऋषि एवं देवर्षि नारद के संभाषण का वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हम अवलोकन करें, तो सभी के ध्यान में आएगा कि ‘वर्तमान में पृथ्वी पर किसी भी राजा, विद्वान, वैज्ञानिक, वैज्ञानिक अथवा महा उद्योगपति में भी श्रीराम में विद्यमान गुण नहीं पाए जाते । सनातन के साधकों ने सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी को अत्यंत समीप से देखा है । साधकों ने उनके साथ सेवा की है । साधकों को उनका सान्निध्य मिला है । वाल्मीकि ऋषि जिस गुणसंपन्न की अपेक्षा कर रहे हैं तथा देवर्षि नारद जिस गुणनिधि का वर्णन कर रहे हैं, वे सभी गुण सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी में पाए जाते हैं । गुरुदेव ने कोई कार्य आरंभ किया हो तथा उन्हें उसमें सफलता न मिली हो, ऐसा कभी नहीं हुआ है । उनके नाम में ही ‘जयंत’ है, अर्थात जो सदैव विजयी होगा !
३. सर्वगुण संपन्न भगवान मानव रूप में आने पर उनके कार्य में सम्मिलित होने हेतु ब्रह्मांड की समस्त शक्तियां एकत्र आती हैं !
जब श्रीराम मानव रूप में पृथ्वी पर आए, तब सभी देवता वानररूप में आए । श्रीविष्णु के शंख-चक्र एवं आदिशेष, भगवान श्रीराम के भाईयों के रूप में आए । स्वयं शिवजी हनुमानजी के रूप में आए । समुद्र देवता, निसर्ग देवता, समस्त ॠषि-मुनि, सूर्य-चंद्र सभी श्रीराम के धर्मसंस्थापना के कार्य में सम्मिलित हुए । अभी धर्म संस्थापना के लिए पृथ्वी पर आए श्रीविष्णु के अवतार सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी के संदर्भ में भी ऐसा ही है । आदिशक्ति ‘श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी’ के रूप में अवतरित हुई हैं । ऋषि-मुनि नाडीपट्टिका के माध्यम से मार्गदर्शन कर रहे हैं । देवता यज्ञ-याग के समय अग्नि के माध्यम से उनकी उपस्थिति दर्शाते हैं ।
४. सर्वगुणसंपन्न मानव रूप में आए भगवान का आज्ञापालन करने के लिए आतुर देवी-देवता, ॠषि-मुनि, सिद्ध, योगी एवं संपूर्ण सृष्टि !
राजा का आज्ञापालन करने के लिए उसके मंत्री, सेनापति तथा सैनिक सदैव तत्पर रहते हैं, उसी प्रकार पृथ्वी पर चरित्रवान और सर्वगुण संपन्न मानव रूप में अवतरित भगवान का आज्ञापालन करने के लिए पृथ्वी, आप, तेज, वायु, आकाश, समुद्र, पर्वत, नदी, पक्षी, प्राणी, यक्ष-किन्नर, वसुगण, रुद्र, देवगण, काल, दिशा, सूर्य-चंद्रादि नवग्रह, आदिशक्ति एवं उसकी सर्व शक्तिस्वरूपिणी, नाना युगों में भगवान की सेवा करनेवाले ॠषि-मुनि, सिद्ध एवं योगी सदैव तत्पर रहते हैं । धर्मसंस्थापना का शंखनाद होते ही वे एक क्षण में कार्यरत हो जाते हैं । पृथ्वी पर विविध क्षेत्रों में भगवान द्वारा रखी गई उनकी सुप्त ऊर्जा कार्यरत हो जाती है । प्रकृति अपने नियम एक ओर रख भगवान की आज्ञा से सब करने लगती है । देश-दिशा, भूमि-आकाश, जल, पाताल-सत्यलोक, ये सभी मानव रूप में भगवान की आज्ञा में रम जाते हैं । मानव रूप में उस भगवान को कहीं भी जाने की आवश्यकता नहीं होती । उनके पास सब कुछ होता है तथा सभी उन्हीं के पास आते हैं । आनेवाले काल में सनातन के साधक भगवान की इन दैवी लीलाओं की अनुभूति स्वयं लेंगे ।
– श्री. विनायक शानभाग (आध्यात्मिक स्तर ६७ प्रतिशत), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (३.१०.२०२२)
भगवान की धर्मसंस्थापना की लीला करें, इसकी प्रतीक्षा करने के विभिन्न कारण१. ‘असुरों के पाप का घडा जब तक नहीं भरता तथा उनका पुण्यबल जब तक क्षीण नहीं होता, तब तक भगवान प्रतीक्षा करते हैं । २. भक्तों की भक्ति बढने पर ही भगवान का उनके लिए दौडे आना भक्तों की साधना, अर्थात भक्ति बढने पर, साधना करनेवाले जीवों को हिन्दू राष्ट्र की अनुभूति होगी । भगवान साधकों की आर्तता तथा भगवान के दर्शन की लगन बढने की प्रतीक्षा करते हैं । अब भी साधकों की पुकार गजेंद्र एवं भक्त प्रल्हाद समान उस भगवान तक पहुंचनी है, तत्पश्चात ही भगवान साधकों के लिए दौडे आएंगे । ३. चिरंतन आनंद देनेवाले भगवान की प्राप्ति के लिए साधकों को परिश्रम करना ही होगा ! परिश्रम किए बिना सफलता नहीं मिलती । बिना परिश्रम किए मिली सफलता अधिक समय तक नहीं टिकती । अनिष्ट शक्तियां साधकों को विविध प्रकार के कष्ट देती हैं । साधकों को कुछ समय वे कष्ट सहन करने होंगे । कष्ट सहन किए बिना चिरंतन आनंद देनेवाले भगवान की प्राप्ति कैसे होगी ? ४. प्रतीक्षा करने के उपरांत होनेवाले भगवान के दर्शन एवं आशीर्वाद का आनंद निराला ही होना वर्तमान काल ‘प्रतीक्षा एवं परीक्षा’ का है । प्रतीक्षा करने के उपरांत होनेवाले भगवान के दर्शन एवं आशीर्वाद का आनंद निराला ही होता है । ईश्वर को धर्म संस्थापना के लिए समय नहीं लगता । जिस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने केवल १८ दिनों में इतना भीषण महाभारत युद्ध पूर्ण किया, उसी श्रीकृष्ण को हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने में समय नहीं लगेगा । ३ वर्षाें में पूर्ण होनेवाला कार्य भगवान आवश्यकतानुसार ३ माह, ३ सप्ताह अथवा ३ दिन में भी पूरा कर सकते हैं । ५. भगवान की परीक्षा में उत्तीर्ण होनेवाले जीव ही खरे अर्थ में हिन्दू राष्ट्र के योग्य वर्तमान में भगवान केवल इतना ही देख रहे हैं कि वे जो हिन्दू राष्ट्र लानेवाले हैं, उसके लिए उनके प्रिय साधक तैयार हैं न ? उनकी ईश्वर पर श्रद्धा कितनी है ? वे कठिन प्रसंगों में भगवान को आर्तता से पुकारते हैं न ? प्रतीक्षा करते समय उनका संयम छूट तो नहीं रहा है न ? बस.. भगवान की इस परीक्षा में हम सभी को उत्तीर्ण होना है । यह परीक्षा तो सीतामाता, हनुमान, वानर एवं पांडवों को भी देनी पडी थी । इस परीक्षा में उत्तीर्ण होनेवाला जीव ही खरे अर्थ में हिन्दू राष्ट्र के लिए तैयार होगा । ६. भगवान का मानव अवतार धर्म संस्थापना करेगा ही, ‘ऋषि-मुनि एवं देवताओं को सुनिश्चित होना ॠषि-मुनि एवं देवताओं इस बात से आश्वस्त रहते हैं कि ‘भगवान का मानव अवतार धर्मसंस्थापना करेगा’, परंतु वे यह नहीं जानते कि भगवान के अंतरंग में क्या चल रहा है ?’ भगवान की दिव्य लीला केवल उन्हें ही ज्ञात रहती है । उसकी हम सभी प्रतीक्षा करेंगे । ७. प्रार्थना हे सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी, आपकी माया आप ही जानें । विजयादशमी के उपलक्ष्य में हम साधकों की आपके चरणों में प्रार्थना है कि आपके प्रति हमारी भक्ति सदैव ऐसी ही दृढ बनी रहने दें । शबरी समान हमारी प्रतीक्षा की तैयारी रहने दें । हममें लक्ष्मण समान सेवा करने का गुण आने दें । सीतामाता समान संयम आने दें । माया से अलिप्त रहनेवाले संकटमोचन हनुमान जैसी दास्यभक्ति हममें आने दें । आप ही श्रीराम हैं तथा हम साधकों को ईश्वरप्राप्ति करवानेवाले मोक्षगुरु हैं । हम बालकों की आर्त प्रार्थना स्वीकार करें ।’ – श्री. विनायक शानभाग (आध्यात्मिक स्तर ६७ प्रतिशत), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (३.१०.२०२२) |