सरकार किसी की भी परंपरा में हस्तक्षेप करने का प्रयास न करे !

  • तमिलनाडु की द्रमुक सरकार को सर्वोच्च न्यायालय ने फटकारा !

  • तमिलनाडु में सरकारीकरण हुए आगमिक मंदिर के पुजारियों की नियुक्ति का प्रकरण

नई देहली – तमिलनाडु के आगमिक मंदिर के पुजारियों की नियुक्ति सरकारी दिशानिर्देशों के आधार पर करने का सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मद्रास उच्च न्यायालय का निर्णय स्वीकार कर स्थगन लाया गया है । सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, ‘सरकार को किसी की भी परंपरा में हस्तक्षेप करने का प्रयास नहीं करना चाहिए । इस संदर्भ में ‘अखिल भारतीय आदि शैव शिवाचार्यर्गल सेवा एसोसिएशन’ ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की थी । उस पर हुई सुनवाई में न्यायालय ने  स्थायी रूप से यह स्थगिति रखी है ।

१. ‘अखिल भारतीय आदि शैव शिवाचार्यर्गल सेवा एसोसिएशन’ द्वारा सुनवाई के समय कहा गया था कि मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा स्थगन लाने के उपरांत भी राज्य सरकार मनमानी कर रही है एवं पुजारी के रूप में आगमिक संप्रदाय से बाहर के लोगों की नियुक्ति कर रही है । (जनता को ऐसा लगता है कि न्यायालय का अनादर करनेवाली ऐसी सरकार को न्यायालय दंड दे ! – संपादक) सरकार कहती है, ‘लोगों ने इसके लिए प्रशिक्षण लिया है एवं वे पूजा करने के लिए सक्षम हैं ।’ परंतु न्यायालय ने स्पष्टरूप से कहा था कि आगमिक मंदिरों की अपनी परंपराएं हैं । ऐसे में उन्हें माननेवालों की ही नियुक्ति करनी चाहिए ।

२. तमिलनाडु में अनुमान से ४२ सहस्र ५०० से अधिक मंदिर हैं । इनमें पुजारियों की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती है । इनमें से १० प्रतिशत मंदिर आगमिक परंपरा के अनुसार चलाए जाते हैं । ये प्राचीन मंदिर हैं । उनकी विशेष परंपराएं हैं एवं वे उनकी नीतियों का पालन करते हैं । पुजारियों की नियुक्ति के संदर्भ में सरकार द्वारा नियम बनाया गया है कि पुजारी पद का ‘डिप्लोमा’ प्राप्त व्यक्ति ही पुजारी बन सकता है । इस कारण जो लोग अनेक वर्षों से मंदिरों में पुजारी के रूप में काम देख रहे हैं, उनके पास यह उपाधि न होने के कारण वे पुजारी पद पर नहीं रह सकते ।

३. तमिलनाडु के मंदिरों में अर्पण के रूप में आनेवाली प्रत्येक वस्तु सरकार के धर्मादाय विभाग के नियंत्रण में है । उसके बदले में विभाग मंदिर के व्यवस्थापन की देखभाल करता है । इसमें पुजारी एवं कर्मचारियों की नियुक्ति भी समाहित है ।

क्या है यह प्रकरण ?

तमिलनाडु सरकार ने वर्ष २०२० में कानून बनाया था । उसे ‘तमिलनाडु हिन्दू धार्मिक संस्थान कर्मचारी नियम, २०२०’, कहा जाता है । इस कानून के अंतर्गत ही सरकार मंदिरों में पुजारियों की नियुक्ति करती है; परंतु वर्ष २०२२ में मद्रास उच्च न्यायालय ने इनमें आगमिक मंदिरों को सम्मिलित न करने का निर्णय दिया था । न्यायालय ने कहा था कि ये मंदिर विशेष परंपराओं के अनुसार चलाए जा रहे हैं, इसलिए यहां सरकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है । ऐसा होते हुए भी सरकार आगमिक मंदिरों में गैर-पारंपरिक पुजारियों की नियुक्ति करना चाह रही थी, जिसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी ।

आगमिक मंदिर का अर्थ क्या है ?

तमिलनाडु में ८ सहस्र से अधिक आगमिक मंदिर हैं । ये मंदिर शैव, वैष्णव एवं तांत्रिक परपंराओं अथवा द्रविड परंपराओं का पालन करनेवाले हैं । ये मंदिर अन्य मंदिरों से भिन्न हैं । इन मंदिरों का कहना है कि इन मंदिरों में शैव, वैष्णव एवं तांत्रिक परंपराओं के पुजारी नियुक्त होना आवश्यक है । ऐसे स्थान पर अन्य परंपराओं के पुजारी नियुक्त नहीं किए जा सकते ।

तमिलनाडु के मंदिरों पर अनेक याचिकाएं प्रलंबित !

तमिलनाडु के मंदिर सरकार के नियंत्रण में हैं । उसे आवाहन देनेवाली अनेक याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय में प्रविष्ट की गई हैं । उसमें ज्येष्ठ नेता डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी की भी याचिका है । उन्होंने मंदिरों को सरकारीकरण से मुक्त करने की मांग की है । डॉ. स्वामी का कहना है कि सरकार द्वारा पुजारी के रूप में नास्तिकों की नियुक्ति की नहीं जा सकती ।

संपादकीय भूमिका 

देश के हिन्दुओं की अपेक्षा है कि देश के मंदिरों का सरकारीकरण रोक कर सभी मंदिर सरकारीकरण मुक्त करने के लिए केंद्र की भाजपा सरकार को कानून बनाना चाहिए !