मराठवाडा का विकास चाहिए !

इस वर्ष हैदराबाद मुक्तिसंग्राम के ७५ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं । तत्‍कालीन निजाम शासन के भाग मराठवाडा की ‘मुक्ति’ का अमृत महोत्‍सव मनाने के लिए राज्‍य सरकार ने छत्रपति संभाजीनगर में मंत्री परिषद की विशेष बैठक लेकर ५९ सहस्र करोड रुपए का विशेष ‘पैकेज’ देने की घोषणा की है । मराठवाडा के लिए इतनी बडी मात्रा में ‘पैकेज’ घोषित हुआ, तो भी ‘वास्तव में क्या मराठवाडा का विकास एवं सिंचन होगा ?’ यह मूल प्रश्न है । ‘विविध विकास योजनाओं की राशि जोड कर तथा बहुत कुछ देने का दिखावा करके ऐसे विशेष पैकेज के उपरांत भी यहां पिछडापन वैसे ही बना रहता है’, मराठवाडा का अब तक का ऐसा ही अनुभव है । इसी लिए गत ७५ वर्षाें से इस प्रदेश को लगी ‘पिछडेपन’ की यह पट्टी वैसी की वैसी है, जिसके कारण विकास का पिछडापन बढता ही जा रहा है ।

कृषकों की दुर्दशा !

खेती का विचार करें, तो अकाल की परिस्‍िथति में मराठवाडा में तुअर एवं कपास का उत्पाद कुछ मात्रा में हो रहा है; किंतु उसकी वृद्धि रुक गई है । कृषि का विचार करें, तो अव्यवस्था है । अभी तक पंचनामा (साक्ष्यपत्र) नहीं किया गया है । सितंबर माह तक वर्षा की स्थिति देखकर अकाल की स्थिति घोषित करनी होती है । अभी सितंबर माह पूरा नहीं हुआ है । इसलिए जब किसान चिंतित हैं, तो अकाल घोषित करने की अपेक्षा सरकार को किसानों की सहायता करनी चाहिए । मराठवाडा के किसान इतने त्रस्‍त हो गए हैं, कि वे ‘खेती करना छोड देने’ की सोच रहे हैं ।‘अगली पीढी खेती करेगी अथवा नहीं ?’ मराठवाडा में इस प्रकार की भावना आ गई है । अधिकांश किसान जिला बैंकों से जुडे हुए हैैं; किंतु अभी स्थिति ऐसी है कि जिले के बैंक भी किसानों की सहायता नहीं कर रहे हैं । जिला बैंकों की अवस्‍था इतनी बुरी है कि वे केवल कर्मचारियों को वेतन देने के लिए कार्यरत हैं ! पूरे देश में उद्योगों को मराठवाडा के सीताफल, केसर आम एवं मोसंबियों की आपूर्ति की जाती है । इस प्रचुरता को ध्यान में लेकर यदि इस क्षेत्र में ही प्रसंस्करण उद्योग स्थापित किए जाएं तो स्‍थानीय जीविका की समस्या का समाधान हो सकता है ।

उद्योगों की निर्मिति चाहिए !

‘मराठवाडा के लोगों को क्या चाहिए ?’, इसका अध्ययन नहीं किया गया । वहां के लोग जीवन यापन के लिए जीविका चाहते हैं । व्यवसाय पर आधारित कौशल्‍य का विकास करना चाहिए । अकाल होने से किसानों को सहायता की आवश्यकता है । दांडेकर समिति ने बैकलॉग (अनुशेष) दिखाया था । उसके अनुसार वैधानिक विकास महामंडल स्‍थापित हुआ । किसी को पैसे अल्प पडें, तो उससे लेकर दिए जाते थे । विगत एक दशक से देखें, तो वैधानिक विकास महामंडल, मात्र एक औपचारिक अस्थिपंजर रह गया है । इस स्थिति में परिवर्तन लाना हो, तो केवल बैठकें लेने की अपेक्षा मराठवाडा के मूलभूत प्रश्नों पर कुछ तो करने की आवश्यकता है ।

९० के दशक में शरद पवार के मुख्‍यमंत्री रहते उनकी अगुवाई में ‘बजाज’ जैसा उद्योग संभाजीनगर में आया था; किंतु तत्पश्चात वैसे प्रयास होते नहीं दिखता । मराठवाडा में कोई भी बडा उद्योग नहीं आया है । जब तक कोई बडा उद्योग मराठवाडा में नहीं आता, तब तक मराठवाडा की स्थिति वैसी ही रहेगी । ‘स्‍कोडा’ जैसे प्रतिष्ठान यहां आए थे; किंतु वहां केवल गाडी जोडने का काम होता था । उसके खुले भाग (स्पेयर पार्ट्स)विदेश से आते हैं । इससे जीविका को लेकर मराठवाडा के लोगों का भ्रम दूर हुआ । इसलिए मराठवाडा में बडा उद्योग आना आवश्यक है; किंतु उस तुलना में उद्योग नहीं आए ! छत्रपति संभाजीनगर जनपद के पर्यटन की ओर ध्यान नहीं दिया जाता । इस क्षेत्र में रेलवे, मार्ग, शिक्षा, स्वास्थ्य, ये मूलभूत सुविधाएं कभी नहीं दी गईं । इससे मराठवाडा में बहुत ही पिछडापन दिखाई देता था । प्रसिद्ध जल-विज्ञानी तथा ‘स्‍टॉकहोम पुरस्‍कार’ विजेता डॉ. माधवराव चितळे ने आग्रहपूर्वक कहा कि विकास के लिए स्‍वतंत्र मराठवाडा राज्‍य होना आवश्यक है । । इससे पूर्व भी कभी-कभी यह मांग की जाती थी । अर्थात यह मांग ‘प्रतीकात्मक’ रूप में यह बताने के लिए की गई थी कि राज्‍य सरकार मराठवाडा को शंका की दृष्टि से देखती थी ।

मराठवाडा का विकास हो !

पिछले ७ वर्षाें से संभाजीनगर में राज्‍य मंत्रीमंडल की बैठक नहीं हुई थी, चुनाव की पार्श्वभूमि पर वह अब हुई है । राज्‍य सरकार ने मराठवाडा के विकास के लिए ५९ सहस्र करोड रुपए की राशि घोषित की, तो भी वास्‍तव में उतने पैसे देने की स्थिती नहीं है । अनेक बार राज्‍य सरकार जब बजट (आय-व्यय) में प्रावधान करती है तथा उसे घोषणाओं के रूप में घोषित करती है, तो लोगाें को लगता है कि पैसे बरस रहे हैं; किंतु प्रत्‍यक्ष में आभासी चित्र लोगों को दिखाया जाता है; किंतु जनता इस आभासी वातावरण के निर्माण से भ्रमित नहीं होती । कृषक-आत्‍महत्‍या का अनुपात मराठवाडा में सबसे अधिक है । गत डेढ माह में बीड जनपद में १८६ कृषकों ने आत्‍महत्‍याएं की हैं । मराठवाडा के प्रत्येक जिले की यही स्थिति है । राज्य सरकार को इसकी ओर गंभीरता से देखना चाहिए ।

दूसरी बात यह कि बजट (आय-व्यय) में प्रत्‍येक विभाग के लिए कुछ निधि का प्रावधान होता है, आश्वासन के रूप में उसी निधि के आंकडे बताए जाते हैं । कोई नई राशि नहीं दी जाती और इसकी योजना बनाने में प्रशासन कुछ दिन व्‍यस्‍त रहता है । इसलिए केवल राशि का प्रावधान करने से कुछ नहीं होगा, ‘लोगों के जीवन में परिवर्तन कैसे हो?’ राज्‍य सरकार को इस पर विचार करना आवश्यक है ।

मराठवाडा इतने वर्षों से पिछडा ही रहा, इसके लिए सर्वपक्षीय शासनकर्ता उत्तरदायी हैं, यही सच है !