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थिरूवनंतपुुरम् (केरल) – केरल के माकपा के विधायक एवं मंदिर व्यवहारमंत्री के. राधाकृष्णन् ने उनके साथ एक मंदिर में जातिभेद किए जाने का आरोप किया है । उन्होंने इसकी जानकारी नहीं दी कि यह घटना कौन से मंदिर में हुई है; परंतु इस घटना द्वारा उन्होंने हिन्दू धर्म पर टिप्पणी की । के. राधाकृष्णन् माकपा के एक दलित नेता हैं ।
Kerala Devaswom Minister K. Radhakrishnan, who hails from a Dalit background, recounts the experience of caste discrimination he faced while inaugurating a temple function:
“I went to attend a function at a temple. On the occasion of the inaugural function, the main priest… pic.twitter.com/dIORZ4k0K4
— Siddharth (@DearthOfSid) September 19, 2023
(और इनकी सुनिए…) ‘हिन्दू धर्म का अर्थ एक ही है और वह है लोगों में भेदभाव उत्पन्न करना !’
मंदिर व्यवहारमंत्री के. राधाकृष्णन् ने एक कार्यक्रम में बोलते हुए कहा, ‘मैं जब एक मंदिर में कार्यक्रम के लिए गया था, तब मुझे दीपप्रज्वलन के लिए बुलाया गया; परंतु मुझे दीपप्रज्वलन करने हेतु किसी ने दीप मेरा हाथ में नहीं दिया । वहां के पुजारी दीप लाए थे; परंतु मेरे हाथ में एक भी दीप नहीं दिया । पुजारी ने दीप प्रज्वलन किया और फिर भूमि पर रख दिया । उनकी यह अपेक्षा थी कि मैं भूमि पर रखा हुआ दीप उठाकर दीपप्रज्वलन करूं । मुझे ऐसा अनुमान नहीं था कि मंदिर में जाने पर मेरे साथ ऐसा कुछ होगा । हिन्दू धर्म का अर्थ एक ही है और वह है लोगों में भेदभाव उत्पन्न करना ।’ (इससे साम्यवादियों की हिन्दूद्वेषी मानसिकता स्पष्ट होती है । हिन्दू धर्म में जातिव्यवस्था नहीं, अपितु वर्णाश्रमव्यवस्था है । साम्यवादी हिन्दू धर्म की जानबूझकर आलोचना करते हैं । – संपादक ) |
(और इनकी सुनिए…) ‘मेरी धनराशि चलती है; परंतु मुझे अस्पृश्य मानते हैं !’
के. राधाकृष्णन् ने आरोप किया कि मुझसे जब धनराशि लेते हैं, तब वह अस्पृश्य नहीं लगती; परंतु मैं अस्पृश्य हूं । मुझे उनके व्यवहार से यही दिखाई दिया है । (मंत्री जो कुछ भी निधि देते हैं, वह अपनी जेब से नहीं देते, अपितु सरकार की होती है, यह उन्हें ध्यान में रखना चाहिए ! – संपादक)
संपादकीय भूमिकाके. राधाकृष्णन् राज्य के मंदिर व्यवहारमंत्री हैं, तो उन्हें मंदिर का नाम बताना चाहिए । इसप्रकार मंत्री का कोई अनादर करता हो, तो उस पर कार्रवाई होनी चाहिए; परंतु जाति के नाम पर यदि हिन्दू धर्म की जानबूझकर आलोचना करने का प्रयत्न हो रहा हो, तो हिन्दुओं को उसका वैध मार्ग से विरोध करना भी आवश्यक है ! |