थिरुवनंतपुरम (केरल) – कुछ दिन पूर्व केरल के उच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाते हुए कहा, ‘वंशपरंपरा अंतर्गत न्यासी अथवा न्यासीपद के वंश वाले परिवार के सदस्य को मंदिर में कर्मचारी के रूप में नियुक्त किया जा सकता है; परंतु उनको नौकरी के लिए निवेदन देने से पूर्व न्यासीपद का दावा छोड देना होगा ।’
न्यायमूर्ति अनिल के. नरेंद्रन एवं न्यायमूर्ति पीजी अजीत कुमार के खंडपीठ ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि वंश परंपरागत न्यासी पद आर्थिक सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकता । इसलिए ऐसे परिवार के सदस्य मंदिर में नौकरी ढूंढ सकते हैं एवं उनके नौकरी के लिए आवेदन देने में हिन्दू धार्मिक एवं धर्मादाय कानून के अंतर्गत कोई भी वैधानिक अडचन नहीं है ।
यहां का श्री कुरुंबा भगवती मंदिर, मलबार देवस्वोम मंडल के द्वारा प्रशासित एक धार्मिक संस्था है । इस मंदिर में नौकरी के लिए आवेदन के लिए जारी की गई अधिसूचना में, विज्ञापित पदों में से एक पद ‘कवल’ उपाख्य (उर्फ) ‘कथनवेदीकरण’ के लिए था । यह स्थायी रूप से गैर अनुवांशिक पद है । इस पद की नियुक्ति के संदर्भ में प्रविष्ट की गई याचिका अस्वीकार करते हुए उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया था ।