आंखों में संक्रमण का अर्थ एवं उसका उपचार

वर्तमान में अनेक क्षेत्रों में आंखों का संक्रमण भारी मात्रा में फैल रहा है । सभी आयुवर्ग के लोग, प्रमुखता से बच्चे इससे त्रस्त हैं । ‘आंखों में संक्रमण होने का निश्चित अर्थ क्या है? यह किस कारण से होता है ? उसके लक्षण क्या हैं ? इसके लिए क्या उपचार करें ? इन सभी प्रश्नों के उत्तर आज हम जानेंगे एवं इससे संबंधित सावधानी रखेंगे ।

१. आंखों का संक्रमण (कंजंक्टिवाइटिस) क्या है ?

यह एक संक्रामक रोग है । इसमें आंख से एक चिपचिपा स्राव होता है तथा आंखें लाल हो जाती हैं ।

२. वैज्ञानिक भाषा में इस रोग को क्या कहते हैं ?

इस रोग को ‘कंजंक्टिवाइटिस’ (conjunctivitis) अथवा ‘रेड आईज’ (red eyes) अथवा ‘सोर आईज’ (sore eyes) कहा जाता है । यह रोग सामान्यतः ‘बैक्टेरियल’ अथवा ‘वायरल’ होता है; परंतु वर्तमान में महामारी के रूप में फैला यह रोग ‘वायरल’ स्वरूप का है, जो ‘एडेनोवायरस’ (Adenovirus) नामक विषाणु के कारण होता है ।

डॉ. निखिल माळी

३. इस रोग के क्या लक्षण हैं ?

सर्वप्रथम आंखें लाल होकर उनमें से चिपचिपा पानी बहता है । तदुपरांत पलकों में सूजन आ जाती है । पलकें विशेषतः सवेरे एक-दूसरे से चिपक जाती हैं । कुल मिलाकर आंखों में अस्वस्थता निर्माण होती है । यदि स्राव अधिक हो, तो क्वचित प्रसंगों में धुंधला दिखाई देता है ।

४. इस रोग के अन्य लक्षण क्या हैं ?

इस रोग के विषाणुओं के कारण जुकाम, खांसी, सिरदर्द, शरीरदर्द, क्वचित प्रसंगों में बुखार होता है ।

५. यह रोग किन कारणों से फैलता है ?

यह रोग संक्रामक है । अतः शीघ्र गति से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है । यदि इस रोग से पीडित व्यक्ति ने अपनी आंखों को स्पर्श करने के उपरांत उसी हाथ से अन्य किसी वस्तु को स्पर्श किया, तो दूसरा व्यक्ति उसी वस्तु को स्पर्श कर वही हाथ अपनी आंखों में लगा ले, तो यह रोग दूसरे व्यक्ति को हो जाता है । उदा. इस रोग से पीडित व्यक्ति का रुमाल, पेन, तौलिया, चम्मच, गॉगल्स इत्यादि वस्तुओं का प्रयोग करने से यह बीमारी बढती है ।

६. इस बीमारी से पीडित रोगी को क्या सावधानी बरतनी चाहिए ?

अ. संक्रमण दिखाई देते ही सर्वप्रथम संभव हो तो स्वयं को अलग करें । (आइसोलेट करें ।)

आ. आंखों को स्पर्श न करें एवं उन्हें न मलें ।

इ. आंखें पोंछने के लिए ‘टिश्यू पेपर’ का प्रयोग करें ।

ई. चिकित्सक के परामर्श अनुसार उपचार आरंभ करें । मनचाही औषधियों की दुकान से किसी भी प्रकार के ‘ड्रॉप’ क्रय न करें, उन्हें आंखों में न डालें ।

उ. हलका एवं ताजा आहार लें ।

ऊ. बार-बार हाथ धोते रहें ।

ए. अपनी वस्तुएं अन्यों को न दें ।

ऐ. बच्चों में यह बीमारी अधिक फैली है । अतः जिसे यह बीमारी हुई है, उसे विद्यालय में न भेजें ।

ओ. कटोरी में गरम पानी लेकर उसमें रुई का फाहा भिगाकर उससे आंखों की पलकों को बाहर से हलका-सा सेकें ।

औ. तीव्र प्रकाश से सुरक्षा होने हेतु काले गॉगल का प्रयोग करें ।

७. संक्रमण से बचने हेतु स्वस्थ व्यक्ति को कौनसी सावधानी बरतनी चाहिए ?

आंखों को अनावश्यक हाथ न लगाएं । आंखें न मलें । बीमार व्यक्ति के संपर्क में आते ही निश्चित समय में हाथ धोएं अथवा सैनिटाइजर का उचित उपयोग करें । पीडित व्यक्ति की वस्तुओं का उपयोग न करें ।

८. यह बीमारी कितनी गंभीर है ?

यह बीमारी बिलकुल गंभीर नहीं है; परंतु उचित सावधानी न बरतने से अनदेखी करने से, साथ ही औषधोपचार न करने से इस बीमारी में जटिलता निर्माण होती है एवं तदनंतर यह बीमारी गंभीर स्वरूप धारण करती है । यथायोग्य उपचार करने से यह बीमारी सामान्यतः ३ से ७ दिनों में पूर्णतः दूर हो जाती है । इस प्रकार उचित सावधानी रखने से आंखों की इस समस्या पर हम विजय पा सकते हैं । चिकित्सक के परामर्श के अनुसार पेट में निश्चित आयुर्वेदीय औषधि लेने से यह बीमारी ठीक होने में सहायता मिलती है ।

– डॉ. निखिल माळी, आयुर्वेद नेत्ररोग विशेषज्ञ, चिपळूण, जिला रत्नागिरी.

आंखों का संक्रमण होने पर अथवा आगे न हो, इसलिए निम्नांकित देवताओं का जप करें !

सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी

वर्तमान में आंखों का संक्रमण सर्वत्र फैल रहा है । (आंखें लाल होने का संक्रमण) यदि हमारे क्षेत्र में किसी को यह संक्रमण हुआ है, यह दिखाई दे, तो इस लेख में दिए अनुसार सभी को आंखों की सावधानी बरतनी चाहिए । स्वयं को संक्रमण हुआ हो, तो डॉक्टर के परामर्श से औषधि भी आंखों में डाल सकते हैं । स्वयं को संक्रमण हुआ हो, तो अन्यों को न हो, इस हेतु हमें सावधानी बरतनी होगी ।

संक्रमण हुआ हो अथवा आगे न हो, इसलिए देवताओं का निम्नांकित जप ‘प्रतिदिन १ घंटा’, इस मात्रा में न्यूनतम ७ दिन करें । यह नामजप लगातार १ घंटा करने की अपेक्षा आधा घंटा २ बार भी कर सकते हैं ।

‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्री हनुमते नमः । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय ।’

यहां दिया गया नामजप इसी क्रम से करने पर एक नामजप होता है । इस प्रकार यह नामजप नियोजित कालावधि तक (उदा. आधे अथवा १ घंटे तक) पुनः-पुनः करें ।

– (सद्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळ, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (४.८.२०२३)


साधकों, कार्यकर्ताओं, पाठकों एवं धर्मप्रेमियों को सूचना

यदि आंखों का संक्रमण हुआ हो अथवा आगे न हो, इसलिए इस लेख में दिया गया जप करने से यदि किसी को कुछ अनुभूति हो, अथवा उन्हें कुछ विशेषतापूर्ण लगे, तो अपनी अनुभूतियां [email protected] इस ई-मेल पर भेजें, यह विनती !