‘प्राचीन भारतीय ऋषि-मुनियों ने मनुष्य की सर्वांगीण प्रगति के लिए अनेक शास्त्र निर्माण किए, उदा. ज्योतिषशास्त्र, वास्तुशास्त्र, आयुर्वेद, संगीत, मंत्रशास्त्र इत्यादि । ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की ओर से ज्योतिषशास्त्र में शोधकार्य आरंभ है । उसके अंतर्गत ज्योतिषशास्त्र को अन्य भारतीय शास्त्रों से (वास्तुशास्त्र, आयुर्वेद, संगीत, मंत्रशास्त्र इत्यादि से) जोडनेवाला शोधपरक अध्ययन करना है, उदा. किसी वैद्य ने बताया कि कोई रोग इतने समय के उपरान्त बढेगा अथवा न्यून होगा, तो क्या यह व्यक्ति की कुंडली से भी जाना जा सकता है ? ‘किसी की आध्यात्मिक प्रगति कितनी आयु में होगी ?’, यह उसकी कुंडली देखकर बता सकते हैं क्या ? इत्यादि । इस संदर्भ में शोध के विषय आगे दिए हैं ।
१. ज्योतिषशास्त्र तथा आयुर्वेद
अ. आयुर्वेद में बताए वात, पित्त तथा कफ त्रिदोषों का ज्योतिषशास्त्र के ग्रह, राशि तथा नक्षत्रों के साथ संबंध समझना
आ. जन्मकुंडली से व्यक्ति की प्रकृति, प्रतिकारशक्ति, उसे होनेवाले संभावित रोग तथा व्याधि एवं आयु का अध्ययन करना
इ. ‘विविध रोग तथा व्याधि के लिए जन्मकुंडली के कौन से ग्रहयोग कारणभूत हैं ?’ इसका अध्ययन करना
ई. ‘किस कालावधि में रोग अथवा व्याधि बढेंगे अथवा न्यून होंगे?’ यह ग्रहस्थिति से जाननो
२. ज्योतिषशास्त्र तथा वास्तुशास्त्र
अ. वास्तुशास्त्र की अष्टदिशा तथा ज्योतिषशास्त्र के ग्रह एवं राशि, इनके बीच के संबंध जानना
आ. ‘जन्मकुंडली के ग्रहयोगों के अनुसार क्या व्यक्ति को अच्छी अथवा दोषयुक्त वास्तु मिलती है ?’ इसका अध्ययन करना ।
३. ज्योतिषशास्त्र तथा संगीत
अ. संगीत के स्वर, राग आदि का ज्योतिषशास्त्र के ग्रह, राशि आदि से संबंध जानना
आ. ‘ग्रहदोषों के निवारण के लिए संगीत-उपचार उपयुक्त रहते हैं क्या ?’ इसका अध्ययन करना
इ. ‘गायन, वादन तथा नृत्य कला का ज्ञान होने के लिए जन्मकुंडली के कौन से ग्रहयोग आवश्यक हैं ?’, इसका अध्ययन करना
४. ज्योतिषशास्त्र तथा मंत्रशास्त्र
अ. विविध देवता, अक्षर तथा अंक, इनका ग्रह, राशि तथा नक्षत्रों से क्या संबंध है यह जानना
आ. ‘ग्रहदोषों के निवारण के लिए कौन सा मंत्रजप, अंकजप, देवताओं का नामजप इत्यादि उपयुक्त है ?’ इसका अध्ययन करना
इ. ‘जन्मकुंडली के अनुसार व्यक्ति को किसदेवता की उपासना करनी चाहिए?’ इसका अध्ययन करना
५. ज्योतिषशास्त्र तथा अध्यात्मशास्त्र
अ. जन्मकुंडली के अनुसार व्यक्ति का स्वभाव, उसकी आध्यात्मिक विशेषता, साधनामार्ग, पूर्वजन्म की साधना इत्यादि के संदर्भ में अध्ययन करना
आ. जन्मकुंडली के अनुसार व्यक्ति को साधना हेतु प्राप्त हुई अनुकूल अथवा प्रतिकूल परिस्थिति, उसका आध्यात्मिक कष्ट, इष्ट-अनिष्ट प्रारब्ध, चित्त के संस्कार आदि का अध्ययन करना
इ. जन्मकुंडली द्वारा व्यक्ति की आध्यात्मिक प्रगति होने के लिए पूरक काल जानना
ई. ‘मृत्युकुंडली (व्यक्ति के मृत्यु के समय की कुंडली) बनाकर जीव की मृत्युत्तर गति के बारे में पता चलता है क्या ?’ इसका अध्ययन करना उपरोक्त शोध कार्य में सहभागी होने के लिए जो इच्छुक हैं, उन्हें उस विषय की कुंडलियां भेजी जाएंगी ।’
– श्री. राज कर्वे (ज्योतिष विशारद), महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (२१.७.२०२३)
साधकों को सूचना तथा ज्योतिषशास्त्र के अध्ययनकर्ता, पाठक, शुभचिंतक एवं धर्मप्रेमियों से नम्र विनती !‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ के अंतर्गत ‘ज्योतिषशास्त्र को अन्य भारतीय शास्त्रों से जोडना’ इस शोध कार्य में सहभागी होकर साधना के स्वर्णिम अवसर का लाभ लें ! इस शोध कार्य में सहभागी होने के लिए जो इच्छुक हैं, वे जिलासेवकों के माध्यम से आगे दी सारणी के अनुसार अपनी जानकारी [email protected] इस संगणकीय पते पर अथवा सूचना पत्र (डाक) के पते पर भेजें । ई-मेल भेजते समय उसके विषय में ‘ज्योतिषशास्त्र को अन्य भारतीय शास्त्रों से जोडना’, कृपया इस प्रकार उल्लेख करें । सूचना पत्र का पता : श्री. आशीष सावंत, द्वारा ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’, भगवतीकृपा अपार्टमेंट्स, एस-१, द्वितीय तल, बिल्डिंग ए, ढवळी, फोंडा, गोवा ४०३४०१ |