‘वर्तमान काल में समाज में वास्तुशास्त्र बहुत ही प्रचलित है । प्रत्येक व्यक्ति को लगता है कि अपना घर वास्तुशास्त्र के अनुसार होना चाहिए । घर में वास्तुदोष हों, तो वहां निवास करनेवालों पर उसके विपरीत परिणाम होते हैं । समाज में वास्तुदोष दूर करने की भिन्न-भन्न पद्धतियां प्रचलित हैं । यहां ध्यान देने योग्य सूत्र यह है कि वास्तुशास्त्र के अनुसार घर निर्माण करने में बहुत मर्यादाएं होती हैं । साथ ही वास्तुदोष दूर करने के लिए चाहे कितना भी धन व्यय करें, तो भी उसका परिणाम स्थायीरूप से नहीं टिक पाता । इस पर प्रभावकारी उपाय के रूप में प्रत्येक व्यक्ति को नियमित साधना कर स्वयं में विद्यमान सात्त्विकता बढानी चाहिए, जिससे वास्तु पर निरंतर उसका सकारात्मक परिणाम होता रहेगा एवं वह दीर्घकाल तक बना रहेगा । इसका बहुत ही सुंदर एवं सटीक उदाहरण है संतों का निवासस्थान । वहां जाने के उपरांत सभी को अच्छी अनुभूतियां होती हैं । इसका कारण यह है कि संतों में विद्यमान चैतन्य के कारण उनका निवासस्थान सात्त्विक बना रहता है । ऐसी सात्त्विक वास्तु में चैतन्य होने के कारण वहां आने-जानेवाले को उसका लाभ होता है ।
१. वास्तु के प्रकार
१ अ. गृहवास्तु : इसमें खपरैल से बनाए गए भवन, पुरानी हवेली, सदनिका (फ्लैट), बंगले इत्यादि भिन्न प्रकार के निवास स्थान होते हैं । इसमें सामान्य व्यक्ति, कष्टवाले साधक, जिनको कष्ट नहीं है, ऐसे साधक, ६० प्रतिशत अथवा उससे अधिक स्तर के साधक, दैवी बालक (उच्च स्वर्गलोक, महर्लाेक), बालसंत, संत (गुरु, सद्गुरु, परात्पर गुरु) के निवासस्थानों का अध्ययन कर सकते हैं ।
१ आ. व्यावसायिक वास्तु : इसमें दुकान, कंपनियां, कारखाने, चिकित्सालय इत्यादि भिन्न भिन्न प्रकार की व्यावसायिक वास्तुएं समाहित हैं । इसमें सामान्य व्यक्ति एवं साधकों की व्यावसायिक वास्तुओं का अध्ययन कर सकते हैं । इससे व्यवसाय करनेवाला व्यक्ति यदि साधना करता है, तो उसमें विद्यमान सात्त्विकता का सुपरिणाम उसकी व्यावसायिक वास्तु पर होकर वह भी चैतन्यमय हो सकती है, ऐसा समाज को बताकर उन्हें (लोगों को) साधना के लिए प्रवृत्त कर सकेंगे ।
१ इ. आध्यात्मिक वास्तु : इसमें निम्नांकित प्रकार हैं । इसके द्वारा आध्यात्मिक वास्तुओं का महत्त्व सभी को ध्यान में आएगा । साथ ही वहां का चैतन्य बनाए रखना भी कितना आवश्यक है ? एवं इसके लिए क्या प्रयास कर सकते हैं ? यह भी समाज को बता सकेंगे ।
१ इ १. देवी-देवताओं के मंदिर : श्रीराम, श्रीकृष्ण, हनुमानजी, श्रीगणपति, दत्त, शिवजी, श्री दुर्गादेवी आदि उच्च देवता, कुलदेवता एवं ग्रामदेवता के मंदिर ।
१ इ २. तीर्थक्षेत्र : ज्योतिर्लिंग, शक्तिपीठ, चारधाम इत्यादि ।
१ इ ३. संतों से संबंधित : संतों के मठ / आश्रम / निवास स्थान / उपासना-स्थान (तपोस्थान)/ समाधि स्थल
१ इ ४. आध्यात्मिक संस्था : संस्था का कार्यालय, उनके आश्रम इत्यादि ।
२. वास्तुओं के विषय में शोधकार्य
वास्तुओं का शोधकार्य निम्नांकित माध्यमों के द्वारा कर सकते हैं ।
२ अ. वास्तुशास्त्र की दृष्टि से वास्तु का अध्ययन
१. क्या वास्तु वास्तुशास्त्र के नियमों के अनुसार है ? यदि है, तो कितनी प्रतिशत है ?
२. वास्तु के पूजाघर का स्थान एवं पूजाघर में देवी-देवताओं की रचना का अध्ययन
३. क्या वास्तु-शुद्धि हो रही है ? यदि हां, तो किस प्रकार एवं कितनी बार की जाती है ?
२ आ. साधना के कारण वास्तु पर होनेवाला परिणाम : निवासी वास्तुओं के संदर्भ में आगे दी गई जानकारी इकट्ठा कर सकेंगे ।
१. क्या घर के सदस्य कुलाचार का पालन करते हैं ?
२. क्या घर के सदस्य उपासना (साधना) करते हैं ? यदि करते हैं, तो कौन सी करते हैं ? उपासना नियमित करते हैं अथवा प्रसंगानुरूप ?
३. क्या घर में निवास करनेवालों को पूर्वजों अथवा अनिष्ट शक्तियों के कष्ट हैं ? यदि हैं, तो उनकी तीव्रता कितनी है ? कष्ट का स्वरूप कैसा है ?
४. क्या घर में सत्संग होता है ? अथवा संत आते हैं ? अथवा उनका स्थान, गद्दी जैसा कुछ है ?
५. क्या साधना करनेवालों को अपने घर में कुछ विशेष परिवर्तन लग रहे हैं ? यदि हां, तो ये परिवर्तन कब से लग रहे हैं ?
२ इ. सूक्ष्म परीक्षण : वास्तु में प्रवेश करने पर ‘मन को क्या लगता है ?’, इसका अध्ययन ।
२ ई. पेंडुलम (लोलक) परीक्षण : किसी वास्तु के सकारात्मक एवं नकारात्मक स्पंदनों का अध्ययन ।
२ उ. वैज्ञानिक उपकरण द्वारा शोधकार्य
१. ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर (यू.ए.एस.)’ उपकरण द्वारा वास्तु एवं वहां विद्यमान मिट्टी (धूल इत्यादि), पानी एवं वायुमंडल के सकारात्मक एवं नकारात्मक स्पंदनों का अध्ययन करना ।
२. ‘पालीकांट्रास्ट इंटरफेरन्स फोटोग्राफी (पी.आई.पी.)’ तंत्रज्ञान के द्वारा वास्तु में विद्यमान सात्त्विकता का अध्ययन करना ।
३. ‘रीजोनेंस फिल्ड इमेजिंग (आर.एफ.आई.)’ उपकरण के द्वारा वास्तु के ऊर्जा क्षेत्र की स्थिति का अध्ययन करना ।
उपरोक्त के अतिरिक्त अन्य कुछ वैज्ञानिक उपकरणों के द्वारा शोधकार्य करना यदि संभव हो, तो उसकी विस्तृत जानकारी ‘ई-मेल’ द्वारा भेजें ।
श्रीगुरुचरणों में कृतज्ञता !
– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा एवं श्री. धनंजय कर्वे, फोंडा, गोवा. (२८.६.२०२३)
ई-मेल – [email protected]
‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ के अंतर्गत ‘वास्तुओं में विद्यमान सात्त्विकता का अध्ययन’ इससे संबंधित शोधकार्य में सम्मिलित होकर साधना के सुवर्ण अवसर का लाभ लें !साधकों को सूचना एवं वास्तु विशेषज्ञों, पाठकों, हितचिंतकों एवं धर्मप्रेमियों से नम्र विनती ! इस कार्य में सम्मिलित होने के इच्छुक साधक जिलासेवकों के माध्यम से निम्नांकित सारणी के अनुसार अपनी जानकारी [email protected] इस संगणकीय पते पर अथवा डाक पते पर भेजें । ई-मेल भेजते समय उसके विषय में ‘सात्त्विकता के दृष्टिकोण से वास्तु का अध्ययन’ इस प्रकार उल्लेख करें । डाक पता : श्री. आशीष सावंत, द्वारा ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’, भगवतीकृपा अपार्टमेंटस, एस-१, द्वितीय तल, बिल्डिंग ए, ढवळी, फोंडा, गोवा ४०३४०१ |
इस अंक में प्रकाशित की गई अनुभूतियां ‘जहां भाव, वहां ईश्वर’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । सभी को ऐसी अनुभूतियां होंगी ही, ऐसा नहीं है । – संपादक |